पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के पहले दिन गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरिजी महाराज ने पर्युषण पर्व की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि आत्मा में ज्ञान का दीप जलाना ही पर्वाधिराज पर्युषण पर्व का संदेश है। इस पर्व का स्वागत-अभिनंदन करें, यह अतिथि सबसे अलबेला, निराला और आला है। यह पर्व हमें यह कह रहा है कि जो मैं दूंगा उसकी कीमत आंकी नहीं जा सकती और जो मैं लूंगा उसकी कोई कीमत नहीं, वह तो कचरा ही होगा।
|
paryushan massage by gurudev jinmaniprabhsuri |
यह पर्व तो 8 दिनों का एक आत्मिक उत्थान शिविर है। इसमें हम जो सीखेंगे उसे हमें सालभर अंगीकार करना है। प्राकृत भाषा में इसे पज्जोसणा कहा। परि यानि चारों ओर और उपासना यानि आराधना। अर्थात समग्र रूप से आराधना से जुड़ जाना ही पर्युषण है। समग्र रूप से अपने अंतर के कसायों का उपसमन कर सर्वथा शांत हो जाने के नाम ही पर्युषण पर्व हैं। इस पर्व का स्वागत हमें अपने हृदय से, नेत्रों से शरीर के रोम-रोम से करना है। सहजता, करुणा से भरा जिसका हृदय होगा, वही इस अतिथि का स्वागत करने का अधिकारी हो सकता है। आचार्य भगवंत ने कहा कि हम सब वीतराग परमात्मा के अनुयायी हैं, हमारे हर कार्य में ‘जयना’ का होना ही हमारी पहचान और धर्म है। हम जो भी कार्य करें चले-फिरे, खाएं-सोएं वे हर कार्य हमारे जयना की छलनी से छने हुए होते हैं। जयना यानि अहिंसा हमारे हर आचरण में उपस्थित होना चाहिए। पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के ये 8 दिन बाकी दिनों से बिल्कुल अलग हैं, इन दिनों में हमें केवल धर्म,आराधना, साधना, उपासना, व्रत-उपवास, भक्ति एवं परमात्मा की जिनवाणी से ही जुड़ना है।
Comments
Post a Comment
आपके विचार हमें भी बताएं