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Showing posts from July, 2014

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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

Ichalkaranji Chaturmas

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दादा गुरुदेव का अर्थवान और लाडला संबोधन तो खरतरगच्छ के चार आचार्यों-जिनदत्तसुरिजी, मणिधारी जिनचंद्रसूरिजी, जिनकुशलसूरिजी और जिनचंद्रसूरिजी को ही प्राप्त हुआ है।

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जैन धर्म के सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार में पूर्वाचार्यों का पूर्ण योगदान रहा है! सभी गच्छों में महान आचार्य हुए है, जिन्होंने अपनी क्षमता बुद्धि-बल एवं तपोबल के आधार पर जिन शासन की महिमा फैलाई। लेकिन दादा गुरुदेव केवल खरतर गच्छ में ही हुए । बल्कि यों कहना चाहिए कि खरतरगच्छ के चार आचार्यों को ही दादा गुरुदेव का संबोधन मिला। अन्य गच्छों के महान आचार्यों के लिए कई अन्य विशेषण प्रयुक्त हुए। लेकिन दादा गुरुदेव का अर्थवान और लाडला संबोधन तो खरतरगच्छ के चार आचार्यों-जिनदत्तसुरिजी, मणिधारी जिनचंद्रसूरिजी, जिनकुशलसूरिजी और जिनचंद्रसूरिजी को ही प्राप्त हुआ है।  श्री जिनदत्तसूरिजी आदि चार आचार्यों का जो उपकारक जीवन रहा है उसी के परिणाम स्वरूप उन्हें दादा गुरुदेव का संबोधन मिला। अपने गुरुजनों की स्मृति में बनने वाले गुरु मंदिरों को गुरु मंदिर ही कहें, दादावाडी नहीं। समस्त भारत में दादावाडी का अर्थ यह सुप्रसिद्ध है कि यह जिनदत्तसूरिजी या मणिधारीजी या जिनकुशलसूरिजी का स्थान होगा। समाज ने उनके दिव्य व्यक्तित्व एवं योगदान का जो मूल्यांकन किया, वही दादा गुरुदेव के संबोधन के रूप में अभिव्यक्...

गज मंदिर, केशरियाजी

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गज मंदिर, केशरियाजी राजस्थान

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गज मंदिर, केशरियाजी राजस्थान

युगप्रधान दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरिजी खरतरगच्छ सम्प्रदाय एवं जिनशासन के प्रथम दादा गुरुदेव है। दादा गुरुदेव अपने गुणों और अनगिनत चमत्कारों के कारण समूचे श्वेताम्बर समाज में पूजनीय बन गए, क्योंकि प्रथम दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरिजी का सम्पूर्ण जैन समाज तथा देश के प्रति उपकार असीम है। इसलिए वे गच्छ, समाज तथा सम्प्रदाय की सीमाओं से निर्बंध है।

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युगप्रधान दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरिजी खरतरगच्छ सम्प्रदाय एवं जिनशासन के प्रथम दादा गुरुदेव है। दादा गुरुदेव अपने गुणों और अनगिनत चमत्कारों के कारण समूचे श्वेताम्बर समाज में पूजनीय बन गए, क्योंकि प्रथम दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरिजी का सम्पूर्ण जैन समाज तथा देश के प्रति  उपकार असीम है। इसलिए वे गच्छ, समाज तथा सम्प्रदाय की सीमाओं से निर्बंध है। श्री जिनदत्तसूरिजी जीवन श्रमण-संस्—ति का ऐसा जगमगाता आलोक पुंज है, जो शताब्दियों के काल-खण्ड प्रहवन के उपरांत भी हमें आत्म-विकास की राह दिखलाता है, हमारे चरित्र, व्यवहार तथा साधना का मार्ग आलोकित करता है।

लाखों परिवारों को जैन बनाने वाले प्रथम दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरीश्वरजी म. को पावन पुण्य तिथि पर भावभरी वंदना!

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श्री खरतरगच्छ चातुर्मास सूची - CHATURMAS LIST

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श्री कान्ति मणि विहार, नाशिक नाशिक में दादावाडी की प्रतिष्ठा संपन्न

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पूजनीया गुरुवर्या खान्देश शिरोमणि श्री दिव्यप्रभाश्रीजी म.सा. की शिष्या पूजनीया गुरुवर्या श्री विश्वज्योतिश्रीजी म.सा. की पावन प्रेरणा से नाशिक आडगांव में नवनिर्मित श्री मुनिसुव्रतस्वामी जिन मंदिर एवं श्री जिनकुशलसूरि दादावाडी की अंजनशलाका प्रतिष्ठा ता. 18 जून 2014 को अत्यन्त आनंद व उल्लास के दिव्य क्षणों की पावन उपस्थिति में संपन्न हुई।

नाशिक आडगांव स्थित कान्ति मणि नगर में मूलनायक परमात्मा की दिव्य प्रतिमा

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नाशिक की इस दादावाडी में मूलनायक के रूप में मुनिसुव्रतस्वामी भगवान को बिराजमान करने का निश्चय किया गया था। परमात्मा की प्रतिमा श्याम वर्ण की होनी चाहिये। श्याम वर्ण का पाषाण भेंसलाना का उपलब्ध्ा होता है। पर उसमें प्राय: सफेद बिन्दु निकल आते हैं। इसके लिये तय किया गया कि उत्तम कोटि का कसौटी तुल्य गहन श्याम वर्ण का दिव्य पाषाण बेल्जियम से मंगवाया जाये। इसके लिये हमने नगर निवासी श्री उत्तमचंदजी बरमेशा से संपर्क किया।

42वां दीक्षा दिवस मनाया गया l आज का दिन मेरे लिये चिंतन का दिन है कि 41 वर्ष संयम के पूर्ण हुए हैं। 42वें वर्ष में प्रवेश हुआ है। संयम के लक्ष्य के प्रति मैं कितना आगे बढा!

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पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. का 42वां दीक्षा दिवस नाशिक आडगांव स्थित कान्ति मणि नगर में ता. 19 जून 2014 को मनाया गया। इस उपलक्ष्य में विशाल सभा का आयोजन किया गया। सभा को संबोध्ति करते हुए पूज्य गुरुदेवश्री ने फरमाया- आज मेरी मां, बहिन एवं मेरा दीक्षा दिवस है। हम तीनों की दीक्षा वि. सं. 2030 आषाढ वदि 7 ता. 23 जून 1973 को पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवंत श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में पालीताना में हुई थी। मेरी दीक्षा मेरी मां की कृपा से हुई।

जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.

घटाशंकर घबराकर डाँक्टर जटाशंकर के पास पहुँचा था। क्योंकि वह पिछले दो तीन दिनों से अनुभव कर रहा था कि उसकी टांगें नीली पड रही है। चलने की ताकत न रही। उसने टेक्सी पकडी और डाँक्टर के पास गया। डाँक्टर ने उसकी टांगें चेक की। उसके माथे पर चिंता की सलवटें पड गई। उसने कहा - भैया ! तेरी टांगों में तो जहर फैल रहा है। इन्हें काटना होगा। यदि जल्दी ही यह निर्णय नहीं किया गया तो जहर पूरे शरीर में फैल जायेगा। तुम्हें घंटे दो घंटे में ही तय करना होगा। तुम्हारे दोनों ही पांव जहरीले हो चुके हैं। एक विशेष प्रकार का जहर फैल गया है। जो नीचे से उपर की ओर फैलता जा रहा है।

हम किस ‘प्राप्ति’ के लिये अपनी सांसों को दांव पर लगा रहे हैं। उस प्राप्ति के लिये जो हर जन्म में उपलब्ध है या उस ‘प्राप्ति’ के लिये जो केवल और केवल इसी जन्म में संभव है।

नवप्रभात - लक्ष्य का निर्धारण करें   -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. वस्तु का मूल्य नहीं है , मूल्य उसके उपयोग का है। उपयोग पर ही आधरित है कि आपने उस वस्तु को कितना मूल्य दिया .. उसका कितना महत्व स्वीकार किया। पत्थर वही है , उससे पुल का निर्माण भी किया जा सकता है। और दीवार भी बनाई जा सकती है। पुल दो किनारों को जोडने का कार्य करता है। तो दीवार एक को दो में विभक्त करने का ! पाषाण खण्ड वही था। उसका उपयोग कैसे किया , इसी में उसके महत्व का बोध होता है। पैसा वही है , उससे व्यक्ति मंदिर में चढाने के लिये अक्षत भी खरीद सकता है।