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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

Bikaner Chintamani Mandir बीकानेर में प्राचीन प्रतिमा प्राकट्य महोत्सव

पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्यश्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी महाराज की पावन निश्रा में व उनके निर्देशन में बीकानेर के चिंतामणि आदिनाथ जिन मंदिर के भूगर्भ में बिराजमान 1116 प्राचीन प्रतिमाओं को ता. 27 नवम्बर 2017 को मंत्रोच्चारणों के साथ प्रकट किया गया। पूर्ण सुरक्षा के साथ भूगर्भ से प्रतिमाओं को प्रकट करने का लाभ लिया श्री पुरखचंदजी धनराजजी, नेमचंदजी डागा परिवार ने लिया।
ता. 26 नवम्बर को पूज्य आचार्यश्री के शिष्य पूज्य मुनि श्री मेहुलप्रभसागरजी म. ने क्षेत्रपाल आदि आह्वान की प्रक्रिया विधि विधान के साथ संपन्न करवाई।
इस अवसर पर तपागच्छीय पंन्यास श्री पुंडरिकरत्नविजयजी म. आदि साधु मंडल, प्रवर्तिनी श्री शशिप्रभाश्रीजी म. आदि ठाणा, पू. साध्वी श्री कल्पलताश्रीजी म. आदि ठाणा, पू. साध्वी श्री प्रियस्वर्णांजनाश्रीजी म. आदि का सानिध्य प्राप्त हुआ।

इस अवसर पर प्रवचन करते हुए पूज्यश्री ने इन प्रतिमाओं के प्रकटीकरण का इतिहास सुनाया। उन्होंने फरमाया- अकबर के सेनापति तुरसमखान ने ये प्रतिमाऐं सिरोही आदि क्षेत्रों से लूटी थी। और इनमें भारी मात्रा में सोना होने के कारण वह इन्हें गलाने के लिये ले गया। इस बात की खबर जब परमार्हत् श्रावक श्री कर्मचंद्र बच्छावत जो अकबर के दरबार में मंत्री थे, को लगी तो उन्होंने सम्राट् से प्रतिमाओं के वजन के बराबर सोना दिया। फलस्वरूप सम्राट् ने वे प्रतिमाऐं कर्मचंद्र बच्छावत को सौंप दी।
कर्मचंद्र बच्छावत की प्रभु भक्ति की जितनी महिमा की जाय, उतनी कम हैं। वे प्रतिमाऐं फतेहपुर सीकरी से बीकानेर रियासत के राजा रायसिंह के नेतृत्व में बीकानेर लाई गई। श्री बच्छावत ने अपने गुरुदेव चतुर्थ दादा श्री जिनचन्द्रसूरि के निर्देशानुसार श्री चिंतामणि आदिनाथ मंदिर में भूगर्भ स्थित कक्ष में बिराजमान की। कुल 1116 प्रतिमाओं में एक भगवान महावीर की प्रतिमा गुप्तकालीन है। 9 प्रतिमाऐं 11वीं शताब्दी की, 10 प्रतिमाऐं 12वीं सदी की, 63 प्रतिमाऐं 13वीं सदी की, 259 प्रतिमाऐं 14वीं सदी की, 436 प्रतिमाऐं 15वीं सदी की तथा 339 प्रतिमाऐं 16वीं सदी की है।
प्रन्यास के अध्यक्ष श्री निर्मलजी धारीवाल ने बताया कि पिछले सौ वर्षों के इतिहास में कुल मिलाकर सात बार प्रतिमाओं को प्रकट किया गया। इस बार पूज्य गच्छाधिपतिश्री के मार्गदर्शन में प्रन्यास द्वारा प्रकट की जा रही है। प्राकट्य महोत्सव पांच दिन तक चला। ता. 27 से प्रारंभ महोत्सव 1 दिसम्बर तक चला। हजारों हजारों लोगों ने परमात्मा के दर्शन, पूजन, अर्चन का लाभ लिया।
ता. 27 को श्री सिद्धचक्र महापूजन, ता. 28 को भक्तामर महापूजन पढाया गया। ता. 29 श्री 108 पाश्र्वनाथ महापूजन पढाया गया। ता. 29 को प्रातः अठारह अभिषेक व दोपहर को श्री शांतिस्नात्र महापूजन पढाया गया। ता. 2 दिसम्बर विधि विधान पूर्वक पुनः सभी प्रतिमाओं को भूगर्भ में बिराजमान किया गया।
श्री चिंतामणि जैन मंदिर प्रन्यास के सचिव चन्द्रसिंह पारख ने बताया कि स्थानीय आई जी श्री विपिन पांडेय पधारे और उन्होंने परमात्मा के दर्शन किये। प्रन्यास द्वारा उनका स्वागत किया गया।
इस महोत्सव की व्यवस्था में अखिल भारतीय खरतरगच्छ युवा परिषद् बीकानेर शाखा तथा अखिल भारतीय खरतरगच्छ महिला परिषद् बीकानेर शाखा का सराहनीय योगदान रहा।


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