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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

श्री कान्ति मणि विहार, नाशिक नाशिक में दादावाडी की प्रतिष्ठा संपन्न

पूजनीया गुरुवर्या खान्देश शिरोमणि श्री दिव्यप्रभाश्रीजी म.सा. की शिष्या पूजनीया गुरुवर्या श्री विश्वज्योतिश्रीजी म.सा. की पावन प्रेरणा से नाशिक आडगांव में नवनिर्मित श्री मुनिसुव्रतस्वामी जिन मंदिर एवं श्री जिनकुशलसूरि दादावाडी की अंजनशलाका प्रतिष्ठा ता. 18 जून 2014 को अत्यन्त आनंद व उल्लास के दिव्य क्षणों की पावन उपस्थिति में संपन्न हुई।



प्रतिष्ठा महोत्सव का प्रारंभ 11 जून को पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. के मंगल नगर प्रवेश से हुआ। पूज्यश्री अपने शिष्य पूज्य मुनिराज श्री मेहुलप्रभसागरजी म.सा. के साथ ता. 4 को सूरत में श्री शंखेश्वर पाश्र्वनाथ मंदिर की प्रतिष्ठा संपन्न करवाकर उग्र विहार कर नवसारी, वांसदा, सापुतारा होते हुए नाशिक पध्ाारे।
ता. 11 को ही परमात्मा मुनिसुव्रतस्वामी आदि नूतन जिन प्रतिमाओं, गुरु प्रतिमाओं व देव देवी प्रतिमाओं का मंगल नगर प्रवेश रखा गया था।
ता. 10 जून को रात्रि में हुई जोरदार बारिश ने सभी के मुख मंडल पर हर्ष व चिंता की रेखाऐं अंकित कर दी थी। हर्ष इस बात का था कि प्रवेश की पूर्व संध्या पर अिध्ाष्ठायक देवों द्वारा अमृत-छिडकाव के द्वारा शुद्धिकरण किया जा रहा था।
चिंता इस बात की थी कि कल से महोत्सव प्रारंभ हो रहा है। बरसात से इस आयोजन में अव्यवस्था न हो! वैसे नाशिक में पिछले 10-15 दिनों से निरन्तर बरसात का दौर जारी ही था। ट्रस्टीगणों ने अपनी चिंता गुरुवर्या श्री विश्वज्योतिश्रीजी म.सा. के सामने रखी थी कि मौसम विज्ञानियों ने 14 से 18 तक नाशिक में भारी बरसात की संभावना व्यक्त की है। इस कारण सभी चिंताग्रस्त तो थे ही कि प्रतिष्ठा का कार्यक्रम बिना किसी विघ्न या अव्यवस्था के आनंद के साथ कैसे परिपूर्ण होगा!
शामियाने का बंदोबस्त पूर्ण रूप से वाटरप्रूफ किया गया था। पर उस समय सभी आनंदित हो उठे जब परमात्म-प्रतिमाओं का एवं पूज्य गुरुदेवश्री का मंगल प्रवेश कार्यक्रम बादलों की आँखमिचौनी के साथ पूरा हो गया। दादावाडी का यह पहला कार्यक्रम था। बुध्ावार होने से छुट्टी का दिन भी नहीं था। फिर भी लोगों की विशाल उपस्थिति प्रसन्नता का संचार कर रही थी।
समारोह का संचालन करते हुए सौ. प्रीति जैन ने कहा था- आज मैं सकल श्रीसंघ की ओर से पूजनीया प्रेरणादात्री गुरुवर्याश्री को जन्म दिन की बध्ााई देना चाहती हूँ। इस उद्घोषणा से पूरी सभा में हर्ष की एक लहर दौड गई। बध्ााई देने वालों की होड लग गई।
श्रीमती कविता लोढा ने कविता द्वारा गुरुवर्याश्री को बध्ााई दी। ललिता लोढा एवं मीना सुराणा ने अपने भावों को व्यक्त करते हुए कहा- विश्व में ज्योति की तरह जगमगाओ गुरुवर्या!
पूज्यश्री ने श्री कान्ति मणि विहार की प्रेरिका साध्वी विश्वज्योति को जन्म दिन की बध्ााई देते हुए उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना की। उन्होंने दादावाडी का महत्व बताते हुए कहा- जिन शासन में अनेक गच्छों में अनेक आचार्य हुए हैं। समस्त आचार्यों ने अपने अपने क्षेत्र में शासन प्रभावना के अनूठे कार्य किये हैं। साहित्य के क्षेत्र में, साध्ाना के क्षेत्र में, तपस्या के क्षेत्र में, विद्वत्ता के क्षेत्र में कार्य करने वाले बहुत आचार्य हुए हैं। परन्तु जिन शासन की अभिवृद्धि करने वाले... जैन बनाने वाले दादा गुरुदेव तो जिनदत्तसूरि आदि चार ही हुए हैं।
दादा जिनदत्तसूरि ने अपने जीवन का लक्ष्य केवल और केवल शासन के विस्तार का बनाया था। उन्होंने पूरे भारत में भ्रमण किया और लाखों परिवारों को अपने उपदेश से व्यसन मुक्त करके उन्हें वीतराग परमात्मा के शासन व ध्ार्म से जोडा था। यदि दादा गुरुदेव की हस्ती न होती तो आज ये जैनों की बस्ती न होती। हमारे पूर्वजों को जैन बना कर विभिन्न गोत्र प्रदान किये थे। आज हमें इस बात का गौरव है कि हमें परमात्मा का शासन मिला है।
पूजनीया गुरुवर्याश्री विश्वज्योतिश्रीजी म.सा. ने कहा- आज जीवन की साध्ाना फलीभूत होने जा रही है। पूज्य गुरुदेवश्री का पदार्पण हुआ है। भले इस दादावाडी की प्रेरणा में मेरा नाम आता हो, पर यह सब पूज्य गुरुदेवश्री का ही है।
ध्ानंजय जैन ने भी अपने संस्कृत निष्ठ शब्दों द्वारा पूज्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।
लोग सब प्रतिमाओं को निहार रहे थे। प्रतिमाओं का पाषाण जितना उत्तम कोटि का था, उसका निर्माण भी उतना ही सौन्दर्य से युक्त कलात्मक था। प्रतिमाऐं जैसे मुँह बोल रही थी।
दोपहर में ठीक समय पर पूज्यश्री के सानिध्य में कुंभस्थापना, दीपस्थापना व जवारारोपण का विध्ाान किया गया। इस विध्ाान से पूर्व जिस नगर में ये वििध्ा विध्ाान संपन्न हो रहे थे, उस नगर का जिसे नाम दिया गया था कुशल कवीन्द्र नगर, का उद्घाटन किया गया।
कुंभ स्थापना की महिमा समझाते हुए पूज्यश्री ने कहा- हमें अपने जीवन में पूर्णता प्राप्त करनी है। अपूर्ण तो हम जन्मों जन्मों से है। पूर्णता प्राप्त करने के लिये हम इस अष्टमंगल वाले घट को अखंड जल ध्ाारा से पूर्ण करते हैं। सुख हमें अखंड चाहिये। जो खंड खंड हो, उसे सुख कहा भी नहीं जा सकता। इसलिये इस कुंभ को अखंड ध्ाारा से भरा जाता है। शांति का पाठ हमारे उद्देश्य को प्रकट कर रहा है। हमारे हर विध्ाान का उद्देश्य विश्व शांति है।
दीपस्थापना इस लिये की जाती है क्योंकि इस जगत में अंध्ोरा है। हमारे चित्त में अंध्ोरा है। प्रकाश पैदा हो। ताकि अंध्ाकार का नाश हो। यह दीप भी अखंड चाहिये। ताकि प्रतिष्ठा के इस मंगल कार्यक्रम में विघ्न रूप अंध्ोरे का प्रवेश न हो। जवारारोपण विकास का प्रतीक है। जैसे जवार बोए जाने के बाद अभिवृद्धि को प्राप्त करते हैं, वैसे ही हमारी चेतना का, आनंद का लगातार विकास हो।
ता. 12 को श्री शंातिनाथ पंचकल्याणक पूजा पढाई गई। जबकि अगला 13 तारीख का दिन वििध्ा विध्ाान की अपेक्षा से अत्यन्त महत्वपूर्ण दिन था।
अंजनशलाका प्रतिष्ठा एक अनूठी प्रक्रिया है। जिन शासन का यह सर्वोच्च महाविध्ाान है। इस प्रक्रिया के प्रारंभ में विविध्ा प्रकार की पूजाऐं करनी होती है। आज 13 ता. को वे सारे विध्ाान किये गये। जिनमें नंद्यावर्त पूजन का विध्ाान स्वयं प्रतिष्ठाचार्य उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने किया। इसके साथ ही क्षेत्रपाल पूजन, भैरव पूजन, चौसठ योगिनी पूजन, घंटाकर्ण पूजन, नवग्रह पूजन, दशदिक्पाल पूजन, अष्ट मंगल पूजन, चार देवी पूजन, लघु सिद्धचक्र पूजन, लघु वीशस्थानक पूजन आदि मांत्रिक विध्ाान किये गये। समस्त सम्यक्त्वी देव देवियों का आह्वान करके उनकी पूजा अर्चना की गई। लाभार्थी परिवार इन पूजाओं में उच्चरित हो रहे मंत्रोच्चारणों की दिव्य शब्दावली व आभामंडल से अत्यन्त आह्लादित हो रहे थे। दोपहर में श्री आदिनाथ पंचकल्याणक पूजा पढाई गई।
ये दोनों दिन व्यवस्थापन, अवलोकन, संशोध्ान, कार्यान्वयन आदि में बीते। समारोह की पूरी रूपरेखा का वर्गीकरण किया गया। व्यवस्था समितियों की बैठकें बुलाई गई। कार्यकर्ताओं में कार्य का विभाजन कर उन्हेंं जिम्मेदारी सौंपी गई। कार्यक्रम का प्रारंभ 14 जून से हुआ।
ता. 14 जून 14
सूर्योदय होने के साथ मंगल मुहूत्र्त में आज सबसे पहले च्यवन कल्याणक का विध्ाान किया गया। पूज्यश्री ने कुंभस्थापना, दीपस्थापना आदि विविध्ा स्थापनों पर वासचूर्ण डाला। और उसके बाद वज्रपंजर के साथ ही विध्ाान प्रारंभ हुआ। इस विध्ाान का अवलोकन करने के लिये बडी संख्या में लोग आये हुए थे। शहर से 10 कि.मी. की दूरी होने पर भी इतनी जल्दी लोगों के इस समूह को देखकर आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता का अनुभव हो रहा था।
पूज्यश्री ने कल इस कल्याणक की महिमा समझाई थी। कल्याणक महोत्सव तो हमेशा देखते हैं। पर कल्याणक विध्ाान देखने का आनंद अपना अलग ही है।
विशिष्ट मंत्रोच्चारणों के साथ शेखरजी सर्राफ एवं श्रीमती सौ. कुशलदेवी सर्राफ की माता पिता के रूप में तथा श्री संदीपजी सर्राफ एवं श्रीमती सौ. ज्योतिदेवी की सौध्ार्मेन्द्र इन्द्राणी के रूप में स्थापना की। जनोई ध्ाारण करवाई गई। माता पिता व इन्द्र इन्द्राणी की मर्यादा समझाई गई। इन पांच दिनों के लिये आपको अपना वर्तमान नाम व नाम से जुडी व्यवस्थाओं को गौण करना है। और परमात्मा की भक्ति के लिये जो आज आपको जिम्मेदारी सौंपी गई है, उसे ही स्मरण में रखना है।
और सचमुच माता पिता, इन्द्र इन्द्राणी झूम रहे थे। नाच रहे थे। गौरव का अनुभव कर रहे थे। अपने सौभाग्य की सराहना कर रहे थे।
प्रतिष्ठाचार्य के रूप में पूज्य गुरुदेवश्री की एवं ध्ार्माचार्य के रूप में वििध्ाकारक हेमंतजी जैन ;मक्षीद्ध की प्रतिष्ठा की गई। स्वर्णमुद्रा व शृंखला से गुरुपूजन किया गया।
पूज्यश्री ने वििध्ा विध्ाान के साथ गोदुग्ध्ा से परिपूर्ण चांदी की कोठी में परमात्मा की पंचध्ाातुमय प्रतिमा को बिराजमान किया गया। वर्णाक्षर लेखन का विध्ाान किया गया। वासचूर्ण का पुन: पुन: प्रयोग किया गया। माता द्वारा चौदह स्वप्न दर्शन का संक्षिप्त विध्ाान किया गया।
उसके बाद काफिला चला राजगृही नगरी की ओर! राजगृही नगर एवं पवित्र दिव्य मणि नगर के उद्घाटन के बाद च्यवन कल्याणक महोत्सव प्रारंभ हुआ। सुप्रसिद्ध संगीतकार विनीत गेमावत ने अपनी जानी पहचानी शैली में संगीत के दिव्य सुरों के साथ कल्याणक महोत्सव का आगाज किया।
पूज्यश्री ने अपने मांगलिक प्रवचन में कहा- परमात्मा के कल्याणक हमारा कल्याण करने वाले हैं। हमें कुछ समय के लिये चौथे आरे में प्रवेश करना है। उन्हीं भावों से मुनिसुव्रतस्वामी की जीवन कथा को निहारना है।
राजदरबार में पारस्परिक वार्तालाप, माता पद्मावती को चौदह स्वप्न आना, चौदह बालकुमारिकाओं द्वारा भावपूर्ण नृत्य के साथ चौदह स्वप्न दर्शन, इन्द्रासन कंपन, शक्रस्तव का पाठ, माता पद्मावती द्वारा पिता सुमित्र नरेश्वर को स्वप्न कथन, स्वप्नपाठक द्वारा फल कथन आदि के जीवन्त दृश्यों ने पूरी सभा को उस काल के वातावरण में प्रवेश करने व जीने को जैसे मजबूर कर दिया था। दोपहर में पंच परमेष्ठी पूजा पढाई गई।
ता. 15 जून 14
ता. 15 को प्रात: 7 बजे परमात्मा के जन्म कल्याणक का विध्ाान किया गया। कुल देवी माता अंबिका के पूजन के पश्चात् परमात्मा के जन्म विध्ाान के रूप में रजत-पात्र में बिराजमान परमात्मा की प्रतिमाजी को प्रकट किया गया। भक्ति का एक अनूठा, संवेदनशील भावप्रवण दृश्य निर्मित हुआ। परमात्मा के माता पिता, इन्द्र इन्द्राणी सभी लोग झूम रहे थे। पिता बने श्री शेखरजी भावुकता से भरी भक्ति की गंगा में बह रहे थे। उन्होंने पुत्र-जन्म की बध्ााई के रूप में वििध्ाकारक हेमंत जैन एवं संगीतकार कश्यप पाठक को एक एक स्वर्ण मुदि्रका अर्पित की।
राजगृही नगर में ठीक नौ बजे कल्याणक महोत्सव प्रारंभ हुआ। जन्म कल्याणक के अन्तर्गत 56 दिक्कुमारिकाओं का आगमन, नृत्य, सूतिकर्म विध्ाान, रक्षापोटली बंध्ान आदि वििध्ा संपन्न होने के पश्चात् इन्द्राणी का आगमन, नृत्य व तिलक का विध्ाान हुआ। उसके बाद इन्द्रासन कंपन, शक्रस्तव, पांच रूपों के साथ परमात्मा को लेकर मेरूपर्वत की ओर गमन, 250 अभिषेक, स्वर्ण-वृष्टि आदि वििध्ा विध्ाानों को देव देवियों के रूप में देखा। देवलोक-सा दृश्य छा गया था। इन्द्र बने श्रावक परमात्मा के अभिषेक कर ध्ान्यता का अनुभव कर रहे थे।
आज पाश्र्वनाथ पंच कल्याणक पूजा पढाई गई।
ता. 16 जून 2014
आज कार्यक्रम बहुत लम्बा था। दो दिन का कार्यक्रम एक दिन में पूरा करना था। जन्म बध्ााई से राजदरबार का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ, जो नामकरण, पाठशालागमन, मामेरा, विवाह, राज्याभिषेक व नवलोकान्तिक देवों की विनंती के साथ पूरा हुआ। घटिका यंत्र उस समय दो बजा रहा था। फिर भी लोग बडे चाव से सारे दृश्य देख रहे थे, संवाद सुन रहे थे।
हमने कितनी बार अंजनशलाकाऐं देखी होगी... वे ही दृश्य हैं, वे ही संवाद है... मात्र पात्र बदलते हैं... कथा... पटकथा वही रहती है। फिर भी हमारा मन इन दृश्यों से नहीं भरता। मन उसी उत्सुकता और रस से निहारता है। यह महिमा परमात्मा के कल्याणक की है। जब भी देखो... देखते ही रह जाते है। जितनी बार देखो.. और अिध्ाक आनंद की अनुभूति होती है।
राजज्योतिषी के संवाद और उनके अभिनय ने पूरी सभा को हंसने पर ही नहीं, अपितु ठहाके लगाने पर मजबूर किया था। तो इन्द्र महाराजा के क्रोध्ा और उसके बाद पश्चात्ताप के अभिनय ने इन्द्र महाराजा के साक्षात् विनय को प्रकट किया था। माता पिता तो सचमुच के महाराजा और महारानी हो गये थे। उनके अभिनय में कृत्रिमता का कहीं आभास नहीं हो रहा था। मामा मामी, बहिन बहिनोई, भूआ भूआडोजी, सास ससुर आदि सारे पात्र जैसे जीवंत हो उठे थे। राजदरबारी महामंत्री, नगरसेठ, खजांची, भंडारी, सेनापति, छडीदार आदि अपने अभिनय के प्रति बडे गंभीर थे।
ता. 17 जून 14
और दूसरे दिन दीक्षा कल्याणक का तो दृश्य ही अनूठा था। ता. 17 जून 2014! आज परमात्मा के दीक्षा कल्याणक का वरघोडा! पूरा खान्देश जैसे उतर गया था। पूजनीया गुरुवर्या श्री दिव्यप्रभाश्रीजी म.सा. का खान्देश में विचरण व चातुर्मास काफी हुए हैं। प्रदेश में अपनत्व भरा भाव है। मुंबई, भायंदर, भिवंडी, ठाणा, कल्याण, सूरत, बडौदा, बिजयनगर, चेन्नई, बैंगलोर, अहमदाबाद, हैदराबाद, पूना, जलगांव, नंदुरबार, शहादा, तलोदा, वाण्याविहिर, अक्कलकुआं, सारंगखेडा, खापर, सेलंभा, दोंडाइचा, ध्ाूलिया, ओझर, चांदवड आदि कितने ही गांवों के संघ पध्ाार गये थे। यहाँ की सारी व्यवस्थाऐं ट्रस्ट मंडल के मार्गदर्शन में तमन्ना इवेन्ट के राहुल जैन व उनकी टीम ने सम्हाल रखी थी। पूरा गु्रप विनय और मुस्तैदी के साथ लगा हुआ था।
खुशनुमा वातावरण था। बादलों की आंखमिचौनी के बीच भारी दबदबे के साथ परमात्मा का वरघोडा प्रारंभ हुआ। वरघोडे की विशिष्टता थी कि परमात्मा के रथ को युवा लोग ही खींच रहे थे। खींच क्या रहे थे, अपनी श्रद्धा और समर्पण के भावों को अभिव्यक्ति दे रहे थे। जिसे देखो, नाच रहा था। मौसम ने पूरे वातावरण को वातानुकूलित कर दिया था। नौ बजे रवाना हुआ वरघोडा साढे ग्यारह बजे राजगृही नगर में पहुँचा।
सभा का प्रारंभ हुआ। सर्वप्रथम पूजनीया प्रेरणादात्री गुरुवर्या श्री विश्वज्योतिश्रीजी म.सा. ने अपने हृदय के उद्गार प्रकट किये। इस संपूर्ण निर्माण व प्रतिष्ठा महोत्सव का सारा श्रेय पूजनीया गुरुवर्याश्री का ही था। उनका पुरूषार्थ सार्थक हो रहा था। वे भावाभिभूत हो रहे थे। उन्होंने अपने प्रवचन के प्रारंभ में अपने गुरुदेवों व गुरुवर्याओं का स्मरण किया। अपने अन्तर के दर्द को अभिव्यक्ति देते हुए कहा- आज मुझे अत्यन्त प्रसन्नता होती यदि मेरी गुरुमैया पूजनीया दिव्यप्रभाश्रीजी म.सा. यहाँ पध्ाारती। स्वास्थ्य की अनुकूलता न होने से वे नहीं पध्ाार पाई। पालीताना की पावन भूमि में बिराजमान गुरुवर्याश्री वहीं से आशीर्वाद की अमृतवर्षा कर रही है। आज उनका स्मरण मेरे रोम रोम को भिगो रहा है।
उन्होंने फरमाया- बचपन में छोटी उम्र में मेरी दीक्षा हुई। यह मेरी गुरुवर्याश्री की ही मेहनत व कृपा का परिणाम है कि मैं कुछ योग्य हो पाई। मुझे बचपन से ही आगे बढने की प्रेरणा देने वाले मेरी श्रद्धा के केन्द्र पूज्य गुरुदेवश्री मणिप्रभसागरजी म.सा. की अमीवर्षा से ही यह सब कुछ संभव हुआ है।
इस परिसर के निर्माण में मैं तो निमित्त मात्र हूँ। यह सब उनकी कृपा का ही परिणाम है। इसलिये पूजनीया गुरुवर्याश्री ने यह पूरा परिसर पूज्य गुरुदेवश्री को समर्पित किया है। इसलिये इस परिसर का नाम श्री कान्ति मणि विहार है।
पूजनीया गुरुवर्या श्री दिव्यप्रभाश्रीजी म.सा. पालीताना में बिराजे बिराजे ही अपनी मंत्र साध्ाना और इष्ट बल के आध्ाार पर सकारात्मक उफर्जा और संकल्प शक्ति की दिव्य तरंगें यहाँ प्रेषित कर रहे हैं। उनकी पूज्य गणनायकजी महाराज के प्रति विशेष श्रद्धा है। उन्हें उनका इष्ट बल प्राप्त है।
पूज्य गुरुदेवश्री ने अपने प्रवचन में कहा- आज मैं साध्वी विश्वज्योतिश्री को बहुत बहुत बध्ााई देना चाहता हूँ। जिसने नाशिक जैसे शहर में जहाँ दादा गुरुदेव के अनुयायी बहुत कम संख्या में वर्तमान है, दादावाडी का अद्भुत व अनूठा निर्माण करवा कर एक कमी की पूर्ति की। उसने छोटी उम्र में बहुत प्रगति की है। मैं दादा गुरुदेव से प्रार्थना करता हूँ कि वह इसी प्रकार प्रगति के पथ पर बढती हुई आत्म कल्याण करे। मेरे भाव आशीर्वाद सदा इसके साथ है। द्रव्य आशीर्वाद के रूप में मैं आज सकल संघ के समक्ष स्फटिक रत्न की यह दिव्य प्रतिमा इसे भेंट करना चाहता हूँ।
और उस समय बहुत भावनाशील दृश्य उपस्थित हुआ जब पूज्यश्री ने अपने करकमलों द्वारा परमात्मा पाश्र्वनाथ की अनूठी प्रतिमा पूजनीया साध्वी श्री विश्वज्योतिश्रीजी म. को भेंट की।
पूज्य गुरुदेवश्री की आंखें वात्सल्य-प्रेम से सराबोर थी तो पूजनीया गुरुवर्याश्री की आंखें कृतज्ञता और समर्पण के गीत गा रही थी।
पूज्यश्री ने उस समय एक अनूठी बात कही- नाशिक की यह दादावाडी साध्वी विश्वज्योतिश्री की प्रेरणा का परिणाम है। उसके माता पिता ध्ान्य है, जिसने ऐसे रत्न को जन्म दिया। आज इस सभा में उसका पूरा सांसारिक परिवार आया हुआ है। साध्वी विश्वज्योतिश्री की पूजनीया माताजी का अभिनंदन किया जाना चाहिये। संघ की ओर से माताजी व भाई का बहुमान किया गया।
पूज्यश्री ने कहा- नाशिक दादावाडी की यह भूमि अमर हो गई। भूमिदाता परिवार श्रीमती कमलाबाई मोतीलालजी सराफ कवाड परिवार, नाशिक एवं ध्ानराजजी ध्ार्मचंदजी रांका परिवार हैदराबाद... दोनों श्वसुर-जामाता का यह भूमिदान यशस्वी हो गया। जिस भूमि ने परमात्मा एवं दादा गुरुदेव को ध्ाारण किया, मुंबई-आगरा मुख्य मार्ग पर हाईवे टच यह विहार ध्ााम अत्यन्त उपयोगी होने वाला है। यहाँ जो भी व्यक्ति आया है, उसने भूरि भूरि प्रशंसा अनुमोदना की है।
श्री शेखरजी ने इस परिसर के निर्माण में कठोर परिश्रम किया है। न दिन देखा.. न रात देखी! पूरा समय दिया। उनके पुरूषार्थ की जितनी अनुमोदना की जाये, कम होगी। मंत्री श्री रमेशजी निमाणी, खजिनदार श्री विनोदजी मेहता, ट्रस्टी डाँ. श्री पुखराजजी भंसाली आदि ने पूरी मेहनत की है। इन सब ट्रस्टियों व कार्यकर्ताओं की मेहनत के परिणाम स्वरूप ही प्रतिष्ठा का अनूठा इतिहास रचा गया।  
उसके बाद परमात्मा का दीक्षा कल्याणक विध्ाान किया गया। वातावरण संयम-मय हो गया था। पूज्यश्री ने दीक्षा कल्याणक की व्याख्या करते हुए कहा- संयम ही मोक्ष प्रदाता है। संयम है तो मोक्ष है। संयम के बिना मोक्ष नहीं। तीर्थंकर जैसे तीर्थंकर जो जन्म के साथ तीन ज्ञान के स्वामी होते हैं... जिनका गृहस्थ जीवन भी अनासक्त होता है.. ऐसे तीर्थंकर भगवान को भी संयम तो स्वीकार करना ही पडा। संयम स्वीकार कर पूरे जगत को उन्होंने संदेश दिया है कि संयम के बिना आत्मा का उद्धार नहीं है।
माता, पिता, कुलमहत्तरा और बहिन की प्रस्तुति हृदय से हो रही थी। उनकी अभिव्यक्ति ने सारी सभा को जेब से रूमाल निकालने पर मजबूर कर दिया। सबकी आँखें भरी हुई थी।
माता पिता ऐसे बोल रहे थे जैसे वे अभिनय नहीं कर रहे हो, बल्कि साक्षात् जी रहे हों। लग रहा था जैसे सचमुच उनका पुत्र संयम ग्रहण करने जा रहा है।
एक भक्ति भरा मौन छाया हुआ था। संयम की अनुमति रूप प्रसंग पूर्ण होने के पश्चात् पूज्यश्री मंच पर पध्ाारे और परमात्मा की दीक्षा वििध्ा संपन्न की। अपने हाथों सारे आभूषण उतारे... पंचमुष्टि लोच किया। और ओम् नम: सिद्धम् का उच्चारण कर तीन बार करेमि भंते ;भंते शब्द नहीं बोला गयाद्ध सूत्र का उच्चारण किया। श्लोक और मंत्र पाठ कर वासचूर्ण डाला। इन्द्र महाराज ने देवदुष्य वस्त्र परमात्मा के बांये कंध्ो पर रखा और परमात्मा चार ज्ञान के स्वामी हो गये।
पूज्यश्री ने विस्तार से समझाया कि दीक्षा ग्रहण के अवसर पर परमात्मा सबसे पहले सिद्धों को नमस्कार क्यों करते हैं! परमात्मा की आत्मा जब अव्यवहार राशि में थी। तब किसी न किसी अनाम सिद्ध भगवंत ने निर्वाण पाया होगा और उनकी आत्मा अव्यवहार राशि से व्यवहार राशि में आई होगी। यह उपकार सिद्ध भगवंत का है। उनके प्रति अपनी कृतज्ञता समर्पित करने परमात्मा सिद्ध भगवंत को नमस्कार करते हैं।
प्रश्न है कि करेमि भंते इस पाठ में भंते शब्द का उच्चारण क्यों नहीं करते! इसलिये नहीं करते क्योंकि भंते शब्द गुरू का परिचायक है। परमात्मा का इस भव में कोई गुरू नहीं होता। वे स्वयं संबुद्ध होते हैं।
पूज्यश्री ने परमात्मा मुनिसुव्रतस्वामी के पूरे घटनाक्रम सुनाये। उन्होंने एक हजार वैरागियों के साथ संयम ग्रहण किया था। लगभग साढे ग्यारह मास का छद्मस्थ काल रहा। साध्ाना के परिणाम स्वरूप घाती कर्मों का सर्वथा क्षय कर परमात्मा ने केवलज्ञान प्राप्त कर दिया। उसके बाद तीर्थ की स्थापना, विचरण और निर्वाण से संबंिध्ात विवेचना की।
पूज्यश्री ने कहा- तीन कल्याणक यहाँ सार्वजनिक हुए। दो कल्याणक आज रात्रि में होंगे। अंजनशलाका करना, यह केवल ज्ञान कल्याणक है। उसके बाद अभिषेक करना, यह मोक्ष कल्याणक है।
पूज्यश्री ने सकल संघ को आमंत्रण देते हुए कहा- जिन्हें भी आज रात्रि में अंजनशलाका का महत्वपूर्ण विध्ाान देखना है, वे आज रात्रि में ठीक 3 बजे वििध्ा विध्ाान मंडप में पध्ाार जावें।
सकल संघ से मिच्छामि दुक्कडम् दिलवाया गया। परमात्मा का पहला विहार हुआ। लोगों ने अक्षतों से बध्ााया।
आज रात्रि को अंजनशलाका का महाविध्ाान होना है। नन्हीं बालिका द्वारा अंजन घोटा गया था। पूज्यश्री को दिव्य वस्त्र और अंजन वहोरा दिया गया। ट्रस्टी व कार्यकर्ता अत्यन्त प्रमुदित थे। आज जो वातावरण नजर आ रहा था, वह प्रफुल्लित करने वाला था। चारों ओर प्रसन्नता की लहरें बह रही थी।
ता. 18 जून 14
रात्रि को ठीक 3.30 बजे जब पूज्यश्री अंजन विध्ाान हेतु दिव्य वस्त्रों में सुसज्ज होकर पध्ाारे, तो यह देखकर आश्चर्यचकित हो उठे कि पूरा हाँल भरा हुआ था। इतनी सुबह... इतनी जल्दी... इतने सारे लोगों का आना... परमात्मा की यह भक्ति देखकर सभी अहोभाव से भर उठे।
पूज्यश्री के चेहरे का तेज अनूठा था। लगता था- आज पूज्यश्री का रूप स्वरूप कुछ दूसरा हो गया है। उनका खिलखिलाता चेहरा आज गंभीर हो उठा था। ठीक समय पर उन्होंने वििध्ा विध्ाान प्रारंभ किया। वासचूर्ण डाला। मंत्रविन्यास किया। और थोडी देर बाद साध्वीजी, श्रावक, श्राविकाओं को बाहर भेजा, यह कहकर कि आप बाहर बैठ कर भक्ति करें। आपकी भक्ति अंजन विध्ाान को उफर्जा प्रदान करेगी। भीतर पूज्यश्री व क्रियाकारक थे। बाहर मंत्रोच्चारणों की आवाज आती रही। स्वाहा शब्द सुनाई देता रहा। और अचानक झालर की रणकार लगातार तीव्र गति से बज उठी। बाहर बैठे हम सभी का मन आतुर हो उठा। लगा कि अंजन का महाविध्ाान संपन्न हो गया है। हमारा मन नाच उठा। ओम् नमो भगवते मुनिसुव्रताय का मंत्र उच्च स्वर से गूंजने लगा।
आध्ाा घंटा बीता होगा कि द्वार खुला। कौन वह भाग्यशाली होगा जो अंजन के महाविध्ाान के बाद परमात्मा के प्रथम दर्शन करेगा व सकल संघ को करायेगा! बोली लगी और लाभ लिया श्री पृथ्वीराजजी चेतनकुमारजी बोरा परिवार ने! वे भीतर आये... नाचते नाचते आये... और भीगे नयनों से परमात्मा के दर्शन किये... सकल संघ को निवेदन किया! सकल संघ ध्ान्य हो उठा। परमात्मा के दर्शन तो हमेशा करते हैं। पर अंजन के बाद प्रथम दर्शन का आज अनूठा लाभ मिला है। ध्ान्यता ध्ान्यता का स्वर चेतना का रोम रोम से गूंजने लगा।
परमात्मा को चतुर्मुख रूप से समवशरण में बिराजमान किया गया। और फिर घडी आई परमात्मा को पोंखने की! लाभ पुण्यशाली श्राविकाओं ने बोली लेकर लिया। पोंखने की वििध्ा के वििध्ा हुई परमात्मा की प्रथम देशना की!
पूज्यश्री ने परमात्मा के प्रतिनििध्ा बन कर परमात्मा की प्रथम देशना सुनाई। प्रवचन तो पूज्यश्री ने बहुत सुनते हैं। पर प्रथम देशना की आवाज कुछ अलग थी... शब्द रचना अलग थी... शैली अलग थी... भावों की गहनता अलग थी...! देशना का अमृत ग्रहण करने के पश्चात् सभी ने कुछ न कुछ नियम स्वीकार करने के लिये हाथ जोड लिया।
परमात्मा के मंगल प्रवेश की वििध्ा होने के पश्चात् प्रतिष्ठा का विध्ाान प्रारंभ हुआ। ठीक 9 बजे पूज्यश्री मंदिर के प्रांगण में पध्ाार गये। मंत्रोच्चारण होने लगे। ओम् पुण्याहं पुण्याहं प्रीयन्ताम् प्रीयन्ताम् की दिव्य ध्वनि से पूरा परिसर गूंजने लगा। जिन मंदिर दादावाडी में लाभार्थी परिवार पध्ाार गये थे। बाहर भारी भीड प्रतिष्ठा के दिव्य नजारे को देख रहे थे। विशाल टी.वी. पर भीतर के सारे दृश्यों का साक्षात्कार कर प्रतिष्ठा के पूर्ण साक्षी हो रहे थे। परमात्मा की इस भव्य प्रतिष्ठा महोत्सव में स्थानकवासी श्रमण संघ के सुप्रसिद्ध महासती श्री मध्ाुस्मिताजी अपनी शिष्या के साथ पध्ाारे थे। वातावरण में खुशियाँ दुगुनी हो गई थी।
10.45 पर पूज्यश्री भीतर पध्ाार गये। मंत्रोच्चारणों का दिव्य उद्घोष उच्च स्वर से रिद्धम के साथ हो रहा था। सभी लोग झालर बजने का इन्तजार करने लगे। झालर के लाभार्थी पूज्यश्री के आदेश की प्रतीक्षा करने लगा। और ठीक 10.59 मिनट पर पूज्यश्री ने उच्च स्वर से सात बार मंत्रोच्चारण करके वासचूर्ण मूलनायक परमात्मा पर निक्षिप्त किया। मुद्राऐं की। और उसी समय झालर बज उठी। वाजिंत्र उद्घोष करने लगे। संगीतकार कश्यप की मध्ाुर आवाज गूंजने लगी।
जय जयकार से आकाश गूंजायमान हो उठा। पूज्यश्री ने जिन बिंबों की प्रतिष्ठा के बाद ध्वजदंड व स्वर्णकलश की प्रतिष्ठा की। तत्पश्चात् नीचे पध्ाार कर दादा गुरुदेवों व देवी देवताओं की प्रतिष्ठा की। और उसके बाद चला घंटे भर का परमात्म-भक्ति का विशेष कार्यक्रम!
संगीतकार भक्ति गीतों से झुमा ही रहा था। कि पूज्यश्री ने अपने मध्ाुर कंठ से सदाबहार भजन गाने प्रारंभ किये। आज म्हारां देरासर मां, रंगे रमे आनंदे रमे, झीणो झीणो उडे रे गुलाल इन गीतों के बाद जब पूज्य ने ‘चौसठ योगिनी रे नाचे दादा रे दरबार’ गीत प्रारंभ किया तो कोई व्यक्ति ऐसा न रहा होगा जो भक्ति में थिरका न होगा! मगन होकर नाचा न होगा। और तभी देखा- बहुत ध्ाीमी गति से मेघराजा का आगमन हुआ। और अपनी ओर से आदर की अंजली अर्पण करके दो तीन मिनट बाद विदा हो गया। क्या अद्भुत चमत्कार था! ठीक मुहूत्र्त के समय बरसात का आगमन!
बाद में परमात्मा का चैत्यवंदन किया गया। स्थानकवासी महासती कोकिल कंठी डाँ. श्री मध्ाुस्मिताजी महाराज ने परमात्मा की भक्ति में स्तवन गाया। अपने हाथों में अखंड अक्षत लेकर परमात्मा को बध्ााया गया। प्रार्थना की गई कि जब तक मेरू पर्वत और सूर्य चन्द्र है, तब तक यह प्रतिष्ठा स्थिर रहे। दादा गुरुदेव की वंदना की गई। पूजनीया गुरुवर्या श्री विश्वज्योतिश्रीजी म.सा. ने दादा गुरुदेव का मारवाडी भाषा का मीठा भजन सुनाया।
प्रतिष्ठा के बाद सभा का आयोजन किया गया। सभा में पूज्य गुरुदेवश्री ने कहा- मुनिसुव्रतस्वामी परमात्मा का यह मंदिर जिस विशाल रूप में निर्मित हुआ है। विशाल कच्छप पर आसीन यह जिन मंदिर आने वाले समय में तीर्थ का विशिष्ट स्वरूप ध्ाारण करेगा। इस तीर्थ के लिये शनिवार और सोमवार महत्वपूर्ण दिन है। शनिवार को मुनिसुव्रतस्वामी परमात्मा का जाप और सोमवार को दादा गुरुदेव की आराध्ाना!
स्थानकवासी श्रमण संघ के सुप्रसिद्ध महासती डाँ. श्री मध्ाुस्मिताजी म. ने मराठी भाषा में प्रवचन देकर जनता को परमात्मा की भक्ति में भिगो दिया। उन्होंने कहा- कोई एक घर की ज्योति होती है, कोई एक गांव की! पर हमारे साध्वीजी महाराज तो विश्व की ज्योति है। निश्चित ही उन्होंने ऐतिहासिक कार्य किया है। उन्होंने कहा- मंदिर ही हमारी संस्कृति के रक्षक हैं... प्राण हैं। विहार ध्ााम का यह निर्माण अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा। साध्वी विश्वज्योतिश्रीजी के प्रति मेरा प्रेम भाव है। उनके आत्मीय आग्रह को स्वीकार कर परमात्मा की प्रतिष्ठा में मेरा आना हुआ। मुझे अत्यन्त ध्ान्यता का अनुभव हुआ। पूज्य उपाध्याय प्रवर के दर्शन हुए। उन्होंने पूज्य उपाध्यायश्री को कामली अर्पण की।
पूजनीया गुरुवर्या श्री विश्वज्योतिश्रीजी म. ने पूज्य गुरुजनों की कृपा का वर्णन किया। अपनी गुरु परम्परा का स्मरण करते हुए उनके प्रति कृतज्ञता... वंदना प्रस्तुत की। दादावाडी निर्माण का इतिहास सुनाया। अपने अन्तर की स्फुरणाओं की अभिव्यक्ति श्रवण कर सारी जनता भावुक हो उठी। उन्होंने कहा- महासती श्री मध्ाुस्मिताजी ने यहाँ पध्ाार कर कृपा की है। और संघ व समाज को जैन एकता का दिव्य संदेश दिया है।
श्री संघवी विजयराजजी डोसी ने पूज्यश्री की यशोगाथा का गुणगान किया। उन्होंने कहा- पूजनीया साध्वी श्री विश्वज्योतिश्रीजी म.सा. ने छोटी उम्र में बहुत विराट् कार्य किया है। 
आज पूज्य गुरुदेवश्री एवं गुरुवर्या विरागज्योतिश्रीजी म. एवं जिनज्योतिश्रीजी म. के आयंबिल तप की आराध्ाना थी। वैसे पिछले दो महिनों से पूजनीया विरागज्योतिश्रीजी म. एवं जिनज्योतिश्रीजी म. एकांतर आयंबिल तप की आराध्ाना कर रहे हैं। एक दिन विराग महाराज करते हैं तो दूसरे दिन जिनज्योति महाराज! आयंबिल तप की आराध्ाना का भी यह प्रभाव रहा कि परमात्मा का यह विशाल प्रसंग आनंद मंगल के साथ परिपूर्ण हुआ।
दोपहर में अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र महापूजन पढाया गया। जीवदया की टीप की गई। विनय स्वरूप पूज्यश्री का गुरुपूजन किया गया। कृतज्ञता स्वरूप कामली ओढाई गई।
ता. 19 जून 2014
प्रात: द्वारोद्घाटन! सूर्योदय हुआ ही था। बडी संख्या में भक्त गण आ पहुँचे थे। श्री नितिन भाई कर्णावट ने यह लाभ लिया था। पूज्यश्री ने पुजारी आडो खोल तथा द्वार खोलो नितिन भाई मंदिर ना! भजन गाये। परमात्मा से दर्शन प्रदान करने की प्रार्थना की गई। अणुजाणह का मंत्र बोला गया। और जय जयकार के उद्घोष के साथ द्वार खोला गया। अष्टप्रकारी पूजा की गई। चैत्यवंदन किया गया। भक्ति की गई। दादा गुरुदेव के इकतीसे का सामूहिक पाठ किया गया। वंदना की गई। सतरह भेदी पूजा व दादा गुरुदेव की पूजा पढाई गई।
सब ने हाथ जोड कर क्षमा मांगी! हे परमात्मन्! हम भूलों से भरे हैं। हमारी गल्तियों के लिये हमें क्षमा करना देव! अपना आशिष देना! हमारी भक्ति के बदले हम आपसे कुछ मांगना चाहते हैं। क्या करें! मांगने की आदत जाती नहीं! भगवन्! भक्ति के बदले हमें और कुछ नहीं चाहिये! मोक्ष चाहिये... और जब तक मोक्ष न मिले, तब तक आपका शासन चाहिये... आपकी वाणी चाहिये... आपका दर्शन और पूजा चाहिये!





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