34. नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा. जीवन को हमने दु:खमय बना दिया है। दु:खमय है नहीं, पर सुख की अजीब व्याख्याओं के कारण वैसा हो गया है। हम अपनी ही व्याख्याओं के जाल में फँस गये हैं। जिस जाल में फँसे हैं, उस जाल को हमने ही अपने विचारों और व्याख्याओं से बुना है। इस कारण किसी और को दोष दिया भी नहीं जा सकता। और इस कारण हम अपने ही अन्तर में कुलबुलाते हैं। हमने अपने जीवन के बारे में एक मानचित्र अपने मानस में स्थिर कर लिया है। और उस मानचित्र में उन्हें बिठा दिया है हमने उन पदार्थों को, परिस्थितियों को, जिनका मेरे साथ कोई वास्ता नहीं है। जिंदगी भर उस मानचित्र को देखते रहें, उस पर लकीरें खींचते रहें, बनाते रहें, बिगाडते रहें, बदलते रहें, परिवर्तन कुछ नहीं होना। परिवर्तन की आशा और आकांक्षा में जिंदगी पूरी हो जाती है, मानचित्र वैसा ही मुस्कुराता रहता है। फिर वही मानचित्र अगली पीढी के हाथ आ जाता है, वह भी उस धोखे में उलझ कर अपनी जिंदगी गँवा देता है। हमने अपने मानचित्र में लकीर खींच दी है कि धन आयेगा तो सुख होगा! कुछ समय बाद लकीर बदलते हैं कि इतना धन आयेगा तो सुख होगा। बदल...