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पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन
ता. 3 सितम्बर 2013, पालीताना
जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व के द्वितीय दिन श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्ाकों व अतिथियों की विशाल ध्ार्मसभा को संबोिध्ात करते हुए कहा- पर्युषण महापर्व के दिनों में अपने आचरण की विशुद्धता का संकल्प लेना है । ध्ार्म का प्राण अहिंसा है । यह एक निषेध्ाात्मक कि्रया है । अहिंसा का आध्ाार करूणा है । या यों कहें कि करूणा अहिंसा का परिणाम है । जैन दर्शन की नींव अहिंसा है । अहिंसा की परिभाषा अनेक मनीषियों ने अपने-2 दृष्टिकोणों के आध्ाार पर की है ।
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भगवान् महावीर ने अहिंसा को जीवन का रसायन कहकर उसकी गहरी और सूक्ष्म व्याख्या की है । किसी जीव को मारना तो हिंसा है ही, लेकिन किसी को शारीरिक अथवा मानसिक कष्ट पहुँचाने को भी भगवान् महावीर ने हिंसा कहा है । यह अहिंसा का अत्यंत सूक्ष्म रूप है, जो मानवीय करूणा और दया से आप्लावित है । अहिंसा ध्ार्म की जननी है । उसे ध्ार्म नहीं कहा जा सकता जिसे निमित्त बनाकर हिंसक गतिवििध्ायाँ चलती है । भारत ध्ार्मप्राण देश है । लेकिन बदलते स्वार्थ भरे संदर्भों और स्वार्थी मानसिकता ने हृदय के करूणा-स्रोत को शुष्क कर दिया लगता है । तन मानव का और मन कसाई का हो गया प्रतीत होता है । जिस भारतभूमि पर भगवान् महावीर ने अहिंसा का उद्घोष किया, भगवान् बुद्ध ने करूणा का झरणा प्रवाहित किया, भगवान् राम ने मानवीय मर्यादाओं का बोध्ा देते हुए मानवीय गुणों को महत्ता दी, भगवान् कृष्ण ने ध्ार्म की रक्षा के लिये जीवन भर पुरूषार्थ किया व कर्मयोग का पाठ पढाया, उसी भारत वर्ष की छाती पर स्थान-2 आज कसाईखानों के ध्ाब्बे चस्पा किये जा रहे हैं । स्वाद लोलुपता और विदेशी मुद्रा के लालच ने सत्ता को मदान्ध्ा कर दिया है ।
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आज के दूषित वातावरण में हम अपनी भारतीयता खो चुके हैं । पाश्चात्य अनुकरण की अंध्ाी दौड में हमने अपना गौरव गिरवी रख दिया है । जहाँ आजादी के समय भारत में 300 रजि. कत्लखाने थे वहाँ आज 32 हजार से अिध्ाक कत्लखाने हैं । कई यांत्रिक कत्लखाने खोल दिये गये हैं । रोज नये कत्लखाने खोलने के प्रस्ताव किये जा रहे हैं । विदेशी मुद्रा के आकर्षण में भारतीयता कराह रही है । जिस देश का जन्म ही अहिंसा की प्राण वायु के साथ हुआ है । वहाँ इस प्रकार का हिंसक तांडव नृत्य हमारी कौन-सी मानसिकता को स्पष्ट कर रहा है ।
चातुर्मास प्रेरिका पूजनीया बहिन म. डाँ. विद्युत्प्रभाश्रीजी म. सा. ने कहा- आज हमारे भारतीय चित्त पर हिंसा, स्वार्थ और अविश्वास का मैल जम गया है । पर्युषण महापर्व उस कचरे को हटाने के लिये झाडू रूप है । इसका निष्ठा से प्रयोग करना है । करूणा और अहिंसा के कि्रयान्वयन में अहिंसा के सात्विक और दृढप्रयोग से जीवन को करूणामय बनाना है ।
आज आयोजक परिवार लूणिया एवं दायमा परिवार की ओर से चातुर्मास आराधकों का भव्यातिभव्य संगीत लहरियों के साथ अभिनंदन किया गया।
प्रेषक
दिलीप दायमा
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