31. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.
मिस्टर जटाशंकर का व्यापार चल
नहीं रहा था। कोई युक्ति समझ में आ नहीं रही थी। क्या करूँ कि मैं अतिशीघ्र करोड़पति
बन जाऊँ! आखिर उसने अपना दिमाग लडाकर एक ठगी का कार्य करना प्रारंभ किया। बाबा का रूप
धार लिया। बोलने में तो उस्ताद था ही। उसने स्वर्ग के टिकट बेचने प्रारंभ कर दिये।
उसने वचन दिया सभी को कि जो भी इस टिकिट को खरीदेगा, उसे निश्चित रूप से स्वर्ग ही
मिलेगा, भले उसने जिन्दगी में कितने ही पाप किये हों... न केवल पूर्व के किये गये पाप
नष्ट हो जायेंगे बल्कि भविष्य में होने वाले पापों की सजा भी नहीं भुगतनी होगी। बस
केवल एक टिकिट खरीदना होगा और मरते समय उसे यह टिकिट अपनी छाती पर रखना होगा।
लोगों को तो आनंद आ गया। मात्र
5000 रूपये में स्वर्ग का रिजर्वेशन! और क्या चाहिये! फिर पाप करने की छूट! लोगों में
तो टिकिट खरीदने के लिये अफरातफरी मच गई। हजारों टिकट बिक गये।
बहुत बडी राशि एकत्र कर वह अपने
आश्रम लौट रहा था।
उसकी कार फर्राटे भरती हुई दौड
रही थी। जटाशंकर अतिप्रसन्न था कि मेरा आइडिया कितना सफल रहा। रूपये उसने बडे बडे बैगों
में भरकर कार की डिक्की में रखवा दिये थे। घर जल्दी पहुँचने के भाव थे।
रास्ता थोडा टेढा था। बीच में
जंगल भी था। घुमावदार रास्ते में उसकी गाडी तेजी से दौड रही थी। कि अचानक सामने एक
मोड पर बीच रास्ते पर कुछ बडे बडे पत्थर पडे दिखाई दिये।
ड्राईवर को गाडी रोकनी पडी। अचानक
चारों ओर से बंदूक और पिस्तौल ताने लोग कार पर हमला करने लगे। उन डाकुओं के सरदार ने
बाबा जटाशंकर के पास जाकर उसकी गर्दन से पिस्तौल लगा कर कहा- बाबा! रूपयों के बैग जल्दी
से मेरे हवाले कर दो। बहुत पैसा एकत्र किया है तुमने!
बाबा जटाशंकर घबराते हुए बोला-
अरे! एक संत को तुम लूट रहे हो... तुम्हें खतरनाक दंड भोगना पडेगा। नरक मिलेगी नरक!
सरदार ने कहा- बाबा! उसकी तुम
चिंता न करो! मैं नरक में जाने वाला नहीं हूँ! क्योंकि मैंने स्वर्ग का टिकट खरीद
लिया है। आपने ही तो कहा था- भविष्य में कुछ भी पाप करो... तुम्हें स्वर्ग ही मिलेगा!
इसलिये बाबा! आप तो जल्दी से
सारी राशि मेरे हवाले करो।
बाबा जटाशंकर अपनी ही बातों में फँस गया था।
स्वर्ग कोई और नहीं दे सकता।
कोई टिकट नहीं होता! हम स्वयं ही अपना स्वर्ग या नरक तय करते हैं। हमारा आचरण ही हमें
स्वर्ग या नरक ले जाता है।
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