- उपाध्याय मणिप्रभसागर
पालीताणा,
जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने आज श्री जिन हरि विहार में दीपावली के पावन अवसर पर प्रवचन फरमाते हुए कहा- आज का दिन परमात्मा महावीर के निर्वाणोत्सव का अवसर है। दीप पंक्तियों के जगमगाते प्रकाश में परमात्मा महावीर की छवि को निहारना है। छवि के वर्तमान में अतीत की अवस्था और अतीत के पुरूषार्थ को टटोलना है।
बिना अतीत के पुरूषार्थ को जाने हम परमात्मा की वर्तमान छवि को जान पायेंगे। और जानना केवल जानने के लिये नहीं है, जानना वैसा होने के लिये है। वैसा होने के संकल्प के अभाव में जानना मात्र मानसिक मनोरंजन होगा। इससे कोई लाभ नहीं होना है। क्योंकि जाना तो बहुत बार है। हर जन्म में जानने का ही तो कार्य किया है।
हर जन्म में क ख ग घ सीखा है। पर बारहखडी पूरी कभी नहीं हुई है। इसलिये मात्र जानना नहीं है, पाना है... होना है!
और दीपक की रोशनी को पाना मेरा लक्ष्य नहीं है। मेरा लक्ष्य तो अपने दीपक को प्रगटाना है। दीपक की रोशनी मेें अपनी राह को अवश्य निहारना है। लेकिन उतने से संतोष नहीं करना है। अपने दीपक को प्रगटा कर दीवाली मनानी है।
और संसार का दीया तो कभी जलता है, कभी बुझता है। बुझने के बाद फिर जल जाता है। जलने के बाद फिर बुझ जाता है।
पर मेरा दीया अलग है। एक बार जला कि जला! फिर बुझता नहीं। कोई तूफान ऐसा नहीं जो उसे बुझा सके! दीपक के जलने का प्रारंभ है, पर अन्त नहीं है।
मुझे अपने दीये को जला लेना है। और अपनी रोशनी को पाकर संतुष्ट... परम संतुष्ट हो जाना है।
परमात्मा के निर्वाणोत्सव और गौतम स्वामी के ज्ञानोत्सव की रोशनी में अपने आपको रोशन करने का पुरूषार्थ करना है।
उपधान आयोजक श्री बाबुलाल लुणिया व रायचंद दायमा ने दीपावली की बधाई दी। श्री दायमा ने सभी मेहमानों का अभिनंदन किया।
प्रेषक- दिलीप दायमा
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