पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति
आचार्य देव श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. पूज्य मुनि श्री मनितप्रभसागरजी म.
पूज्य मुनि श्री समयप्रभसागरजी म. पूज्य मुनि श्री विरक्तप्रभसागरजी म. पूज्य मुनि
श्री श्रेयांसप्रभसागरजी म. पूज्य मुनि श्री मलयप्रभसागरजी म. ठाणा 6 एवं पूजनीया माताजी म. श्री रतनमालाश्रीजी म. पूजनीया बहिन
म. डाँ. श्री विद्युत्प्रभाश्रीजी म. पूजनीया साध्वी श्री प्रज्ञांजनाश्रीजी म.
पूजनीया साध्वी श्री नीतिप्रज्ञाश्रीजी म. पूजनीया साध्वी श्री निष्ठांजनाश्रीजी
म. ठाणा 5 की पावन निश्रा में
दुर्ग नगर में दिनांक 8 नवंबर 2016 को उपधान तप का माला विधान अत्यन्त आनंद व उत्साह के साथ
संपन्न हुआ।
मालारोपण विधान के
उपलक्ष्य में पंचदिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया। ता. 4 से 6 तक खरतरगच्छाचार्य श्री
वर्धमानसूरि विरचित श्री अर्हद् महापूजन पढाया गया। ता. 7 को भव्यातिभव्य शोभायात्रा निकाली गई। ता. 8 को माला विधान हुआ। प्रथम माला धारण करने का लाभ श्रीमती
निर्मलादेवी चोपडा को प्राप्त हुआ। माला पहनाने का लाभ मातुश्री तारादेवी श्री
पन्नालालजी मूलचंदजी दिलीपजी नवकुमारजी चोपडा सुरगी वालों ने लिया।
द्वितीय माला श्रीमती
ललितादेवी संखलेचा ने धारण की। उन्हें श्रीमती मोहिनीदेवी भंवरलालजी संखलेचा
हैदराबाद परिवार ने धारण करवाई।
तृतीय माला कुमारी मीनाली
झाबक को जीवनचंदजी जेठमलजी झाबक परिवार ने,
चौथी माला श्री
शांतिलालजी श्रीश्रीमाल को उनके परिवार ने धारण करवाई।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि
के रूप में पधारे छत्तीसगढ प्रान्त के राज्य मंत्री श्री लाभचंदजी बाफना ने अपने
भावों को अभिव्यक्त करते हुए पूज्य गुरुदेव आचार्यश्री के प्रति अपनी श्रद्धा
अर्पण की। उनका संघ द्वारा बहुमान किया गया। श्री पावापुरी ट्रस्ट मंडल का भी इस
अवसर पर पदार्पण हुआ। उनका श्री संघ की ओर से अभिनंदन किया गया।
इस अवसर पर मुंबई से
पधारे सुप्रसिद्ध संगीतकार श्री नरेन्द्र वाणीगोता ने भक्ति संगीत का अनूठा रंग
जमाया। विधि विधान कराने के लिये मक्षी से हेमंतभाई बैद मुथा एवं संजय जैन पधारे
थे। माला विधान का ऐसा अनूठा एवं सुव्यवस्थित कार्यक्रम इस क्षेत्र में प्रथम बार
हुआ। जिसकी सारे समाज ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की।
माला महोत्सव में पधारे
हजारों अतिथियों की दुर्ग श्री संघ ने बहुत ही सुन्दर व्यवस्था की। आवास, भोजन आदि की व्यवस्था में युवा वर्ग का पूरा योगदान रहा।
अतिथियों ने दुर्ग श्री संघ की भाव भक्ति, मान मनुहार की मुक्त कंठ
से प्रशंसा की।
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