26. नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी
म.सा.
हमारे पास केवल ‘आज’ है। ‘आज’ ‘कल’ नहीं है। और ‘आज’ को ‘कल’ होने में समय लगेगा। आज का उपयोग
होने के बाद ‘आज’ ‘कल’ में बदल भी जायेगा तो कोई चिंता
की बात नहीं होगी।
पर उपयोग किये बिना ही ‘आज’ यों ही यदि ‘कल’ में बदल गया तो निश्चित ही हम अपने
आपको क्षमा नहीं कर सकेंगे।
यह तय है कि ‘आज’ को कल में बदलने से रोका नहीं जा
सकता। कोई नहीं रोक सकता। तीर्थंकर भी आज को ‘कल’ में बदलने से रोक नहीं पाये थे। उन्होंने भी उसका उपयोग
किया और सिद्ध हो गये।
जो उपयोग करता है, बल्कि कहना
चाहिये कि जो सम्यक् उपयोग करता है, वह सिद्ध हो जाता है। आज ही यथार्थ है। क्योंकि
आज ही हमारे सामने है।
कल का विचार किया जा सकता है...
सोचा जा सकता है... उसमें डुबकी लगायी जा सकती है... पर उसमें जीया नहीं जा सकता। चाहे
वह कल बीता हुआ कल हो, या आने वाला, हमारे जीने के लिये उसका महत्व उसके ‘आज’ रहने पर या ‘आज’ बनने पर ही था या होगा।
हिन्दी भाषा का कल शब्द महत्वपूर्ण
है। चाहे बीते दिन के लिये प्रयोग करना हो या आने वाले दिन के लिये.... दोनों के लिये
‘कल’ शब्द का ही
प्रयोग किया जाता है। दोनों कल में कोई विशेष अंतर नहीं है, जीवन की अपेक्षा से!
हालांकि समझ की अपेक्षा से अंतर
है। क्योंकि बीता कल हमारी परीक्षा का प्रश्न पत्र था, जिसकी उत्तरपुस्तिका हमने कल
जमा करवाई थी। ‘आज’ उसका
परिणाम है। हम प्रश्नपत्र की उस उत्तर पुस्तिका में ‘आज’ के रूप में अपना परिणाम खोज सकते
हैं। बीते कल को देखकर हम आने वाले कल का निर्णय कर सकते हैं। दोनों कल का महत्व इतना
ही है।
पर निर्णय तो आज ही करना होगा!
सोचना भी आज ही होगा! लाभ हानि के आंकडे भी आज ही लिखने होंगे!
समय का अर्थ ही आज है। जो बीत
गया, वह अब समय नहीं रहा। समय की परिभाषा केवल वर्तमान के इर्दगिर्द घूमती है। जो बीत
गया या जो आने वाला है, वह इतिहास या भविष्य हो गया।
समय वर्तमान की सूचना देता है।
क्योंकि उसी पर हमारा अधिकार है। उसे पाने या छोडने का अधिकार हमें नहीं है। हमें केवल
उसके उपभोग, उपयोग का अधिकार है।
परमात्मा महावीर का सुप्रसिद्ध
सूत्र- ‘समयं गोयम मा पमायए’ हमें प्रतिपल जागरूक रहने की सूचना देता है।
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