जेल की सजा
काटकर जब जटाशंकर
बाहर आया तो
उसके मित्र घटाशंकर
ने उससे पूछा-
क्या हुआ था!
जेल क्यों गये!
ऐसा क्या काम
किया, जो तुम्हें
जेल जाना पडा!
चोरी की थी
क्या! चोरी करते
पकडे गये क्या!
- ना ना! जुकाम
के कारण पकडा
गया!
- जुकाम के कारण!
बात कुछ समझ
में नहीं आई।
सर्दी जुकाम होना
तो कोई अपराध्
नहीं है, जिसके
कारण जेल जाना
पडे।
- अरे! मेरी बात
तो सुन! हुआ
ऐसा कि मैं
एक घर में
चोरी कर रहा
था। तिजोरी तोड
चुका था। उसे
साफ कर चुका
था। मैं पोटला
बांध् कर भागने
की तैयारी में
ही था कि
जुकाम के कारण
छींक आ गई।
उसे रोकने की
बहुत कोशिष की,
पर जुकाम इतना
खतरनाक था कि
रोक नहीं पाया।
जोर से आई
उस छींक के
कारण घर वाले
जाग गये। और
मैं अपने कदम
बाहर रखूं, उससे
पहले उन्होंने मुझे
पकड लिया।
यदि मुझे जुकाम
नहीं होता, तो
न तो छींक
आती, न मैं
पकडा जाता और
न मुझे जेल
जाना पडता!
हम भी
ऐसा ही करते
हैं। सजा का
कारण चोरी है,
पर वह जुकाम
को जिम्मेदार ठहरा
रहा था। ऐसे
ही दु:ख,
पीडा और अपमान
का कारण वे
कर्म हैं, जिन्हें
मैंने ही हँसते
हँसते राग द्वेष
के कारण बांधे
हैं। पर मैं
यह नहीं समझ
पाता और निमित्त
को जिम्मेदार ठहराता
हूँ।
jahaj mandir, maniprabh, mehulprabh, kushalvatika, JAHAJMANDIR, MEHUL PRABH, kushal vatika, mayankprabh, Pratikaman, Aaradhna, Yachna, Upvaas, Samayik, Navkar, Jap, Paryushan, MahaParv, jahajmandir, mehulprabh, maniprabh, mayankprabh, kushalvatika, gajmandir, kantisagar, harisagar, khartargacchha, jain dharma, jain, hindu, temple, jain temple, jain site, jain guru, jain sadhu, sadhu, sadhvi, guruji, tapasvi, aadinath, palitana, sammetshikhar, pawapuri, girnar, swetamber, shwetamber, JAHAJMANDIR, www.jahajmandir.com, www.jahajmandir.blogspot.in,
Comments
Post a Comment
आपके विचार हमें भी बताएं