Featured Post

Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

Image
पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

चेन्नई में प्रतिष्ठा दीक्षा महोत्सव : हुआ इतिहास का निर्माण,,,, श्री धर्मनाथ जिन मंदिर का इतिहास

चेन्नई में प्रतिष्ठा दीक्षा महोत्सव : हुआ इतिहास का निर्माण



परम पूज्य गुरुदेव प्रज्ञापुरूष आचार्य देव श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य पूज्य गुरुदेव उपाध्याय प्रवर श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. आदि मुनि मण्डल एवं पू. छत्तीसगढ रत्ना महत्तरा श्री मनोहरश्रीजी म. की शिष्या पू. साध्वी श्री तरूणप्रभाश्रीजी म. ठाणा 4, पू. प्रवर्तिनी श्री प्रेमश्रीजी म. तेजश्रीजी म. की शिष्या पू. साध्वी श्री सुलोचनाश्रीजी म. ठाणा 8, पू. प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्रीजी म. की शिष्या पू. साध्वी श्री सम्यक्दर्शनाश्रीजी म. ठाणा 4, पू. महत्तरा श्री चंपाश्रीजी म.सा. की शिष्या पू. साध्वी श्री विमलप्रभाश्रीजी म. ठाणा 8, पू. खान्देश शिरोमणि साध्वी श्री दिव्यप्रभाश्रीजी म. की शिष्या पू. साध्वी श्री विरागज्योतिश्रीजी म. ठाणा 3 आदि विशाल साधु साध्वी समुदाय की पावन सानिध्यता में चेन्नई महानगर में समदांगी बाजार स्थित श्री धर्मनाथ मंदिर की अंजनशलाका प्रतिष्ठा एवं दीक्षा समारोह अत्यन्त आनंद व उल्लास के साथ संपन्न हुआ।

श्री धर्मनाथ जिन मंदिर का इतिहास

प्रवर्तिनी श्री विचक्षणश्रीजी म. की प्रेरणा से स्थापित श्री जिनदत्तसूरि जैन मंडल द्वारा निर्मित इस मंदिर की गृह मंदिर के रूप में प्रतिष्ठा 26 वर्ष पूर्व आचार्य पद्मसागरसूरिजी म. की निश्रा में हुई थी।
गत वर्ष पदाधिकारियों ने निर्णय किया कि इस मंदिर का शास्त्र शुद्ध शिखरबद्ध मंदिर के रूप में जीर्णोद्धार किया जाये। इस लक्ष्य से ता. 27.1.2014 को भूमिपूजन एवं खात मुहूत्र्त किया गया। शिलान्यास विधान ता. 8.2.2014 को किया गया। निर्णय किया गया कि परमात्मा धर्मनाथ आदि तीनों प्रतिमाओं का उत्थापन नहीं करना है। बिना उत्थापन किये जीर्णोद्धार करना है। इसके लिये सोमपुरा व इंजिनियर की सलाह ली गई।
काम थोडा मुश्किल था। पर संकल्प का तीव्र बल था। बिरामी निवासी जी.जी. सोमपुरा ने पूरी जिम्मेदारी ली। इंजिनियरों से संपर्क किया गया। परिणाम स्वरूप मात्र 8 महिने में शिखरबद्ध तीन मंजिला मंदिर तैयार हो गया। इस मंदिर के निर्माण में उत्तम पाषाण प्रेषित करने वाले मकराणा के गोर मार्बल का भी योगदान रहा। जिन्होंने पाषाण-खण्डों की आपूर्ति तीव्र गति से लगातार की। प्रथम मंजिल पर परमात्मा धर्मनाथ आदि तीनों प्रतिमाओं का उत्थापन नहीं किया गया। मूल गंभारे का रूप दिया गया। परिकर की नई प्रतिष्ठा की गई।
नीचे भूतल पर नये गर्भगृह का निर्माण किया गया जिसमें धर्मनाथ परमात्मा की सपरिकर नई प्रतिमा एवं गर्भगृह के बाहर कोली मंडप में दो देवकुलिकाओं में गणधर श्री गौतमस्वामी एवं दादा जिनकुशलसूरि की प्रतिमा बिराजमान करने का निर्णय लिया गया।
प्रतिष्ठा अत्यन्त आनंद व उल्लास के साथ परिपूर्ण हो, इसके लिये यहाँ चातुर्मासार्थ बिराजमान पू. साध्वी श्री सम्यक्दर्शनाश्रीजी म. सा. की निश्रा में उनकी प्रेरणा से दादा गुरुदेव के इकतीसे का एक लाख चौपन हजार अखंड पाठ आयोजित किया गया। उनकी प्रेरणा से अखंड आयंबिल व अखंड अट्ठम तप का आयोजन भी हुआ।

Comments

Popular posts from this blog

RANKA VANKA SETH SETHIYA रांका/वांका/सेठ/सेठिया/काला/गोरा/दक गोत्र का इतिहास

GADVANI BHADGATIYA BADGATYA GOTRA HISTORY गडवाणी व भडगतिया गोत्र का इतिहास

GANG PALAVAT DUDHERIYA GIDIYA MOHIVAL VIRAVAT GOTRA HISTORY गांग, पालावत, दुधेरिया, गिडिया, मोहिवाल, टोडरवाल, वीरावत आदि गोत्रें का इतिहास