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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

AYRIYA LUNAVAT GOTRA HISTORY आयरिया/लूणावत गोत्र का इतिहास

आयरिया/लूणावत गोत्र का इतिहास
आलेखकः- गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी महाराज

प्रथम दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरीश्वरजी म-सा- का विचरण सिंध देश में चल रहा था। घटना वि. सं. 1198 की है। वे विहार करते हुए पधारे थे और नगर के बाहर सिंधु नदी के किनारे एक वृक्ष तले विश्राम कर रहे थे।
उनके शिष्य शुद्ध आहार पानी गवेषणा के लिये नगर में गये थे।
संयोग ऐसा बना कि जब वे मुनि गोचरी के लिये पधार रहे थे, उस समय नगर का शासक अभयसिंह भाटी घोडे पर सवार होकर शिकार के लिये निकला था।
अभयसिंह की नजर मुनि पर पड़ी। मुनि को देखकर राजा ने अपना मुँह फेर लिया। मन में आया- इस मुंड ने अपशकुन कर दिया।
राजा का इशारा प्राप्त कर राज-सेवकों ने मुनि के प्रति अपशब्दों का प्रयोग किया। मुनि समताधारी थे। योगानुयोग उसी समय उन सेवकों को खून की उल्टियॉं होने लगी।

यह देख कर राजा घबरा उठा। वह बार बार क्षमा मांगने लगा। मुनि ने कहा- मेरे गुरु महाराज नदी के किनारे एक पेड़ के नीचे बिराजमान हैं। वे ही क्षमा करने के अधिकारी है। आपको उन्हीं से क्षमा मांगनी चाहिये।
राजा दौडा दौडा वहॉं पर गया। अपने अपराध के लिये गुरु महाराज से क्षमायाचना की। गुरु महाराज ने योग्य पात्र समझ कर धर्म का उपदेश देना प्रारंभ किया। गुरुदेव ने उसे धर्म का उपदेश देते हुए अहिंसा का सिद्धान्त समझाया और हिंसा न करने की सीख दी। वार्तालाप चल ही रहा था कि अचानक सिंधु नदी का पानी बढ़ने लगा। यह देख कर राजा अपनी भाषा में घबरा कर बोला- पानी आय रिया है। अर्थात् पानी आ रहा है। आप कृपा करो। कैसे भी हमारी रक्षा करो!
गुरुदेव की साधना के चमत्कार से तत्काल पानी उतर गया। यदि पानी नहीं उतरता तो हजारों लोगों की जान खतरे में पड जाती। पूरे गांव के डूबने के आसार स्पष्ट हो रहे थे।
राजा अत्यन्त प्रमुदित हुआ। उसने गुरुदेव आचार्य श्री जिनदत्तसूरीश्वरजी म-सा- के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा- आपके इस उपकार को हम कभी नहीं भूल पायेंगे।
गुरुदेव ने जिन धर्म का उपदेश दिया। परिणाम स्वरूप प्रभावित होकर राजा ने अनेक भाटी क्षत्रियों के साथ जैन धर्म स्वीकार कर लिया।
पानी आय रिया है। इस वाक्य के आधार पर गुरुदेव ने आयरिया गोत्र की स्थापना की।
श्री अभयसिंह की सतरहवीं पीढी में लूणा शाह नामक अति प्रसिद्ध व्यक्ति हुए। जिन्होंने शासन के अनेक कार्य किये। शत्रुंजय का विशाल संघ निकाला। जब मारवाड में अकाल पडा था, तब जनता को प्रचुर सहायता दी। इन लूणा शाह के वंशज लूणावत कहलाये।

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