इन्दौर 28 अक्टुंबर। परम पूज्य गुरुदेव प्रज्ञापुरुष आचार्य भगवंत श्री
जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य पूज्य गुरुदेव मरुधर मणि खरतरगच्छाधिपति
आचार्य भगवंत श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. ने सूरिमंत्र की तृतीय पीठिका की 25
दिवसीय साधना के पश्चात् प्रथम साक्षात्कार एवं महामांगलिक में अखिल भारत वर्ष से
सैंकडों गुरुभक्तों ने सम्मिलित होकर जिनशासन का जयघोष किया।
पूज्यश्री ने 4 अक्टूबर को 25 दिवसीय पीठिका
साधना का प्रारंभ किया था। ता. 28 को प्रात: विशिष्ट पूजन के साथ साधना संपन्न
हुई। पूज्यश्री ने पूरा समय मौन, एकान्त व आयंबिल उपवास आदि तप के साथ साधना की।
ता. 28 को साधना की पूर्णाहुति के अवसर पर प्रात:काल से प्रारंभ पूजन विधि
में उपस्थित गुरुभक्तों ने अनुशासनपूर्वक विधि-विधान करते हुए आराधना के शिखर की
स्पर्शना की। विधि पूर्ण होते-होते गुरुभक्तों ने गुरुवर के प्रति श्रद्धा का
अपूर्व अहोभाव प्रकट कर बधाईयों की श्रेणियां समर्पित की।
इस अवसर पर पूज्य आचार्यश्री के साथ शिष्य मंडल एवं साधना विधान के
लाभार्थी श्री विजयजी रोहनजी रोहितजी रेयांसजी मेहता परिवार इन्दौर निवासी ने
साधना को महोत्सव के रूप में मनाया।
साधना कक्ष के बाहर पौने नौ बजे से ही भक्तों का ज्वार उमड़ पडा। ठीक
नौ बजे पूज्यश्री साधना कक्ष से बाहर पधारे। जिनमंदिर दर्शन करने के उपरान्त
हजारों श्रद्धालुओं के साथ प्रवचन पाण्डाल में पधारे।
इस अवसर पर प्रवचन करते हुए पूज्य मुनि श्री मनीषप्रभसागरजी म. ने
पूज्य गुरुदेवश्री के गुणों का वर्णन किया।
पूज्य बालमुनि श्री मलयप्रभसागरजी म. ने पूज्यश्री के प्रति अपना
समर्पण अभिव्यक्त करते हुए कहा- आज इतने दिनों के मौन के बाद पूज्यश्री हमसे
वार्तालाप करेंगे। उन्होंने पूज्यश्री की कमियों का नये तरीके से वर्णन करते हुए
सकल संघ को चमत्कृत कर दिया। और स्वयं के लिए आशीर्वाद की याचना की।
समारोह का संचालन करते हुए आर्य मेहुलप्रभसागरजी म. ने सूरिमंत्र की
विवेचना की। उन्होंने कहा- साधु-साध्वी पंच परमेष्ठी मंत्र जाप करते हैं। गणी,
उपाध्याय,
महत्तरा,
प्रवर्तिनी
आदि पदधारी वर्धमान विद्या की साधना करते हैं। और आचार्य सूरिमंत्र के पीठिकाओं की
साधना विशिष्ट रूप से करते हैं।
उन्होंने कहा- यह मेरा सौभाग्य है जो मुझे सेवा का यह अनमोल अवसर
प्राप्त हुआ है। जिसमें मुझे अपूर्व आनंद संप्राप्त हुआ।
इस अवसर पर महत्तरा श्री दिव्यप्रभाश्रीजी म., पू. साध्वी विश्वज्योतिश्रीजी
म. पू. साध्वी विरलप्रभाश्रीजी म. ने भी पूज्यश्री की साधना के लिये बधाई प्रस्तुत
करते हुए उनके गुणों का वर्णन किया।
पूज्यश्री ने इस अवसर पर सूरिमंत्र की पांच पीठिकाओं की विवेचना की।
उन्होंने कहा- सूरिमंत्र की पहली पीठिका बुद्धि को तीक्ष्ण करती है। दूसरी पीठिका
यश का वर्धन करती है। तीसरी पीठिका वृद्धि का द्योतक है। चौथी पीठिका शक्ति और
पांचवी पीठिका लब्धि का विस्तार करती है।
उन्होंने कहा- सूरिमंत्र की साधना सकल श्रीसंघ के लिये परम
कल्याणकारी हो, ऐसी कामना है। 25 दिन की एकांत में साधना का अद्भुत आनंद मिला
है। मन बाहर आना नहीं चाहता। एकांत में रमा मन बाहर नहीं आए यही जीवन की सार्थकता
है। उन्होंने प्रवचन के पश्चात् महामांगलिक सुनाई। हजारों लोगों ने परम श्रद्धा और
पूर्ण मौन के साथ महामांगलिक का श्रवण किया।
सूरिमंत्र साधना समारोह के लाभाथÊ परिवार श्री
विजयजी पुष्पाजी रोहितजी रोहनजी रेयांसजी मेहता परिवार की ओर से पूज्यश्री का
गुरुपूजन किया गया।
उसके बाद सकल श्रीसंघ की ओर से रायपुर निवासी सौ. संजूदेवी अशोकजी
तातेड परिवार ने गुरुपूजन का लाभ लेकर गुरुपूजन किया।
इस अवसर पर संघ के अध्यक्ष श्री जितेन्द्रजी सेखावत, संयोजक
श्री छगनराजजी हुण्डिया, जितेन्द्रजी मालू ने भी पूज्यश्री का अभिनंदन
किया।
संघवी वंसराजजी भंसाली ने शंखेश्वर दादावाडी की योजना प्रस्तुत की।
बडवाह श्रीसंघ की ओर से पूज्यश्री को बडवाह पधारने की विनंती की गई।
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