अपनत्व से खुशहाली, आनंद बरसता है -मणिप्रभसागर
इचलकरंजी जैन मंदिर व मणिधारी दादावाडी में बिराजमान पूज्य उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी महाराज ने अपनी प्रवचन श्रंखला को गति प्रदान करते हुए आज 16 अगस्त को विशाल धर्म सभा को ‘अपनत्व’ के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अपनत्व की आँक्सीजन से चारों तरफ खुशहाली एवं आनंद बरसता है। उमंग और उत्साह मिलकर जीवन को महोत्सव बना देता है। हम सभी से मिलें तथा मिल कर अपनत्व की मिठाई अवश्य बाँटे। जिस तरह कस्तूरी की गंध को हिरण सूंघ कर जंगल में दौड़ लगाता है, पेड़ पौधों, पत्थरों पर अपना मुख लगाके सूंघता है कि यह सुगंध कहां से आ रही है। जबकि कस्तूरी उसी की नाभि में है पर अनजान होने के कारण बाहर ही खोजता है और शिकारी उसे अपना शिकार बना के कस्तूरी को निकाल लेता है। यही दशा भौतिक चकाचौंध में जीने वाले सभी प्राणियों की है।
उपाध्याय श्री ने कहा कि कोई धन में सुख मान रहा है उसी के पीछे भाग के अनमोल श्वाँस के खजाने का नष्ट कर रहा है, कोई मकान, दूकान, नौकरी, कंपनी में नौकरी करके लाखों के पैकेज को सुख का साधन मान रहा है सच्चे सुख को समझे बिना दौड़ धूप कर रहा है। जब तक सच्चे सुख का परिचय नहीं होगा तब तक भटकन, भ्रमण, दु:ख मिट ही नहीं सकता और वह सुख न तो शरीर में है न इंदि्रयों की दासता में है न पद में है। पद तो मिलते है छूट जाते है और पद के छूटने से भूतपूर्व हो जाते है, पर अभूतपूर्व होने के लिए पद और पैसा नहीं चाहिए न पाप की प्रवृत्ति चाहिए। अभूतपूर्व बनने अपनत्व की अमृत, सौहार्द की मिठाई चाहिए। जीवन में सब हो पर अपनत्व न हो तो जीवन जीना मुश्किल होता है।
प्रवचन से पूर्व उपाध्याय श्री ने मंगलाचरण किया, राष्ट्र के विभिन्न अंचल से आए श्रद्धालुओं ने उपाध्यायश्री को वंदन कर आशीर्वाद लिया। अहमदाबाद गुजरात से आए नीलकंठ संघ के सदस्यों ने गुरूभक्ति की। धर्म सभा का संचालन रमेश लुंकड ने किया, आभार व्यक्त पुखराज ललवाणी ने किया।
प्रेषक रमेश लुंकड
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