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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

दादा जिनचन्द्रसूरि जिनशासन के उज्ज्वल नक्षत्र हैं -उपाध्याय मणिप्रभसागर

इचलकरंजी ता. 10 सितम्बर 2014श्री मणिधारी जिनचन्द्रसूरि जैन श्वेताम्बर संघ के तत्वावधान में पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागर ने श्री सुखसागर प्रवचन मंडप में चतुर्थ दादा गुरुदेव श्री जिनचन्द्रसूरि की 401वीं पुण्य तिथि के अवसर पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा- जिन शासन के इतिहास में केवल चार दादा गुरुदेव हुए हैं। जिन्होंने अपने संयम, त्याग, तप और आराधना साधना के बल पर जिन शासन की महती प्रभावना की। उनमें प्रथम दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरि इतिहास के उज्ज्वल नक्षत्र हैं, जिन्होंने हजारों गोत्रों की स्थापना करके जिन शासन को पूर्ण रूप से समृद्ध बनाया। उनके महाचमत्कारी चरण अहमदाबाद में दादा साहेब ना पगला में बिराजमान है। उनके चरणों से ही वह पूरा क्षेत्र दादा साहेब ना पगला के नाम से सुप्रसिद्ध हैं। जहाँ हर सोमवार को हजारों श्रद्धालु दर्शन करके अपने जीवन को धन्य बनाते हैं।
उनकी पावन परम्परा में चौथे दादा गुरुदेव हुए। उनका समय सोलहवीं व सतरहवीं शताब्दी का संधिकाल था। मात्र नौ वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण करके मात्र सतरह वर्ष की उम्र में आचार्य बन कर संपूर्ण खरतरगच्छ के अधिपति बने। उनके जीवन का सबसे महान् कार्य था- संयम की सुरक्षा करना। उस समय यतियों का शिथिलाचारियों का बोलबाला बढ गया था। उन्होंने अपनी निश्रा के समस्त यतियों को साधु होने के लिये प्रेरित किया। और आदेश दिया कि यदि साधु नहीं बन सको तो गृहस्थ हो जाओ। मगर यति की श्रेणि नहीं रहेगी। वे दृढ कि्रयापात्र आचार्य थे। उन्होंने अपने ज्ञान व साधना के बल पर सम्राट् अकबर को प्रतिबोध देकर उसे अहिंसक बनाया। सम्राट् अकबर के जीवन पर उनका अनूठा प्रभाव था। इस बात का पूरा वर्णन आइने अकबरी में साहित्यकार अबुल फजल ने किया है। उन्होंने दादा गुरुदेव के जीवन की घटनाओं का वर्णन करते हुए कहा- दादा गुरुदेव ने जिनशासन की रक्षा के लिये अमावस्या को पूर्णिमा में बदल दी थी। तथा 12-12 कोस तक पूर्णिमा की तरह चंद्रमा का प्रकाश चारों ओर फैला था। इस अवसर पर मुनि मनितप्रभसागर ने सभा का संचालन करते हुए कहा- दादा गुरूदेव जिनचन्द्रसूरि ने पूरे भारत में भ्रमण करके जिनशासन की महिमा का विस्तार किया। उन्होंने ऐसी अनूठी साधना की थी कि चमत्कार अपने आप हो जाते थे। उन्होंने खरतरगच्छ के अर्थ का विस्तार करते हुए कहा- खरे शब्द का अर्थ है प्रखरता! जहाँ प्रखरता है, जहाँ खरी कि्रया और दृढ आचार का परिपालन है, वह खरतरगच्छ है। इसी परम्परा में चार दादा गुरुदेव हुए हैं। मुनि मेहुलप्रभसागर ने दादा गुरुदेव के जीवन के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा- इन्हीं दादा गुरुदेव ने श्री सिद्धाचल के दरबार में दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरि एवं जिनकुशलसूरि के चरण बिराजमान किये थे। इन्हीं दादा गुरुदेव की कृपा से 1700 पंच धातु की प्रतिमाओं की सुरक्षा हुई थी। वे प्रतिमाऐं आज भी बीकानेर के श्री चिंतामणि मंदिर के भोंयरे में बिराजमान है। इस अवसर पर संघ के सचिव रमेश लूंकड, पूर्व अध्यक्ष संपतराज संखलेचा, बाबुलाल मालू आदि ने भी गुरुदेव के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। चेन्नई से पधारे थानमल जावाल वाले, कोप्पल से आये विमल संखलेचा आदि का संघ की ओर से बहुमान किया गया।

प्रेषकरमेश लूंकडमहामंत्री

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