29. नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.
हमारा जीवन गलतियों का पिटारा
है। सबसे बडी गलती है गलतफहमी में डूबना और उस आधार पर अपनी सोच का निर्माण करना।
गलतियों से हम जितने परेशान नहीं
है, गलतफहमियाँ उससे कई गुणा हमारे जीवन को, हमारी सोच को नरक बना देती है।
प्रश्न है कि गलतफहमी क्यों होती
है?
इस प्रश्न का समाधान हमारी सोच
में छिपा है।
गलतफहमी होने के कई कारण है।
मुख्य कारण है- हमारा पूर्वाग्रह!
हम पूर्वाग्रहों में जीते हैं
और पूर्वाग्रहों से जीते हैं। ‘में’ और ‘से’ के बीच अन्तर है तो थोडा, मगर गहरा है। ‘में’ वर्तमान की सूचना देता है और ‘से’ अतीत की! और इस ‘में’ और ‘से’ से ही भविष्य का रास्ता निकलता
है। क्योंकि एक बार पूर्वाग्रह बना नहीं कि फिर हारमाला शुरू हो जाती है। फिर रूकता
नहीं है। एक गलतफहमी दूसरी को जन्म देती है, दूसरी तीसरी को, और इस प्रकार एक अन्तहीन
सिलसिला शुरू हो जाता है।
पूर्वाग्रहग्रस्त होना हमारी
कमजोर और अज्ञानभरी मानसिकता का परिणाम है। यह अनुमान है जो सच भी हो सकता है, जो गलत
भी हो सकता है। पर हम उसे सच मान कर ही जीते हैं। फिर यह अनुमान हमारी सोच को प्रभावित
करता है।
उससे गलतफहमी निर्मित होती है।
मुश्किल यह है कि गलतफहमी गलतफहमी लगती नहीं है। वह सच ही लगती है। फिर उसका व्यवहार,
उसका प्रत्युत्तर सब कुछ वैसा ही हो जाता है।
बहुत बार तो ऐसा भी होता है कि
आँखों देखी बात झूठ हो जाती है। कभी कभी प्रमाण जो सूचना देते हैं, सत्य वैसा नहीं
होता।
एक बात तय कर लेनी चाहिये कि
संबंधित व्यक्ति से सत्य की जानकारी परिपूर्ण करने के बाद ही हम कोई अनुमान भरोसेमंद
मानेंगे। क्योंकि जब हमें पता लगता है कि मेरा अनुमान ठीक नहीं था, तब तक बहुत देर
हो चुकी होती है। तब तक हम अपना बहुत नुकसान कर चुके होते हैं। नुकसान सामने वाले का
भी बहुत कर चुके होते हैं, जिसकी भरपाई संभव नहीं होती।
इसलिये अपनी नजरों को दो ओर घुमाने
की बजाय चारों ओर घुमाना सीखो। सब कुछ देखना और सब कुछ समझना सीखो। कुछ अतीत का इतिहास
भी देखो, उसे थोडा उलट पुलट कर भी देखो, ताकि गलतफहमी की गलती न हो।
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