पूज्य गुरुदेव आचार्य
भगवंत श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी
म.सा. के
शिष्य पूज्य गुरुदेव
उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी
म.सा. पूज्य
मुनि श्री मयंकप्रभसागरजी
म.सा. पूज्य
मुनि श्री मनितप्रभसागरजी
म.सा. पूज्य
मुनि श्री मेहुलप्रभसागरजी
म.सा. पूज्य
मुनि श्री समयप्रभसागरजी
म.सा. पूज्य
मुनि श्री विरक्तप्रभसागरजी
म.सा. पूज्य
मुनि श्री श्रेयांसप्रभसागरजी
म.सा. एवं
पूजनीया गुरुवर्या बहिन म.
डाँ. श्री विद्युत्प्रभाश्रीजी
म.सा. की
शिष्या पूजनीया साध्वी डाँ.
श्री नीलांजनाश्रीजी म.
पू. साध्वी श्री
विभांजनाश्रीजी म. पू.
साध्वी श्री निष्ठांजनाश्रीजी
म. पू. साध्वी
श्री आज्ञांजनाश्रीजी म0.ण् की
परम पावन निश्रा
में चातुर्मास में
हुई मासक्षमण, सिद्धि
तप, वीशस्थानक तप
आदि विविध तपाराधना
के उपलक्ष्य में
पंचािÉका महोत्सव
का आयोजन किया
गया।
ता. 2 सितम्बर 2014 को
मणिधारी दादा गुरुदेव
श्री जिनचन्द्रसूरि की
पुण्यतिथि का आयोजन
किया गया। गुणानुवाद
के बाद दादा
गुरुदेव की पूजा
पढाई गई। ता.
3 से 7 सितम्बर तक पंचािÉका महोत्सव
आयोजित हुआ। ता.
3 को अठारह अभिषेक,
4 को महावीर स्वामी
षट्कल्याणक पूजा, 5 को श्री
पंचपरमेष्ठी पूजा पढाई
गई। ता. 6 को
भव्य शोभायात्रा का
आयोजन किया गया।
दोपहर में श्री
अर्हद् अभिषेक महापूजन का
अनूठा आयोजन किया
गया। ता. 7 को
तपस्वियों का बहुमान
एवं दोपहर में
श्री वर्धमान शक्रस्तव
महापूजन पढाया गया। इन
दोनों महापूजनों को
शास्त्रीय विशिष्ट रागों में
पढाने हेतु सुप्रसिद्ध
श्रावकवर्य साधक प्रवर
श्री विमलभाई शाह
कडी वाले मुंबई
से पधारे थे।
संगीतकार विनीत गेमावत की
प्रस्तुति ने सभी
का मन मोह
लिया।
चौथे दादा
गुरुदेव को याद
किया
अकबर प्रतिबोधक
चतुर्थ दादा गुरुदेव
श्री जिनचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की
401वीं पुण्यतिथि पूज्य गुरुदेव
उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी
म. के सानिध्य
में ता. 10 सितम्बर
2014 को मनाई गई।
इस अवसर पर
पूज्य उपाध्यायश्री ने,
पूज्य मनितप्रभसागरजी म.
एवं पू. मेहुलप्रभसागरजी
म. ने गुरुदेव
के गुणगान किये।
उनके दिव्य तेजोमयी
व्यक्तित्व की चर्चा
की।
इस अवसर
पर रमेश लूंकड,
संपतराज संखलेचा, बाबुलाल मालू
ने भी गुणगान
किये। दादा गुरुदेव
की पूजा पढाई
गई।
इचलकरंजी में 45 आगम
वांचना
पर्वाधिराज पर्युषण आराधना
के पश्चात् 45 आगमों
की वांचना श्रृंखला
चल रही है।
पूज्य गुरुदेव उपाध्यायश्री
आगमों की विशिष्ट
व्याख्या करते हुए
रहस्य समझाते हैं।
प्रवचन श्रवण के लिये
पर्युषण के पश्चात्
भी लोग बडी
संख्या में दौडे
आते हैं। ऐसा
आभास ही नहीं
होता कि पर्युषण
पूर्ण हो गये
हैं।
बाहर से
विनंती करने हेतु
विभिन्न संघों का आगमन
हो रहा है।
प्रतिदिन शताधिक अतिथिगणों का
नियमित आगमन हो
रहा है। इचलकरंजी
संघ उनका तत्परता
के साथ बहुमान
पूर्वक स्वागत कर रहा
है।
नवपदजी की ओली
का प्रारंभ 30 सितम्बर
से हुआ है।
जिसका लाभ श्री
दीपचंदजी तलेसरा परिवार ने
लिया है।
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