इन्दौर
23 नवंबर। पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य श्री
जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा., पूज्य
मुनि श्री मुक्तिप्रभसागरजी म., पूज्य
मुनि श्री मनीषप्रभसागरजी म., पूज्य
मुनि श्री मयंकप्रभसागरजी म., पूज्य
मुनि श्री मेहुलप्रभसागरजी म. और पूज्य बाल मुनि श्री मलयप्रभसागरजी म. ठाणा 6 एवं पूजनीया महत्तरा पद विभूषिता श्री
दिव्यप्रभाश्रीजी म., पू. साध्वी श्री विरागज्योतिश्रीजी म., पू. साध्वी श्री विश्वज्योतिश्रीजी म., पू. साध्वी श्री जिनज्योतिश्रीजी म. ठाणा 4 का चातुर्मास परिवर्तन श्री हस्तीमलजी
राजकुमारजी मोहनसिंहजी लालन परिवार के निवास स्थान पर हुआ।
कार्तिक
पूर्णिमा के मंगल प्रभात में कार्तिक पूर्णिमा की विधि करने के पश्चात् सकल श्री
संघ के साथ लालन परिवार के निवास स्थान पर पधारे। जहाँ लालन परिवार की ओर से सकल
श्री संघ के नाश्ता का लाभ लिया गया।
तत्पश्चात्
पूज्यश्री का सिद्धाचल की महिमा पर प्रभावशाली प्रवचन हुआ। उन्होंने सिद्धाचल
तीर्थ के साथ खरतरगच्छ के संबंध का इतिहास सुनाया। उन्होंने कहा- दादा जिनकुशलसूरि
की प्रेरणा से 14वीं शताब्दी में खरतरवसही का निर्माण किया गया
था। यह खरतरवसही शांतिनाथ मंदिर के बाद बायीं ओर जो जिनमंदिरों की शृंखला है, वही है। यह उल्लेख शेठ आणंदजी कल्याणजी पेढी
द्वारा प्रकाशित इतिहास की पुस्तक में भी अंकित है।
उन्होंने
कहा- आचार्य जिनप्रभसूरि जो विक्रम की चौदहवीं शताब्दी में हुए, वे जब बादशाह मोहम्मद तुगलक के साथ सिद्धाचल के
दरबार में पधारे थे, तब बादशाह द्वारा रायण वृक्ष को मोतियों से बधाने
पर दूध की वर्षा हुई थी, जिसे देख कर बादशाह दंग रह गया था।
चौथे
दादा जिनचन्द्रसूरि ने दादा जिनदत्तसूरि व जिनकुशलसूरि के चरणों की स्थापना की थी।
उनके प्रशिष्य आचार्य जिनराजसूरि ने खरतरवसही अपर नाम शेठ सवा सोमा की टूंक की
प्रतिष्ठा कराई थी। जिसे वर्तमान में चौमुखजी टूंक कहा जाता है। श्रीमद्
देवचन्द्रजी म. ने यहाँ कई प्रतिष्ठाऐं करवाई थी। उन्होंने ही आनंदजी कल्याणजी
पेढी की स्थापना की थी।
शेठ
मोतीशा की टूंक खरतरगच्छ के ही सुश्रावक शेठ मोतीशा द्वारा निर्मित है। महो. श्री
क्षमाकल्याणजी म. ने 19वीं शताब्दी में बंद हुई शत्रुंजय तीर्थ की
यात्रा प्रारंभ करवाई थी। अंगारशा पीर के उपद्रव को उन्होंने मंत्र बल से शांत
किया था।
प्रवचन के पश्चात् लालन परिवार की ओर से कामली अर्पण
की गई। उल्लेखनीय है कि 24 वर्ष पूर्व हुए चातुर्मास परिवर्तन का लाभ भी इसी परिवार ने लिया था।
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