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Mahopadhyay Shree Kshamakalyan ji Maharaj |
महोपाध्याय श्री
क्षमाकल्याणजी महाराज का जन्म ओशवंश के मालुगोत्र में केसरदेसर नाम के गाँव में संवत्
१८०१ में हुआ था। सं. १८१२ में अपनी ११ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने वाचक
श्रीअमृतधर्मजी महाराज से दीक्षा ग्रहण की।
अपने जीवनकाल में उनके विहार का अधिक समय
बिहार प्रान्त के पटना आदि स्थलो में काफी बीता है। वि. सं. १८७२ पौष वदी १४ को बीकानेर में कालधर्म को
प्राप्त हुवे। इनका विस्तृत जीवन चरित्र श्री क्षमाकल्याणचरित नाम के ग्रन्थ में
है। इसकी रचना जोधपुर महाराजा के निजी पुस्तकभण्डार के उपाध्यक्ष पं.
श्रीनित्यानन्दजी शास्त्री ने की है। सुन्दर संस्कृत श्लोकों में श्री
क्षमाकल्याणजी का पूर्ण जीवनवृतान्त दिया गया है।
इनकी प्राप्त रचनाओं में मुख्य रचनायें निम्न
हैं-
तर्कसंग्रह फक्किका (1827), भूधातु वृत्ति (1829), समरादित्य केवली चरित्र पूर्वाद्ध, अंबड चरित्र, गौतमीय महाकाव्य टीका,
सूक्त रत्नावली
स्वोपज्ञ टीका सह,
यशोधर चरित्र, चैत्यवन्दन चतुर्विंशति, विज्ञान चन्द्रिका, खरतरगच्छ पट्टावली, जीवविचार टीका, परसमयसार विचार संग्रह,
प्रश्नोत्तर
सार्धशतक,
साधु-श्रावक
विधि प्रकाश,
अष्टाह्निकादि
द्वादश पर्व व्याख्यान,
प्रतिक्रमण हेतु, विविध स्तोत्र आदि अनेकों ग्रन्थ एवं शताधिक
स्तवनादि,
अनेक सज्झाय आदि
गेय रचनाएं प्राप्त है।
महोपाध्यायजी ने जीवन काल में निम्नोक्त
स्थानों पर प्रतिष्ठा करवाई। अजीमगंज, महिमापुर,
महाजन टोली, देवीकोट, देशणोक,
अजमेर, बीकानेर, जोधपुर,
मंडोवर आदि। साथ
ही संवत् 1848
में पटना में
सुदर्शन श्रेष्ठि के देहरे के समीप गणिका रूपकोशा के आवास स्थान पर जमींदार से
खरीद की हुई जगह में स्थूलिभद्रजी की देहरी भी आपके उपदेश से बनी थी। आपने ही उसकी
प्रतिष्ठा की थी। जिसका उल्लेख आपके द्वारा रचित स्थूलिभद्र गीत में उपलब्ध है।
श्री क्षमाकल्याणजी महाराज के छ: शिष्यो के
नाम प्राप्त होते हैं- 1.
कल्याणविजय, 2. विवेकविजय, 3. विद्यानन्दन,
4. धर्मानंद, 5. गुणानंद और 6. ज्ञानानंद।
श्री क्षमाकल्याणजी महाराज जीवन के उत्तरकाल
में वि.सं. 1873
के भाद्रपद
कृष्ण पंचमी को जैसलमेर स्थित ज्ञानानंदादि मुनियों को पत्र दिया था उसमें लिखते
हैं-
‘व्याख्यान उत्तराध्ययन 14वां अध्ययन बांचे है, समरादित्य चरित्र पाना 85 भया, चौथे भव के 1
पानो बाकी है’ इत्यादि। इससे अंतिम समय में भी उनकी जिनशासन
एवं श्रुतज्ञान की सेवा स्पष्ट परिलक्षित होती है।
स्वर्गारोहण द्विशताब्दी के पुण्य अवसर पर
पूज्य खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसागरजी म. के शिष्य आर्य
मेहुलप्रभसागरजी म. पूज्य क्षमाकल्याणजी महाराज के साहित्य की शोध करने का भगीरथ
पुरुषार्थ किया है। उसी के फलस्वरूप 121 रचनाओं को दो भागों में प्रकाशित किया गया है। श्री क्षमाकल्याणजी कृति संग्रह
भाग प्रथम और श्री क्षमाकल्याणजी कृति संग्रह भाग द्वितीय के नाम से प्रकाशित
पुस्तकों का विमोचन भारत के विभिन्न नगरों में किया जा रहा है। साथ ही गुणानुवाद
सभा,
सामुहिक पूजा, जाप अनुष्ठान आदि किये जा रहे है।
स्वर्गारोहण द्विशताब्दी दिवस पर
श्रद्धासिक्त नमन... शासन के सजग श्रुतप्रहरी का पावन स्मरण...
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