घटाशंकर घबराकर डाँक्टर जटाशंकर
के पास पहुँचा
था। क्योंकि वह
पिछले दो तीन
दिनों से अनुभव
कर रहा था
कि उसकी टांगें
नीली पड रही
है। चलने की
ताकत न रही।
उसने टेक्सी पकडी
और डाँक्टर के
पास गया।
डाँक्टर ने उसकी
टांगें चेक की।
उसके माथे पर
चिंता की सलवटें
पड गई। उसने
कहा- भैया! तेरी
टांगों में तो
जहर फैल रहा
है। इन्हें काटना
होगा। यदि जल्दी
ही यह निर्णय
नहीं किया गया
तो जहर पूरे
शरीर में फैल
जायेगा। तुम्हें घंटे दो
घंटे में ही
तय करना होगा।
तुम्हारे दोनों ही पांव
जहरीले हो चुके
हैं। एक विशेष
प्रकार का जहर
फैल गया है।
जो नीचे से
उपर की ओर
फैलता जा रहा
है।
घटाशंकर घबरा गया।
पूरा परिवार चिंता
मग्न हो उठा।
क्या करें! आखिर
निर्णय किया कि
पूरे शरीर में
जहर फैल जाय
तो मृत्यु हो
जाय, इससे तो
यही अच्छा है
कि टांगों को
बिदा कर दें।
डाँक्टर ने शीघ्र
ही आँपरेशन कर
दिया। दोनों पाँव
कट गये। उसके
स्थान पर नकली
टांगें लगा दी
गई। कुछ दिनों
बाद वह फिर
चिंता-मग्न होता
हुआ डाँक्टर के
पास पहुँचा। उसने
अपनी नकली टांगें
दिखाकर कहा- डाँक्टर
साहब! ये मेरी
नकली टांगें भी
नीली पड गई
है। डाँक्टर विचार
में पड गया।
थोडी देर बाद
हँसता हुआ बोला-
अरे! तुम्हारी नीली
टांगों का राज
अब समझ में
आ गया। और
कुछ नहीं। तुम
जो नीले रंग
का पायजामा पहनते
हो, बस! वही
रंग छोड रहा
है।
घटाशंकर रोने लगा।
मेरी दोनों टांगेें
आपने ऐसे ही
अलग कर दी।
जबकि असली कारण
कुछ और ही
था। डाँक्टर बोला-
मुझे माफ कर
दो भैया! मैं
पहले समझ नहीं
पाया।
नासमझी में लिये
गये निर्णय ऐसे
ही तो नुकसान
करते हैं। कुछ
नुकसान ऐसे होते
हैं, जिनकी भरपाई
हो सकती है।
पर कुछ नुकसान
ऐसे होते हैं,
जिनकी भरपाई असंभव
है। पांव एक
बार काट दिया,
अब माफी से
तो दुबारा लग
नहीं सकते। इसी
प्रकार एक बार
आपने जीवन गंवा
दिया, दुबारा मिलना
बहुत मुश्किल है।
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