22 . नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा. संवत्सरी महापर्व निकट है। हमेशा की भांति इस वर्ष भी यह हमारी कुण्डी खटखटाने चला आया है। यह ऐसा अतिथि है, जो आमंत्रण की परवाह नहीं करता। जो बुलाने पर भी आता है, नहीं बुलाने पर भी आता है। यह ऐसा अतिथि है जो ठीक समय पर आता है। पल भर की भी देरी नहीं होती। जिसके आगमन के बारे में कभी कोई संशय नहीं होता। सूरज के उदय और अस्त की भांति नियमित है। यह आता है, जगाता है और चला जाता है। जो देकर तो बहुत कुछ जाता है, पर लेकर कुछ नहीं जाता। यह हम पर निर्भर है कि हम जाग पाते हैं या नहीं! इसे सुन पाते हैं या नहीं! यह अपना कर्त्तव्य निभा जाता है। और हम नहीं जागते तो यह नाराज भी नहीं होता। कितनी आत्मीयता और अपनत्व से भरा है यह पर्व! न नाराजगी है, न उदासी है, न क्रोध है, न चापलूसी है, न शल्य है, न मोह! वही जानी पहचानी मुस्कुराहट लिये... आँखों में रोशनी लिये... जीने का एक मजबूत जज़्बा लिये..... हमें रोशनी से भरने, जीने का एक मकसद देने, एक मीठी मुस्कुराहट देने चला आता है। मुश्किल हमारी है कि हम इसे देखते हैं, जानते हैं, पहचानते हैं, सोचते हैं, विचारते ...