ता- 2 सितम्बर 2013, पालीताना
जैन श्वे- खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूधर मणि श्री मणिप्रभसागरजी म-सा- ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व के प्रथम दिन श्री जिन हरि विहार धर्मशाला में आराधकों व अतिथियों की विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा पर्युषण महापर्व जीने की कला सिखाने वाला दिव्य उद्घोष है । यह पारस्परिक प्रेम का झरणा प्रवाहित करने का संदेश देता है । जहाँ द्वैत है वहाँ दुर्गुण की उपस्थिति है । लेकिन अद्वैत का आराधक द्वैत में भी ऐसे जीवन सूत्र खोज लेता है, जिसकी सन्निधि में दुर्गुणों को प्रवेश ही नहीं मिलता । ऐसा जीवन सूत्र है- हर आत्मा को अपने जैसा जानना, मानना और स्वीकार करना ।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा- महाभारत में एक सूत्र है- 'आत्मन: प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्' अर्थात् जो हमें प्रतिकूल लगे वैसा व्यवहार अन्यों के साथ हमारा नहीं होना चाहिये । इस सूत्र में हर आत्मा को एक समान मानने का दिव्यनाद गूंजा है । भगवान् महावीर का जीवन दर्शन मन के पार चेतना की विशुद्धि के लक्ष्य का प्राण है । उनकी देशना है- सारे विकार मन के स्तर पर पैदा होते है। क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, ईष्र्या, स्वार्थ सब दुर्गुण मन की भूमि पर ही जन्म लेते हैं ।
उन्होंने कहा- स्वार्थी दृष्टिकोण ही विकारों को जन्म देता है । उन पलों में यदि व्यक्ति दूसरों की परिस्थिति में अपने आपको स्थित कर विचार करे तो विकृति का आविर्भाव ही नहीं हो सकता । साधना का पहला सूत्र है- सभी प्राणी समान है ! बाह्य भेदों का कोई महत्व नहीं है । धन किसी के पास ज्यादा है किसी के पास कम ! पर आत्मगत गुणों की दृष्टि से सभी समान है । भगवान् महावीर मनुष्य मनुष्य को ही एक समान नहीं कहा, उनका उद्घोष है- जहाँ चेतना है वहाँ समानता है । चेतना चाहे पेड पौधों की अविकसित हो अथवा मनुष्य की विकसित ! आखिर है तो वही !
परन्तु स्वार्थ की उपस्थिति में वैचारिक प्रवाह संकुचित हो जाता है । वह जिन परिस्थितियों में अपने बारे में जैसा सोचता है, वैसी ही परिस्थितियों में दूसरों के बारे में वैसा नहीं सोच पाता ।
स्वार्थ दृष्टिकोण अन्यों की क्षति की बात नहीं सोच पाता । वह येनकेन प्रकारेण अपनी समृद्धि का ही ख्याल रखता है । यह विकृत विचार धारा है । भगवान् महावीर ने कहा- तुम सबमें हो ! सब तुममें है । यही पर्युषण महापर्व का संदेश है । इस दृष्टिकोण के विकास में ही जीवन का उत्थान निहित है।
चातुर्मास प्रेरिका पूजनीया बहिन म. डाँ. विद्युत्प्रभाश्रीजी म. सा. ने कहा- पर्युषण महापर्व भक्ति का दिव्य संदेश है। श्री सिद्धाचल की पावन भूमि पर हमें पर्युषण की आराधना करने का अवसर मिला है। हमें अपने कषायों को देशनिकाला देना है। इसी में पर्युषण महापर्व की सार्थकता है।
आज प्रात: तलेटी हेतु शोभायात्रा का आयेाजन किया गया।
आज प्रवचन सभा में भारी भीड थी। 12 हजार फीट के विशाल पाण्डाल ठसाठस भरा हुआ था।
प्रेषक
दिलीप दायमा
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