- उपाध्याय मणिप्रभसागर
पालीताणा, 16 अक्टूबर!
जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के
उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूधर मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. की पावन निश्रा में आज श्री जिन हरि विहार धर्मशाला में श्री नवपदजी की ओली के सातवें दिन प्रवचन फरमाते हुए कहा- परमात्मा महावीर ने मोक्ष मार्ग का निरूपण करते हुए ज्ञान और कि्रया को हेतु बताया है। ज्ञान और कि्रया इन दोनों के संगम से ही मोक्ष होता है। परन्तु इसमें सर्वप्रथम ज्ञान को कहा है। ज्ञान के बिना न तो सम्यक् दर्शन पाया जा सकता है, न आचरण की विशुद्धि होती है।
उन्होंने कहा- हम अपने जीवन में संसार के व्यवहार में इतने व्यस्त हो गये हैं कि हमें ज्ञान की रूचि नहीं रही है। ज्ञान प्राप्त करने से ही आत्मा का, बुद्धि का और चित्त का विकास होता है। इसके लिये हमारे जीवन में स्वाध्याय चाहिये।
उन्होंने कहा- यथार्थ बोध को ही सम्यक् ज्ञान कहा है। जो ज्ञान संसार के यथार्थ स्वरूप को बताये, जो ज्ञान आत्मा के दिव्य सौन्दर्य से परिचित कराये, वही ज्ञान सम्यक्ज्ञान है। मात्र संसार का ज्ञान तो अज्ञान स्वरूप है।
उन्होंने कहा- श्रीपाल और मयणासुन्दरी ने श्रद्धा और यथार्थ बोध से परिपूर्ण होकर नवपद की आराधना की थी, उसी के परिणाम स्वरूप उनके संसार के समस्त दुखों का क्षय हुआ तथा अपनी आत्म-विशुद्धि की उँचाईयां प्राप्त की।
उन्होंने घटना का रहस्य समझाते हुए कहा- श्रीपाल को जब समुद्र में फेंका गया, उस समय मौत सामने होने पर भी उसने फेंकने वाले पर द्वेष नहीं किया, मन में भी उसके प्रति दुर्विचार नहीं आये, बल्कि उसके प्रति समभाव रखते हुए नवपद की आराधना की। श्रीपाल का यह उदाहरण हमें सीख देता है कि दुख हो या सुख, हमें हमेशा समभाव की साधना करनी चाहिये।
उन्होंने कहा- समस्याऐं पैदा होने पर जो व्यक्ति उनसे घबरा जाता है, उस व्यक्ति पर समस्याऐं हावी हो जाती है। जबकि उस समय जो शांत चित्त से विचार करता है, वह समस्याओं का समाधान प्राप्त कर लेता है।
आयोजक रायचंद दायमा ने बताया कि आज बोरडी, मोकलसर, बडौदा, खाचरोद आदि कई स्थानों के संघ व श्रद्धालु उपस्थित हुए। तथा पूज्यश्री से अपने क्षेत्र में पधारने की विनंती की।
प्रेषक
दिलीप दायमा
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