जन्म नाम- सुलतान कुमार
गौत्रा- रीहड़ गौत्र
माता- सौ. श्रिया देवी
पिता- श्रेष्ठि श्रीवन्तजी शाह ओसवाल
जन्म स्थान- खेतसर जोधपुर के पास, राज.
जन्म तिथि- वि.सं. 1595, चैत्रा वदि 12
दीक्षा- वि.सं. 1604, भोपालगढ़-बडलु, राज., दादावाडी स्थल पर
दीक्षित नाम- सुमतिधीर मुनि
गुरू नाम- खरतरगच्छ नायक श्री जिनमाणिक्यसूरिजी म.
आचार्य पद- वि.सं. 1612, भादवा सुदि 9
बीकानेर चातुर्मास- रांगडी चौक स्थित बडे उपाश्रय में
सूरिमन्त्र प्रदाता- आचार्य श्री जिनगुणप्रभसूरिजी म.
क्रियाद्धार- वि.सं. 1614, चैत्र वदि 7, बीकानेर
छम्मासी तपाराधना- वि.सं. 1615, महेवा नगर में
पौषधविधि प्रकरण टीका रचना- पाटण में वि.सं. 1616
पाटण में जयपताका- वि.स. 1617 कार्तिक सुदि 7 को अनेक आचार्य की उपस्थिति में
खंभात प्रतिष्ठा- वि.स. 1618
बीकानेर प्रतिष्ठा- वि.सं. 1622, वैशाख सुदि 3
पट्टधर शिष्य दीक्षा- वि.सं. 1623, मिगसर वदि 5
पट्टधर शिष्य- मानसिंह, दीक्षित नाम- मुनि महिमराज, आचार्य नाम- श्री जिनसिंह सूरि
प्रथम शिष्य- श्री सकलचन्द्र गणि
विद्वान प्रशिष्य- महोपाध्याय श्री समयसुंदरजी म.
मुगल सेना उपद्रव निवारण- वि.सं. 1624, नाडोलाई
बीकानेर प्रतिष्ठा- वि.सं. 1630
विपक्षी उपद्रव निवारण- वि.सं. 1633 में फलौदी पाश्र्वनाथ तीर्थ के ताले हस्त स्पर्श मात्रा से खोले
देराउर यात्रा व चातुर्मास- वि.सं. 1634 वर्त. पाकिस्तान
शास्त्रार्थ विजय- पाटण वि.सं. 1642
धर्मसागरीय उत्सूत्रों का खंडण- अहमदाबाद वि.सं. 1643
संघ यात्रा- वि.सं. 1644, सोमजी शाह संघपति, अहमदाबाद से पालीताणा
अहमदाबाद प्रतिष्ठा- वि.सं. 1646, विजयादशमी, शिवासोमजी के शान्ति जिनालय की
अकबर के शाही विनती पत्र- वि.सं. 1648
लाहौर भेजा- महिमराज मुनि, मुनि समयसुंदरजी आदि को
सिरोही में अमारी घोषणा- वि.सं. 1648 में प्रतिपूर्णिमा
जालोर चातुर्मास- वि.सं. 1648
संघ आगमन- नागौर में बीकानेर का संघ 300 पालखी व 400 वाहन में
लाहौर प्रवेश- वि.सं. 1648, पफाल्गुण सुदि 2, पुष्य योग, 31 पंडितवर्य मुनिवरों के साथ
अकबर द्वारा गुरू भक्ति- ‘बडे गुरू’ कहकर अहोभाव से प्रतिदिन प्रवचन श्रवण
अकबर द्वारा फरमान- शत्रुंंजय आदि तीर्थों को मंत्री कर्मचन्द बच्छावत के अधीन किया
अमारी प्रवर्तन- संपूर्ण भारत में विभिन्न राजाओं ने सूरिजी से प्रभावित हो अमारी घोषणा करवाई
पदारोहण- लाहौर में अकबर बादशाह की उपस्थिति में विधिविधानपूर्वक ‘युग प्रधान’ पद एवं आचार्य-उपाध्याय-वाचनाचार्य पद शिष्यों को प्रदान किए
अभयदान- 1 वर्ष तक समुद्र के जीवों को अभयदान घोषणा
चमत्कार- अकबर को भुगर्भ में 3 जीव बताना, काजी की टोपी को चलायमान करना, अमावस को चांद उगाना
चोर उपद्रव- हस्तलिखित ग्रन्थों को चोरी कर ले जाते चोरों को अन्धेपन का अहसास व ग्रन्थ पुन: समर्पित करने आए
पुन: फरमान- धर्मसागर लिखित ‘प्रवचन परीक्षा’ ग्रन्थ को शाही फरमान द्वारा निराकृत किया
मणिभद्र वश किया- चन्द्रवेली पत्तन में पंचनदी पर पांच पीर, मणिभद्र यक्ष, खोडिया क्षेत्रपालादि सेवा में उपस्थित हुए व सहायता का वचन दिया
अहमदाबाद प्रतिष्ठा- वि.सं. 1653 माघ सुदि 10 को प्रतिष्ठाएं करवाई, धन्ना सुथार की पोल, शामला पोल, टेमला की पोल में
शत्रुंजय में प्रतिष्ठा- वि.सं. 1654 में ज्येष्ट सुदि 11 को दादा दरबार के स्नात्र मंडप में श्री जिनदत्तसूरि व श्री जिनकुशल सूरि चरण युगल प्रतिष्ठा
सिरोही प्रतिष्ठा- वि.सं. 1657, माघ सुदि 10
महेवा प्रतिष्ठा- वि.सं. 1661, मिगसर वदि 5 को कांकरिया कम्मा द्वारा निर्मित मन्दिर की प्रतिष्ठा
बीकानेर प्रतिष्ठा- वि.सं. 1662, चैत्र वदि 7 को नाहटा की गवाड में शत्रुंजयावतार मन्दिर प्रतिष्ठा
बीकानेर प्रतिष्ठा- वि.सं. 1664 वैसाख सुदि 7 को महावीर जिनालय की प्रतिष्ठा
आगरा के दरबार में- वि.सं. 1669 में जहांगीर के शासन में साधु विहार खुलवाकर स्थानीय भट्ट को पराजित कर ‘सवाई युगप्रधान पदवी’ से सम्मानित किया
ग्रन्थ रचना- शाम्ब प्रद्युम्न चौपाई, बारह व्रत रास, पाश्र्वनाथ स्तोत्र, पंचतीर्थी स्तोत्र, अष्टमद चौपई आदि अनेक
आपके निश्रावर्ति साधु- प्राय: 2500
स्वशिष्य- 95 मुनि
प्रशिष्य- सैंकडों मुनि भगवंत
गोत्र स्थापना- प्रतिबोध दे 18 गोत्र स्थापित किये
चातुर्मास- राजस्थान में 29, गुजरात में 20, पंजाब में 5, दिल्ली व आगरा में 5 किये
अंतिम आराधना - 4 प्रहर का अनशन
अंतिम समय- वि.सं. 1670, आसोज वदि 2
अंतिम चातुर्मास- बिलाड़ा नगर
अंतिम आश्चर्य- आपके अग्नि संस्कार में मुंहपत्ति को चिंगारी का भी स्पर्श नहीं हुआ, सुरक्षित रही
चरण प्रतिष्ठा- वि.सं. 1670 के मिगसर वदि 10 को, अग्नि संस्कार स्थल पर स्तूप में चरणों की प्रतिष्ठा आपके पट्टधर श्री जिनसिंहसूरिजी द्वारा
प्रतिमा प्रतिष्ठा- चतुर्थ दादागुरूदेव की प्रतिमा की प्रतिष्ठा पूज्य आचार्य श्री जिनकांतिसागरसूरिजी म.सा. द्वारा
प्रतिमा प्रतिष्ठा समय- वि.सं. 2029 माघ सुदि 5
ऐसे महा प्रभावशाली गुरूदेव को अनंतश: वंदनायें समर्पित है।
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