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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

durg me Suri Mantra Sadhna दुर्ग में सूरिमंत्र की प्रथम पीठिका की साधना सम्पन्न

durg me Suri Mantra Sadhna
दुर्ग नगर में पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. के सूरिमंत्र की प्रथम पीठिका की इक्कीस दिवसीय साधना दिनांक 03 अक्टूबर से शुरू हुई और उसका निर्विघ्न सानन्द समापन समारोह 23 अक्टूबर को हुआ। इस साधना के अन्तर्गत पूज्यश्री सम्पूर्ण तौर पर मौन के साथ सूरिमंत्र के जप और तप में लीन रहे। 23 अक्टूबर को सुबह 5.20 बजे आयोजित हवन-पूजन के कार्यक्रम में श्रावकों ने पूजा परिधान पहनकर भाग लिया। प्रात: 9.30 बजे आचार्यश्री के सम्मान में गाजे-बाजे के साथ जुलूस निकाला गया। जुलूस में हजारों की संख्या में श्रावक-श्राविकाओं और बाहर से आए श्रद्धालुओं ने भाग लिया। आचार्यश्री ने सुबह 10 बजे प्रवचन स्थल सुखसागर प्रवचन-वाटिका में प्रवेश किया।
आचार्यश्री ने अपने उद्बोधन में उनकी मंत्र साधना की सफलता के लिए श्रावक-श्राविकाओं द्वारा किए गए नवकार मंत्र जाप के लिए प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी सूरिमंत्र प्रथम पीठिका मौन-साधना आनन्ददायी रही। यह ज्ञातव्य है कि संपूर्ण भारत में स्थान स्थान पर पूज्यश्री की साधना के निर्विघ्न लक्ष्य के लिये नवकार महामंत्र की आराधना, जाप, आयंबिल आदि का आयोजन किया गया। संपूर्ण एकान्त में मौन रहकर की गई इस मंत्र साधना को आचार्यश्री ने आचार्यपद प्राप्ति के बाद के अपने उत्तरदायित्व का पूर्तिकारक बताया।

आचार्यश्री ने बचपन में ही दीक्षा लेने की चर्चा करते हुए अपनी माताजी श्री रतनमालाश्री जी म.सा. को प्रेरणास्रोत बताया और कहा कि मेरी माता उन लाखों माताओं में श्रेष्ठ हंै जो अपने बेटों को जन्म देकर पालन-पोषण करती है और विवाह के सपने देखती हैं। परन्तु मेरी माता ने तो मुझे और मेरी बहिन दोनों दीक्षा की पे्ररणा दी, इससे अधिक खुद ने भी दीक्षा का पथ स्वीकार किया।
आचार्यश्री ने बताया कि सूरिमंत्र में पांच पीठिकाऐं होती हैं। इन पांच पीठिकाओं में क्रमश: सरस्वती देवी, त्रिभुवनस्वामिनी देवी, महालक्ष्मी देवी, गणिपिटक यक्षराज और गौतमस्वामीजी की आराधना की जाती है।
इस अवसर पर अनुमोदना कार्यक्रम का आयोजन किया गया। चैन्नई से आए सुप्रसिद्ध आराधक सुश्रावक श्री मोहनजी मनोजजी गुलेच्छा ने संगीतमय भक्तिगीतों की प्रस्तुति दी। उनकी अभिव्यक्ति ने श्रीसंघ को मंत्र मुग्ध कर दिया।
इस अवसर पर पूज्य गुरुदेव आचार्यश्री को सोने की स्याही से हस्तलिखित आगम वहोराया गया। आगम वहोराने का लाभ बाडमेर निवासी श्री भंवरलालजी विरधीचंदजी छाजेड परिवार हरसाणी मुंबई वालों ने लिया।
कार्यक्रम के अन्त में आचार्यश्री ने महामांगलिक सुनाई। सभा में मुकेश प्रजापत का बहुमान किया। यह उल्लेखनीय है कि उपरोक्त साधना की निर्विघ्न पूर्णता हेतु दुर्ग के साथ-साथ इचलकरंजी, तलोदा, सूरत-शहर, सूरत दर्शन सोसायटी, बैंगलोर, नंदुरबार, जोधपुर, शंखेश्वर, पालीताना, बाडमेर, उदयपुर, नवसारी, मुंबई, भुज, दिल्ली, नई दिल्ली, खेतिया, दोंडाइचा, महासमुन्द, रायपुर, चोहटन, सांचोर, बूढा-कवीन्द्रनगर, इन्दौर, मोकलसर आदि कई स्थानों पर इक्कीस दिवस तक नवकार मंत्र की साधना का आयोजन हुआ।

महामांगलिक के पावन अवसर पर रायपुर, धमतरी, राजनांदगांव, महासमुन्द, मुंगेली, खरियार रोड, बिलासपुर, जगदलपुर, कवर्धा, बालाघाट, गोंदिया, कटनी, बैंगलोर, मुंबई, चेन्नई, अहमदाबाद, सूरत, हैदराबाद, सांचोर आदि कई स्थानों से बडी संख्या में गुरु भक्तों का आगमन हुआ।

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