जीवन सीधी लकीर नहीं है। इसकी
पटरी में न जाने कितने ही उल्टे सीधे, दांये बांये मोड बिछे है। मोड मिलने के बाद ही
हमें उसका पता चलता है! पहले खबर हो जाय, ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।
बहुत बार तो ऐसा होता है कि मोड
गुजर जाने के बाद ही हमें पता चलता है कि हम किसी मोड से गुजरे हैं। और बहुत बार ऐसा
भी होता है कि मोड गुजर जाने के बाद भी हमें पता नहीं चलता कि हम किसी मोड से गुजरे
हैं।
भले हमें विभिन्न
मोडों से गुजरना
पडे पर सर्चलाइट तो एक ही पर्याप्त होती है। ऐसा तो होता नहीं कि दांये
जाने के लिये टोर्च अलग चाहिये और बांये जाना हो तो टाँर्च अलग किस्म की
चाहिये। क्योंकि अंतर
मात्र दिशा का है। न मुझमें अंतर हुआ है, न राह पर रोशनी डालने वाले में!
इस कारण जीवन एक निर्णय से नहीं
चलता। विभिन्न परिस्थितियों में परस्पर विरोधी निर्णय भी लेने होते हैं। कभी प्यार
से पुचकारना होता है तो कभी लाल आँखें करते हुए डांटना भी होता है। कभी लेने में आनंद
होता है तो कभी देने में भी आनंद का अनुभव होता है। दिखने में भले निर्णय अलग अलग प्रतीत
होते हों, पर अन्तर में उनका यथार्थ, निहितार्थ, फलितार्थ एक ही होता है। पुचकारना
भी उसी लिये था जिसके लिये डांटना था।
हमें परिस्थितियाँ देख कर निर्णय
करना होता है तो परिस्थितियों के आधार पर निर्णय बदलना भी होता है। कभी कभी एक जैसी
स्थितियों में भी भिन्न निर्णय करने होते हैं। क्योंकि मुख्यता स्थितियों या परिस्थितियों
की नहीं है। मुख्यता है निर्णय की! निर्णय के आधार की! निर्णय के परिणाम की!
परिस्थिति केवल वर्तमान का बोध
कराती है। जबकि निर्णय करते वक्त हमें केवल वर्तमान ही देखना नहीं होता। अपनी चकोर
आँखों को अतीत में भी भेजना होता है तो आँखें बंद करके भविष्य के परिणाम की भी कल्पना
करनी होती है।
निर्णय हमेशा वर्तमान में, वर्तमान
के लिये होता है। पर जो तीनों कालों को टटोल कर, तीनों कालों में उसके परिणाम के सुखद
किंवा दुखद स्पर्श का अनुभव कर निर्णय करता है, वह जीतता है। विजय की यही परिभाषा है।
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