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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

दुर्ग में तपस्या का ठाट

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पूज्य गुरुदेव प्रज्ञापुरूष आचार्य भगवन्त श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के शिष्य पूज्य ब्रह्मसर तीर्थोद्धारक मुनि श्री मनोज्ञसागरजी म.सा. पूज्य स्वाध्यायी मुनि श्री कल्पज्ञसागरजी म. पू. बाल मुनि श्री नयज्ञसागरजी म. ठाणा 3 का  दुर्ग नगर में ऐतिहासिक चातुर्मास चल रहा है। पूज्यश्री के प्रवचन श्रवण करने के लिये बडी संख्या में श्रद्धालु उमडते हैं। विविध प्रकार की तपश्चर्याऐं हो रही है। तपस्या का तो कीर्तिमान स्थापित हुआ है। पहले चरण में 19 आराध्कों ने सिद्धि तप की महान् तपस्या की। दूसरे चरण में 20 आराध्कों ने सिद्धि तप की आराध्ना की। साथ ही मासक्षमण, अट्ठाई, तेले, अक्षय  तप, समवशरण तप, कषाय विजय तप, मोक्ष दण्ड तप, स्वस्तिक तप, पंच परमेष्ठी नवकार तप, चौदह पूर्व तप आदि विविध तपस्या हुई है। साथ ही नेमिनाथ परमात्मा का जन्म कल्याणक अत्यन्त उल्लास के साथ मनाया गया। उपवास, आयंबिल एवं एकासणा की आराध्ना सामूहिक रूप से हुई। नौ दिवसीय नवग्रह पूजन विधान संपन्न हुआ। यह विधान इस क्षेत्र में पहली बार आयोजित किया गया। साथ ही पद्मावती पूजा महाविधन आदि का भी आयोजन किया गया।...

माध्वबाग में श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ परमात्मा के मंदिर में बिराजमान दादा गुरूदेव की चरणपादुकाओं के समक्ष ता. 15 सितम्बर को मणिधारी जिनचन्द्रसूरि की पुण्यतिथि के अवसर पर आरती का विधान किया गया। चतुर्विध संघ के साथ इकतीसे के पाठ के साथ साथ गुरूदेव की भक्ति की गई।

माध्वबाग में श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ परमात्मा के मंदिर में बिराजमान दादा गुरूदेव की चरणपादुकाओं के समक्ष ता. 15 सितम्बर को मणिधारी जिनचन्द्रसूरि की पुण्यतिथि के अवसर पर आरती का विधान किया गया। चतुर्विध संघ के साथ इकतीसे के पाठ के साथ साथ गुरूदेव की भक्ति की गई।jahaj mandir, maniprabh, mehulprabh

KUMARPAL BHAI V. SHAH

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भगवती सूत्र का वरघोडा

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पर्व पर्युषण महापर्व की आराधना के पश्चात् पूज्य गुरूदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. द्वारा 45 आगमों की वांचना फरमाई जा रही है। इस आगम वांचना के अन्तर्गत भगवती सूत्र का वरघोडा निकाला गया। इसका लाभ सांचोर निवासी श्री जीवराजजी उकचंदजी श्रीश्रीश्रीमाल परिवार ने लिया। सकल संघ के साथ आगम की पधरामणी उनके निवास स्थान पर हुई। वहाँ आगम की स्तुति करने के उपरान्त आगम पूजा की गई। दूसरे दिन पूज्यश्री द्वारा भगवती सूत्र की वांचना व्याख्या के साथ की गई। jahaj mandir, maniprabh, mehulprabh

KUMARPAL BHAI V. SHAH

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आसोज वदि 13 गर्भापहार कल्याणक

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   ता. 13 अक्टूबर 2012 को परमात्मा महावीर का गर्भापहार कल्याणक है। परमात्मा महावीर का च्यवन कल्याणक देवानंदा की कुक्षि में हुआ था। 83 दिनों के बाद हरिणैगमेषी देव द्वारा परमात्मा महावीर के गर्भ को त्रिशला महारानी की कुक्षि में संस्थापित किया गया। वह दिन गर्भापहार कल्याणक दिन कहलाता है। कई लोग इस घटना को कल्याणक नहीं मानकर निंद्य अच्छेरा कहते हैं। अच्छेरा तो है पर वह निंद्य कैसे हो सकता है। क्योंकि उस रात्रि में त्रिशला महारानी ने चौदह महास्वप्न देखे थे। फिर कल्पसूत्र आदि आगमों में इस गर्भापहार कल्याणक का स्पष्ट उल्लेख है।     इस दिन परमात्मा महावीर की विशेष रूप से पूजा, आराधना आदि करें। jahaj mandir, maniprabh, mehulprabh

मणिधारी गुरूदेव की पुण्यतिथि मनाई गई

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द्वितीय दादा गुरूदेव मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की पुण्यतिथि पूज्य गुरूदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. आदि साधु साध्वी मंडल की पावन निश्रा में अत्यन्त हर्षोल्लास के साथ मनाई गई। गुणानुवाद सभा, पूजा व महाआरती का आयोजन किया गया। पूज्य गुरूदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने फरमाया- आज द्वितीय भाद्रपद वदि 14 का महान् पर्व है। इसी दिन दादा गुरूदेव का मात्र 26 वर्ष की उम्र में स्वर्गवास हुआ था। जिस वर्ष स्वर्गवास हुआ था, उस वर्ष दो भाद्रपद थे व उनका स्वर्गवास दूसरे भाद्रपद वदि 14 को हुआ था। वर्षों बाद यह अनूठा संयोग उपस्थित हुआ है। पूज्यश्री ने फरमाया- जैन शासन के इतिहास-फलक पर मणिधारी दादा का नाम स्वर्णाक्षरों द्वारा अंकित है। मात्र 6 वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण कर 8 वर्ष की उम्र में आचार्य पद को प्राप्त करना, इतिहास की एक दुर्लभ घटना है। उस समय दादा गुरूदेव जिनदत्तसूरि के सैंकडों शिष्य थे। वे सभी चारित्रवान् व ज्ञानवान् थे। दीक्षा पर्याय में कई ज्येष्ठ मुनियों के होते हुए भी मात्र दो वर्ष के संयम-पर्याय वाले लघुवयी मुनि को आचार्य पद प्रदान कर अप...

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48. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा

जटाशंकर स्कूल में पढता था। जाति का वह रबारी था। भेड बकरियों को चराता था। छोटे-से गाँव में वह रहता था। अध्यापक ने गणित समझाते हुए क्लाँस में बच्चों से प्रश्न किया- बच्चों! मैं तुम्हें गणित का एक सवाल करता हूँ। एक बाडा है। बाडे में पचास भेडें हैं। उनमें से एक भेड ने बाड कूदकर छलांग लगाली, तो बताओ बच्चों! उस बाडे में पीछे कितनी भेडें बची। जटाशंकर ने हाथ उँचा किया। अध्यापक ने प्रेम से कहा- बताओ! कितनी भेडें बची। जटाशंकर ने कहा- सर! एक भी नहीं! अध्यापक ने लाल पीले होते हुए कहा- इतनी सी भी गणित नहीं आती। पचास में से एक भेड कम हुई तो पीछे उनपचास बचेगी न! जटाशंकर ने कहा- यह आपकी गणित है। पर मैं गडरिया हूँ! भेडों को चराता हूँ! और भेडों की गणित मैं जानता हूँ! एक भेड ने छलांग लगायेगी और सारी भेडें उसके पीछे कूद पडेगी। वह न आगे देखेगी न पीछे! सर! उन्हें आपकी गणित से कोई लेना देना नहीं। भेडों की अपनी गणित होती है। इसी कारण बिना सोचे अनुकरण की प्रवृत्ति को भेड चाल कहा जाता है। वहाँ अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं होता। अपनी सोच के आधार पर गुण दोष विचार कर जो निर्णय करता है, वही व्यक्ति अप...

47. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा

जटाशंकर दौडता दौडता अपने घर पहुँचा। घर वाले बडी देर से चिन्ता कर रहे थे। रोजाना शाम ठीक छह बजे घर आ जाने वाला जटाशंकर आज सात बजे तक भी नहीं पहुँचा था। वे बार बार बाहर आकर गली की ओर नजर टिकाये थे। जब जटाशंकर को घर में हाँफते हुए प्रवेश करते देखा तो सभी ने एक साथ सवाल करने शुरू कर दिये। उसकी पत्नी तो बहुत नाराज हो रही थी। उसने पूछा- कहाँ लगाई इतनी देर! जटाशंकर ने कहा- भाग्यवती! थोडी धीरज धार! थोडी सांस लेने दे! फिर बताता हूँ कि क्या हुआ! तुम सुनोगी तो आनंद से उछल पडोगी! मुझ पर धन्यवाद की बारिश करोगी! कुछ देर में पूर्ण स्वस्थता का अनुभव करने के बाद जटाशंकर ने कहा- आज तो मैंने पूरे पाँच रूपये बचाये है! रूपये बचाने की बात सुनी तो जटाशंकर की कंजूस पत्नी के चेहरे पर आनंद तैरने लगा। उसने कहा- जल्दी बताओ! कैसे बचाये! जटाशंकर ने कहा- आज मैं आँफिस से जब निकला तो तय कर लिया कि आज रूपये बचाने हैं। इसलिये बस में नहीं बैठा! बस के पीछे दौडता हुआ आया हूँ। यदि बस में बैठता तो पाँच रूपये का टिकट लगता! टिकट लेने के बजाय मैं उसके पीछे दौडता रहा, हाँफता रहा और इस प्रकार पाँच रूपये बचा लिय...

46. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा

जटाशंकर चाय पीने के लिये घटाशंकर की होटल पर पहुँचा था। थोडा आदत से लाचार था। हर काम में कमी निकालने का उसका स्वभाव था। उसके इस स्वभाव से सभी परेशान थे। जहाँ खाना खाने जाता, वहाँ कम नमक या कम मिर्च की शिकायत करके पैसे कम देने का प्रयास करता! घटाशंकर ने उसे चाय का कप प्रस्तुत किया। धीरे धीरे वह चाय पीता जा रहा था। और मानस में कोई नया बहाना खोजता जा रहा था। पूरी चाय पीने के बाद वह क्रोध में फुंफकारते हुए

मुंबई में तपश्चर्या का कीर्तिमान

परम पूज्य गुरूदेव प्रज्ञापुरूष आचार्य देव श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य पूज्य गुरूदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. , पूज्य मुनि श्री मुक्तिप्रभसागरजी म. पूज्य मुनि श्री मनीषप्रभसागरजी म. पू. मुनि श्री मयंकप्रभसागरजी म. पू. मुनि श्री मनितप्रभसागरजी म. पू. मुनि श्री मेहुलप्रभसागरजी म. पू. मुनि श्री मैत्रीप्रभसागरजी म. ठाणा 7 एवं पूजनीया प्रखर व्याख्यात्री साध्वी श्री हेमप्रभाश्रीजी म.सा. की शिष्या पू. साध्वी श्री श्रद्धांजनाश्रीजी म. पू. साध्वी श्री दीपमालाश्रीजी म. पू. साध्वी श्री कल्याणमालाश्रीजी म. ठाणा 3 की पावन निश्रा में मुंबई महानगर में तपस्या का बहुत ही अनूठा वातावरण निर्मित हुआ है। पूज्य महातपस्वी मुनि श्री मैत्रीप्रभसागरजी म. ने 35 उपवास का महान् तप किया। पूजनीया साध्वी श्री कल्याणमालाश्रीजी म. ने सिद्धि तप की तपस्या की। 

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50. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा

45. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा

जटाशंकर सिगरेट बहुत पीता था। उसकी पत्नी उसे बहुत समझाती थी। सिगरेट पीने से केंसर जैसी बीमारी हो जाती है! फेफडे गल जाते हैं! घर में थोडा धूआँ फैल जाय तो दीवार कितनी काली हो जाती है! फिर सिगरेट का धुआँ अपने पेट में डालने पर हमारा आन्तरिक शरीर कितना काला हो जाता होगा! धूऐं की वह जमी हुई परत मौत का कारण हो सकती है। इसलिये आपको सिगरेट बिल्कुल नहीं पीनी चाहिये। एक दिन जटाशंकर की पत्नी अखबार पढ रही थी। उसमें सिगरेट से होने वाले नुकसानों की विस्तार से व्याख्या की गई थी। वह दौडी दौडी अपने पति के पास गई और हर्षित होती हुई कहने लगी- देखो! अखबार में क्या लिखा है? सिगरेट पीने से कितना नुकसान होता है? जटाशंकर ने अखबार हाथ में लेते हुए कहा- कहाँ लिखा है! जरा देखूं तो सही! उसने अखबार पढा! पत्नी सामने खडी उसके चेहरे के उतार चढाव देखती रही! कुछ ही पलों के बाद जटाशंकर जोर से चिल्लाया- आज से बिल्कुल बंद! कल से बिल्कुल नहीं! पत्नी अत्यन्त हर्षित होती हुई बोली- क्या कहा! कल से सिगरेट पीना बिल्कुल बंद! अरे वाह! मजा आ गया। जटाशंकर चिल्लाते हुए बोला- अरी बेवकूफ! सिगरेट बंद का किसने कहा! मैं अख...

39. नवप्रभात -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

आवेश में आना बहुत आसान है। आवेश में निर्णय करना भी बहुत आसान है। और आवेश में किये गये निर्णय को क्रियान्वित करने के लिये और ज्यादा आवेश में आना भी बहुत आसान है। किन्तु यह स्थिति आदमी को बहुत नुकसान पहुँचाती है। क्योंकि आवेश का अर्थ होता है- किसी एक तरफ दिमाग का जड हो जाना! वह वही देखता है.. उसे उन क्षणों में और कुछ नजर नहीं आता। उसका दिमाग... उसके विचार.. बस! एक ही दिशा में दौडते हैं। दांये बांये, आगे पीछे की दृष्टि को जैसे ताला लग गया हो! वह एकांगी हो जाता है। और इस कारण उसका निर्णय सर्वांगीण नहीं हो पाता। उसका निर्णय मात्र उस समय की घटना या परिस्थिति पर ही आधारित होता है। वह उसके परिणाम के बारे में विचार नहीं करता। उसका निर्णय परिणामलक्षी नहीं होता। मुश्किल यह है कि निर्णय तो तत्काल के आधार पर लेता है, पर उसका निर्णय उसके पूरे जीवन को प्रभावित करता है। एक बार निर्णय होने के बाद उससे पीछा छुडाना आसान नहीं होता। इसलिये शान्ति और आनंद का पहला सूत्र है- आवेश में मत आओ! लेकिन बहुत मुश्किल है इस सूत्र के आधार पर चलना। क्योंकि जीवन विभिन्न राहों से गुजरता है। बहुत मोड हैं इसमें! त...

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Thought

Thought रात के अंधेरे से वही घबरातें हैं जिनके दिन पाप के साथ कट जाते हैं जो जीते हैं अपने विश्वासों के साथ उनके चेहरे अंधेरे में भी चमकते नजर आते हैं।