पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन
ता. 17 अगस्त 2013, पालीताना
जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत प्रश्नोत्तरी प्रवचन फरमाते हुए श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्ाकों की विशाल ध्ार्मसभा को संबोिध्ात करते हुए कहा- जैन किसी जाति का नाम नहीं है, अपितु जैन एक धर्म है, एक जीवन शैली है। जाति से सभी हिन्दु है। हिन्दु और जैन कोई अलग नहीं। हिन्दु किसी धर्म का नाम नहीं है और जैन किसी जाति का नाम नहीं है। जैन शब्द का अर्थ बताते हुए उन्होंने कहा- जो भी व्यक्ति वीतराग परमात्मा का अनुयायी है, उनके सिद्धान्तों को अपने जीवन में उतारता है, जो भी व्यक्ति अहिंसा आदि व्रतों का स्वीकार करता है, वह जैन है, भले ही वह जाति से क्षत्रिय, हो या ब्राह्मण, वैश्य हो या शूद्र! परमात्मा महावीर स्वयं क्षत्रिय थे। जबकि उनके ग्यारह गणधर ब्राह्मण थे। धन्ना और शालिभद्र जैसे मुनि वैश्य जाति से आये थे तो हरिकेशी, चित्तसंभूत मुनि शूद्र जाति से आये थे। परमात्मा महावीर जातिवाद को स्वीकार नहीं करते। महावीर प्रभु फरमाते हैं- कर्म से ही व्यक्ति क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य व शूद्र होता है, जाति से नहीं।
उन्होंने कहा- जैन धर्म अपने आप में स्वतंत्र धर्म है। इस कारण जैन अनुयायियों को अल्पसंख्यक की मान्यता अवश्य प्राप्त होनी चाहिये। अल्पसंख्यक की मांग पर जोर देते हुए कहा- अपने धर्म और अपनी संस्कृति की रक्षा करने के लिये अल्पसंख्यक की मान्यता चाहिये।
उन्होंने एक अन्य प्रश्न के उत्तर में कहा- भाग्य पुरूषार्थ के अधीन है। भाग्य का निर्माण पुरूषार्थ करता है। कोई भी दूसरा व्यक्ति हमारे भाग्य का निर्माण नहीं करता। ईश्वर भी हमारे भाग्य का निर्माता नहीं है। यदि ईश्वर भाग्य का निर्माता है तो फिर उसने किसी को अमीर और किसी को गरीब क्यों बनाया! सच्चाई यह है कि व्यक्ति अपने कर्मों से अमीर और गरीब बनता है। अतीत के आधार पर ही उसका वर्तमान निर्धारित होता है। और वर्तमान ही भविष्य का निर्माता बनता है।
उन्होंने गुरुपद की महिमा का वर्णन करते हुए कहा- तीर्थंकर भी सम्यग्दर्शन किसी न किसी गुरु के माध्यम से ही प्राप्त करते हैं। बिना गुरु मुक्ति नहीं है।
इस अवसर पर पूजनीया बहिन म. डाँ. विद्युत्प्रभाश्रीजी म.सा. ने कहा- अपने जीवन को संवारना चाहते हैं तो स्वभाव को बदलना सीखो। किसी समय अपनी बात को मनवाओ तो किसी समय दूसरों की बात रखने के लिये अपनी बात का त्याग करना भी सीखो। ऐसी सहिष्णुता ही जीवन में स्वर्ग का निर्माण करती है।
उन्होंने कहा- मोक्ष प्राप्त करने का पुरूषार्थ हमें इसी जीवन में करना है। अपने चित्त में स्वर्ग का निर्माण करने वाला ही मोक्ष का अधिकारी बनता है। जो व्यक्ति सदैव समभावों में रहता है, परम आनन्द में रहता है, वह अपने चित्त में स्वर्ग का निर्माण करता है। समता का अर्थ होता है- प्रतिकूलता में भी आनंद का अनुभव करना! एक मुस्कुराते हुए व्यक्ति के पास कोई व्यक्ति क्रोध कर ही नहीं पायेगा। उसे क्या क्रोध में ला पायेगा, उसकी मुस्कुराहट से उसका अपना क्रोध मिट जायेगा।
स्वर्ग और नरक तो मरने के बाद मिलेंगे परन्तु हम वर्तमान जीवन में भी उनका साक्षात्कार करते हैं। जो व्यक्ति राग, द्वेष, ईष्र्या, लालच आदि भावों में जीता है, वह नरक में जीता है। वह न केवल स्वयं नरक में जीता है, बल्कि अपने आसपास के परिवेश में भी अपनी भाषा, व्यवहार के द्वारा नरक के काँटे चारों ओर बिखेरता है। ऐसे भावों में जीने वाला व्यक्ति मोक्ष का अधिकारी नहीं होता।
पूजनीया बहिन म. डाँ. विद्युत्प्रभाश्रीजी म.सा. की शिष्या पूजनीया साध्वी श्री विभांजनाश्रीजी म.सा. के मासक्षमण तप की महान् तपस्या के उपलक्ष्य में पंचाह्निका महोत्सव का आयोजन चल रहा है। उसके अन्तर्गत आज दूसरे दिन श्री अर्हद् महापूजन पढाया गया। इसके अन्तर्गत सात पीठिकाओं का पूजन किया गया।
आयोजक रायचंद दायमा ने बताया कि श्रीमती मंजूदेवी बसन्तकुमारजी ललवानी के मासक्षमण की महान् तपस्या चल रही है। सकल संघ ने उनकी तपस्या की अनुमोदना की।
हरि विहार के अध्यक्ष संघवी विजयराज डोसी ने बताया कि पंचाह्निका महोत्सव के अन्तर्गत कल 18 अगस्त को श्री अर्हद् महापूजन का तीसरा पूजन पढाया जायेगा। ता. 19 को श्री सिद्धचक्र महापूजन और 20 अगस्त को प्रात: 8.30 को वरघोडे का आयोजन होगा और दादा गुरुदेव की पूजा पढाई जायेगी। तपस्वी अभिनंदन समारोह का आयोजन प्रात: 10 बजे होगा।
प्रेषक- दिलीप दायमा
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