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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

34. नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

34.  नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.
जीवन को हमने दु:खमय बना दिया है। दु:खमय है नहीं, पर सुख की अजीब व्याख्याओं के कारण वैसा हो गया है। हम अपनी ही व्याख्याओं के जाल में फँस गये हैं। जिस जाल में फँसे हैं, उस जाल को हमने ही अपने विचारों और व्याख्याओं से बुना है। इस कारण किसी और को दोष दिया भी नहीं जा सकता। और इस कारण हम अपने ही अन्तर में कुलबुलाते हैं।
हमने अपने जीवन के बारे में एक मानचित्र अपने मानस में स्थिर कर लिया है। और उस मानचित्र में उन्हें बिठा दिया है हमने उन पदार्थों को, परिस्थितियों को, जिनका मेरे साथ कोई वास्ता नहीं है।
जिंदगी भर उस मानचित्र को देखते रहें, उस पर लकीरें खींचते रहें, बनाते रहें, बिगाडते रहें, बदलते रहें, परिवर्तन कुछ नहीं होना। परिवर्तन की आशा और आकांक्षा में जिंदगी पूरी हो जाती है, मानचित्र वैसा ही मुस्कुराता रहता है। फिर वही मानचित्र अगली पीढी के हाथ आ जाता है, वह भी उस धोखे में उलझ कर अपनी जिंदगी गँवा देता है।
हमने अपने मानचित्र में लकीर खींच दी है कि धन आयेगा तो सुख होगा! कुछ समय बाद लकीर बदलते हैं कि इतना धन आयेगा तो सुख होगा।
बदलते समय के साथ यह लकीर बदलती जाती है। इसकी सीमाऐं विस्तृत होती जाती है। आकांक्षा की उस लकीर तक कोई पहुँच ही नहीं पाता। और इस कारण उसे सुख मिल नहीं पाता। एक जिंदगी तो क्या सैंकडों हजारों जिन्दगियाँ क़ुर्बान कर दे, तो भी उस लकीर तक पहुँच नहीं पाता। क्योंकि लकीर स्थिर नहीं है।
अपने मानचित्र में दूसरी लकीर खींचता है- अभी शादी नहीं हुई, इसलिये सुख नहीं है। जब शादी होने के बाद भी सुख नहीं मिलता तो सुख का आधार पुत्र को बनाता है। आधार बदलते जाते हैं। क्योंकि आधार उन्हें बनाता है, जो नहीं है। और इस जगत में ‘है से ‘नहीं है सदैव ज्यादा होता है। वह अधिक है जो नहीं है। तो जो नहीं है, वह कभी भी पूर्ण रूप से है हो नहीं सकता। और इस प्रकार सुख मिल नहीं सकता। सुखी हो नहीं सकता। वह दु:ख में ही अपने जीवन को समाप्त कर डालता है।
सुखी होने का मंत्र एक ही है- सुख का आधार बाहर मत बनाओ। बाहर के द्रव्यों, परिस्थितियों को सुख का कारण मत मानो। अपने मानचित्र में बाहर की लकीरें मत खींचो। जीवन परम आनन्दमय हो जायेगा।

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