पालीताना श्री जिन हरि विहार धर्मशाला में चल रहे महामंगलकारी उपधान तप की माला का विधान आज 8 नवम्बर 2013 को जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. की पावन निश्रा में लगभग 2 हजार से अधिक लोगों की उपस्थिति में ऐतिहासिक रूप से संपन्न हुआ।
यह उपधान पूजनीया बहिन म. डाँ. श्री विद्युत्प्रभाश्रीजी म.सा. की पावन प्रेरणा से संपन्न हुआ है।
इस अवसर पर प्रवचन देते हुए पूज्यश्री ने कहा- यह माला कोई सामान्य बहुमान की माला नहीं है। अपितु यह परमात्मा की साक्षी से धारण की जाने वाली मोक्ष माला है। आप सभी ने वरमाला, बहुमान की माला तो बहुत पहनी है। ये मालाऐं तो संसार बढाती है... दु:ख बढाने का ही कार्य करती है। जबकि यह माला मोक्ष की माला है। इसे धारण करने वाला व्यक्ति कभी भी दुर्गति में भटक नहीं सकता। उसके जीवन में कभी अशांति नहीं आ सकती। क्योंकि वह व्यक्ति धर्म और कर्म को तथा कर्म के परिणाम को समझ जाता है। इसलिये वह व्यक्ति सदा सदा प्रसन्नता में जीता है।
उन्होंने कहा- यह मोक्ष माला पैसों से नहीं मिलती। इसे प्राप्त करने के लिये महान् तप करना होता है। साधु की तरह रहना होता है। इस माला को धारण करने के बाद ही नवकार महामंत्र के जाप का अधिकार प्राप्त होता है।
उन्होंने कहा- माला धारण करने के बाद जो नवकार का जाप किया जाता है, उसका लाभ अनूठा ही होता है। क्योंकि विशिष्ट तपस्या करके गुरू भगवंत के श्रीमुख से नवकार प्राप्त किया जाता है।
इस अवसर पर उपधान तप के तपस्वियों की ओर से उपधान तप के आयोजक श्री बाबुलालजी लूणिया एवं श्री रायचंदजी दायमा परिवार का हार्दिक अभिनंदन किया गया। बाद में क्रमश: सभी तपस्वियों को मंत्रोच्चारणों से मोक्ष माला का परिधान कराया गया। इस अवसर पर बाडमेर, चौहटन, धोरीमन्ना, अहमदाबाद, सांचोर, सूरत, बडौदा, चेन्नई, बैंगलोर, अक्कलकुआं, खापर, शहादा, वाण्याविहिर, मंुबई, नंदुरबार, इचलकरंजी आदि शहरों से बडी संख्या में श्रद्धालु पधारे।
प्रेषक
दिलीप दायमा
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