21 नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.
जीवन पुण्य और पाप का परिणाम
है। पूर्व पर्याय {पूर्व जन्म} का पुरूषार्थ हमारे वर्तमान का अच्छापन या बुरापन तय
करता है।
जीवन बिल्कुल हमारी इच्छाओं से
चलता है। इच्छा के विपरीत कुछ भी नहीं होता। हमारे साथ जो भी होता है, हमारी इच्छा
से ही होता है।
मन में पैदा हुए विचारों को ही
जिन्हें हम रूचि से सहेजते हैं, इच्छा माना है। परन्तु यहाँ इच्छा का अर्थ मन में पैदा हुए विचार ही नहीं है। यहाँ इच्छा का
अर्थ थोडा व्यापक है। इसमें मन तो मुख्य है ही, क्योंकि बिना मन के तो कोई प्रवृत्ति
होती नहीं।
इच्छा का अर्थ है- मानसिक, वाचिक
और कायिक प्रवृत्ति!
जो भी हमारे साथ हुआ है, होता
है, होगा, वह सब इसी का परिणाम है।
होता सब कुछ हमारी इच्छा से है।
पर वर्तमान की इच्छा से नहीं, पूर्वकृत इच्छा से!
पूर्व में हमने जैसा सोचा, जैसा
बोला, जैसा किया, वही वर्तमान में हमें उपलब्ध होता है।
यह तय है कि उपलब्धि पर हमारा
कोई नियंत्रण नहीं है। क्योंकि इसकी चाभी हमारे हाथ से पूर्व जीवन में ही निकल चुकी
होती है।
पुण्य और पाप का उदय महत्वपूर्ण
नहीं है! पुण्य और पाप के उदय के क्षण महत्वपूर्ण नहीं है। उन क्षणों की हमारी विचारधारा
महत्वपूर्ण है। क्योंकि वह मानसिकता हमारे भविष्य का निर्माण करती है।
आत्म यात्रा की पोथी में अतीत के पृष्ठ नहीं, भविष्य के पन्ने महत्वपूर्ण
होते हैं। वर्तमान को भी वर्तमान के रूप में ही देखा है, तो महत्वपूर्ण नहीं है। वर्तमान
को भी भविष्य के दर्पण में देखने का प्रयास किया है, तो महत्वपूर्ण है।
क्योंकि वर्तमान को तो बहुत जल्दी
अतीत का हिस्सा हो जाना है।
अतीत में क्या किया, यह महत्वपूर्ण
नहीं है।
वर्तमान में हम क्या कर रहे
हैं, यह महत्वपूर्ण है।
वर्तमान में हमें क्या मिला,
यह महत्वपूर्ण नहीं है।
भविष्य में हमें क्या पाना है,
यह महत्वपूर्ण है।
यह चिंतन ही वह चाबी है, जो हमें
वर्तमान में जागृत रखती है। यह सोचकर ही हमें अपनी इच्छा को गति देना है, नियंत्रित
करना है, दिशा देनी है।
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