अपने कानों पर पहरेदारी बहुत जरूरी
-मणिप्रभसागर
जैन श्वे- खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूधर मणि श्री मणिप्रभसागरजी म- सा- ने आज श्री जिन हरि विहार धर्मशाला में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा- अपनी सोच के प्रति जागरूक रहना एक अच्छे और साफसुथरे तथा प्रेम से भरे जीवन के लिये बहुत जरूरी होता है। सोच विचारों को जन्म देती है। विचार से हमारी दृष्टि बनती है। वही आचार के रूप में कि्रयान्वित होती है।
अधिकतर हम देखके विचारों को विकृत नहीं बनाते जितना हम सुनके बनाते हैं।
सुनना तो होता ही है--- पर क्या सुनना इसका निर्णय हमारे हाथ में होना चाहिये।
हमारा हृदय हर बात सुनने का आम रास्ता नहीं है। क्योंकि जो सुनते हैं--- जैसा सुनते हैं--- वह धीरे धीरे हमारा आग्रह बन जाता है।
किसी व्यक्ति के बारे में कुछ सुना है। सच झूठ का पता नहीं है। तब हम उसके प्रति आग्रही बन जाते हैं। तब उस व्यक्ति के साथ न्याय नहीं कर पाते। हमारे व्यवहार में हमारा पूर्वाग्रह झलकता है। और कभी कभी ही नहीं--- बल्कि अधिकतर हम गल्तियाँ कर बैठते हैं। इसके दुष्परिणाम जीवन में मिलते हैं।
जो सुनते हैं--- उसकी सत्यता की परीक्षा करने के बाद ही उसे अपने विचारों का विषय बनाना चाहिये। बहुत बार केवल सुनी सुनाई बातों के आधार पर हम अपने जीवन को नरक बना देते हैं।
घर की अशान्ति में हमारे कानों का बहुत बड़ा योगदान होता है।
इसलिये अपने कानों पर पहरेदारी बहुत जरूरी है।
जो सुना है--- उसे फिल्टर करना बहुत जरूरी है। मन तक हर बात को नहीं पहुँचने देना होता है। बीच में ब्रेकर चाहिये।
जो हमें अच्छा बनाती हो--- जीवन साफसुथरा बनाती हो--- उँचा उठाती हो--- परिवार में अपनत्व बढाती हो--- उन बातों को भीतर जाने देना होता है। लेकिन जो बात हमें क्रोध की आग में डूबोती हो--- मान के शिखर पर अकडू बनाती हो--- माया की उलझन में लपटाती हो--- लोभ की खींचतान में लम्बा करती हो--- उसे दरवाजे से ही विदा कर देना जरूरी है।
मुनि मनितप्रभसागर ने उपधान की महिमा बताई।
उपधान के आयोजक दिलीप रायचंद दायमा ने बताया कि आज गुरूदेव के र्द’ान को भक्त जन भाईन्दर--- दुर्ग--- खापर--- सिंधपुर--- रायपुर--- धमतरी आदि कई स्थानों से पधारें। सभी का स्वागत किया गया।
प्रेषक
दिलीप दायमा
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