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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

पूज्य उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म. सा. का पालीताना में भव्य नगर प्रवेश संपन्न

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पूज्य उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म. सा. का
पालीताना में भव्य नगर प्रवेश संपन्न

पूज्य गुरुदेव उपाध्याय प्रवर श्री मणिप्रभसागरजी महाराज साहब का 54 साधु साध्वियों के साथ पालीताणा की पावन तीर्थ भूमि पर आज नगर प्रवेश अत्यन्त आनन्द उल्लास व उत्साह के साथ संपन्न हुआ।
प्रात: 9 बजे प्रारंभ हुई शोभायात्रा नगर के विभिन्न मार्गों से गुजरती हुई तलेटी दर्शन करने पहुँची। शोभायात्रा में पूज्य आचार्य श्री राजयशसूरिजी म. आदि साधु साध्वी भगवंत पधारे थे। प्राणीमित्र कुमारपाल भाई वि. शाह विशेष रूप से उपस्थित थे।
लगभग 11.30 बजे शोभायात्रा प्रवचन मंडप में पहुँची, जहाँ अभिनंदन समारोह प्रारंभ हुआ। समारोह साढे तीन बजे तक चला। हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति इतनी देर होने पर भी बराबर रही।
चातुर्मास का आयोजन पूजनीया बहिन म0 डाँ. श्री विद्युत्प्रभाश्रीजी म. सा. की पावन प्रेरणा से धोरीमन्ना निवासी श्री बाबुलालजी भूरचंदजी लूणिया एवं कोठाला निवासी श्री रायचंदजी प्रेमराजजी दायमा परिवार की ओर से किया गया है। साथ ही उपधान का आयोजन भी होगा।
समारोह को संबोधित करते हुए पूज्य उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने कहा- यह वही सिद्धाचल है, जहाँ हमारे जीवन का परिवर्तन हुआ था। आज से चालीस वर्ष पहले मैंने, बहिन विद्युत्प्रभा व माताजी महाराज श्री रतनमालाश्रीजी म.सा. ने इसी भूमि पर पूज्य आचार्य श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म.सा. से दीक्षा ग्रहण कर साधु बने थे।
यह सिद्धाचल ऐसी तीर्थ भूमि है, जहाँ आकर आत्मा परमात्मा होने का वरदान प्राप्त करता है। इस तीर्थ पर हमें आराधना करके अपने जीवन को सफल बनाना है।
उन्होंने कहा- एक तोते ने परमात्मा की देखा देखी भक्ति की, परिणाम स्वरूप उसने अगले जन्म में मनुष्य भव प्राप्त किया। वे जयपुर के सिद्धराज ढड्ढा बने। उन्होंने चातुर्मास में आराधना करने व विराधना से बचने की प्रेरणा दी।
पूजनीया बहिन म. डाँ. विद्युत्प्रभाश्रीजी म. ने कहा- सिद्धाचल की पावन भूमि पर चातुर्मास करने का अनूठा अवसर मिला है, उसका पूरा पूरा लाभ उठाना है। मुझे अत्यन्त प्रसन्नता है कि मुझे लूणियाजी जैसे श्रावकों की श्रद्धा प्राप्त है।
चातुर्मास आयोजक श्री बाबुलाल लूणिया ने कहा- आज से तीस वर्ष पूर्व पूजनीया बहिन महाराज डाँ विद्युत्प्रभाश्रीजी म.सा. का चातुर्मास हमारे गाँव धोरीमन्ना में हुआ था। उनसे ही हमने धर्म के संस्कार मिले हैं। आज मैं जो कुछ भी हूँ, वह उनकी ही कृपा का परिणाम है।
इस अवसर पर साध्वी श्री शुभदर्शनाश्रीजी, साध्वी श्री संघमित्राश्रीजी, साध्वी श्री विश्वज्योतिश्रीजी, साध्वी श्री प्रियसौम्यांजनाश्रीजी, साध्वी श्री नूतनप्रियाश्रीजी ने चातुर्मास को सार्थक करने की प्रेरणा दी।
संघवी तेजराज गुलेच्छा, भंवरलाल छाजेड, संघवी विजयराज डोसी, पुखराज चौपडा, पुखराज कवाड आदि ने भी अपने विचार रखे। प्रारंभ में लूणिया व दायमा परिवार की बालिकाओं ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया।
समारोह का सुव्यवस्थित रूप से संचालन मुनि श्री मनितप्रभसागरजी ने किया। उन्होंने कहा- जो व्यक्ति संतों की शरण प्राप्त करता है, वह अरिहंत परमात्मा को प्राप्त कर लेता है।
इस अवसर पर श्री निशीथ भाई शाह द्वारा प्रकाशित एवं पारूल बेन गांधी द्वारा संपादित खरतरगच्छ नी भव्योज्ज्वल तेजरेखा नामक गुजराती ग्रन्थ का विमोचन किया गया। इन्द्रकुमार महावीर छाजेड द्वारा नवाणुं यात्रा के प्रचार पोस्टर का लोकार्पण किया गया।
आयोजक परिवार द्वारा पूज्यगुरुदेवश्री को कामली, एवं ठवणी समर्पित की गई।

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