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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

CHORDIYA GOLECHA PARAKH RAMPURIYA GOTRA HISTORY चोरडिया/गोलेच्छा/गोलछा/पारख/रामपुरिया/गधैया आदि गोत्रें का इतिहास


चोरडिया/गोलेच्छा/गोलछा/पारख/रामपुरिया/गधैया आदि गोत्रें का इतिहास

आलेखकः- गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी महाराज



इन गोत्रें की उत्पत्ति चंदेरी नगर में हुई। विक्रम संवत् 1192 की यह घटना है। पूर्व देश में स्थित चंदेरी नगर पर राठोड वंश के खरहत्थ राजा का शासन था। उसके चार पुत्र थे। उनके नाम क्रमशः अम्बदेव, निम्बदेव, भैंसाशाह और आसपाल थे।
एक बार यवन सेना ने राज्य पर आक्रमण कर दिया। जनता को लूंटना प्रारंभ किया। राजा खरहत्थ अपने चारों युवा पुत्रें के साथ सेना लेकर रणभूमि में कूद पडा। यवन सेना का पीछा किया। घमासान युद्ध हुआ। राजा खरहत्थ, उनके पुत्रें व सेना ने बहादुरी के साथ युद्ध लडा। परिणाम स्वरूप ज्योंहि यवन सेना को हारने का अनुमान लगा तो वह सेना लूटा हुआ सारा धन वहीं छोड कर भाग गई।
राजा खरहत्थ ने सारा धन उनके मालिकों को लौटा दिया। इस युद्ध में राजा खरहत्थ की विजय हुई। पर उसके चारों पुत्र बहुत घायल हो गये। राजवैद्यों ने चिकित्सा की। प वे स्वस्थ नहीं हो पाये। उनकी स्थिति लगातार बिगडती गई। राज वैद्यों ने अपने हाथ खडे कर दिये। उन्होंने कहा- आपके चारों पुत्रें को कोई चमत्कार ही बचा सकता है।
यह सुन कर राजा खरहत्थ घबरा उठा। वह रूदन करने लगा। तभी उसे समाचार मिले कि इधर कोई जैन साधु आये हुए हैं।

पता लगाने पर ज्ञात हुआ कि प्रथम दादा गुरुदेव खरतरगच्छाचार्य श्री जिनदत्तसूरि का नगर में आगमन हुआ है। राजा के मंत्रियों ने पूरे समाचार सुनाकर कहा- ये जैनाचार्य बडे त्यागी व तपस्वी हैं। उनकी शरण स्वीकार करने से ही पुत्रें को स्वस्थता मिल सकती है। ये बडे चमत्कारी आचार्य हैं।
राजा गद्गद् होता हुआ अपने मरणासन्न चारों पुत्रें को लेकर आचार्य भगवंत के पास पहुँचा। गुरुदेव के श्रीचरणों में अपनी प्रार्थना प्रस्तुत की। गुरुदेव ने उन पुत्रें पर अभिमंत्रित अमृत-जल का छिडकाव किया। पुत्रें के स्वास्थ्य में थोडा सुधार आने लगा। राजा की आंखों में प्रसन्नता छा गई। प्रतिदिन यह प्रयोग किया गया। कुछ ही दिनों में चारों ही भाई पूर्ण स्वस्थ हो गये।
राजा खरहत्थ सपरिवार गुरुदेव का परम भक्त बन गया। गुरुदेव की देशना श्रवण करने के लिये प्रतिदिन उपाश्रय जाने लगा। गुरुदेव ने जिनधर्म का रहस्य समझाते हुए अहिंसा का उपदेश दिया। गुरुदेव के उपदेशों से प्रभावित होकर उसने जैन धर्म को स्वीकार कर लिया। उनके साथ उनके पूरे परिवार ने तथा अनेक क्षत्रियों ने वीतराग परमात्मा के धर्म को अपना लिया।
चोरडिया- इस गोत्र के नामकरण के पीछे दो कथाऐं इतिहास में प्राप्त होती है। एक मत के अनुसार दादा गुरुदेव जिनदत्तसूरि से चोरडिया नामक गांव में धर्म प्राप्त करने के कारण उनका चोरडिया गोत्र प्रसिद्ध हुआ। यह गांव आज भी जोधपुर-जैसलमेर मुख्य मार्ग पर शेरगढ तहसील में स्थित है।
दूसरे मत के अनुसार राजा खरहत्थ के पुत्र अम्बदेव ने एक बार चोरों का पीछा किया था। उन्हें पकड कर उनके पॉंचों में बेडियॉं डाल दी थी। चोरों से भिडने के कारण चोरभेडिया कहलाये। अथवा चोरों के पॉंवों में बेडियॉं डालने के कारण चोरवेडिया कहलाए। बाद में अपभ्रंश होकर चोरडिया गोत्र प्रसिद्ध हुआ।
सावनसुखा- राजा खरहत्थ के पुत्र भैंसाशाह के पॉंच पुत्र थे। सबसे बडे पुत्र का नाम कुंवरजी था। उसे बचपन से ही ज्योतिष, शकुनशास्त्र आदि परा विद्या का अभ्यास किया था। इस कारण उसके द्वारा की गई भविष्यवाणियॉं प्रायः सच साबित होती थी।
एक बार चित्तौड के राजा ने वर्षा के संबंध में प्रश्न किये। उसने भविष्यवाणी की कि सावन सूखा रहेगा और भादवा हरा होगा।
वैसा ही हुआ। उसकी भविष्यवाणी सच हुई। यह देख राणा ने कुंवरजी के ज्ञान की बहुत प्रशंसा की। राजसभा में कहा- कुंवरजी ने जैसा कहा था, वैसा ही हुआ। सावन सूखा ही गया। यह बात पूरे राज्य में फैल गई। लोग उन्हें देख कर चर्चा करते कि ये वहीं सावन सूखे वाले कुंवरजी हैं। धीरे धीरे वे और उनका परिवार सावनसूखा कहलाने लगे। 19वीं शताब्दी में हुए आचार्य जिनमहेन्द्रसूरि सावनसुखा गोत्र के थे। सेठ मोतीशा द्वारा निर्मित भायखला जिनमंदिर एवं श्री सिद्धाचल की मोतीशा टूंक की प्रतिष्ठा इन्हीं के करकमलों से संपन्न हुई थी।
गोलेच्छा- राजा खरहत्थ के पुत्र भैंसाशाह के दूसरे पुत्र गेलोजी थे और उनके पुत्र का नाम बच्छराज था। लोग बच्छठराजजी के लिये कहते थे कि ये गेलोजी के बच्छजी हैं। धीरे धीरे उनका नाम गेलवच्छा हो गया। यही गेलवच्छा अपभ्रंश होकर गोलेच्छा या गोलच्छा में बदल गया। इस प्रकार बच्छराजजी के वंशज गोलेच्छा कहलाये।
सेठ माणकचंदजी गोलेच्छा जयपुर राज्य के प्रधान रहे। नथमलजी गोलेच्छा वि. 1937 से वि. 1958 तक जयपुर राज्य के मंत्री व दीवान रहे।
पारख/पारेख/परीख- राजा खरहत्थ के पुत्र भैंसाशाह के चौथे पुत्र का नाम पाशु था। ये बडे जौहरी थे। रत्नों की परीक्षा करने में माहिर थे। आहड नरेश चन्द्रसेन ने पाशुजी की योग्यता देख कर उन्हें अपने दरबार में स्थान दिया। एक बार एक बडा जौहरी अन्य देश से एक नायाब हीरा बेचने के लिये आहड दरबार में आया। राजा ने उस हीरे की परीक्षा करने के लिये नगर के जौहरियों को कहा। जौहरियों ने हीरा देख कर कहा- यह हीरा असली है। बहुत कीमती है।
बाद में वही हीरा पाशुजी को दिखाया। उन्होंने हीरे की परीक्षा करते हुए कहा- हीरा निश्चित ही बहुत कीमती है। पर इस हीरे में एक दोष भी है। यह हीरा जिस घर में रहेगा, उस घर की महिलाओं के लिये अमंगलकारी होगा।
राजा ने हीरे के मालिक जौहरी से पूछा तो उसने कहा पाशुजी की बात सही है।
मेरे पास यह हीरा आते ही मेरी दोनों पत्नियों का स्वर्गवास हो गया। आगन्तुक जौहरी बोला- हमने बहुत जौहरी देखें पर पाशुजी की बात अलग ही है।
राजा चन्द्रसेन ने प्रमुदित होकर पाशुजी की परीक्षा से प्रमुदित होकर पारखी की पदवी दी। वही पदवी आगे चलकर पारख के रूप में बदल गई। पाशुजी के वंशज पारख कहलाये।
आचार्य जिनसमुद्रसूरि पारख गोत्र के अनमोल रत्न थे। पूज्य आचार्य श्री जिनहरिसागरसूरीश्वरजी म-सा- के शिष्य तपस्वी मुनि हरखसागरजी म- पारख गोत्र के थे। वर्तमान में हमारे समुदाय में आचार्य जिनपीयूषसागरसूरि, मुनि मौनप्रभसागर, मुनि मननप्रभसागर, साध्वी प्रियंकराश्री, साध्वी डॉ- शासनप्रभाश्री, साध्वी प्रज्ञांजनाश्री आदि कई साधु साध्वी पारख गोत्र के हैं।
गद्दहिया/गधैया/गादिया- दादा गुरुदेव से जैनधर्म प्राप्त राजा खरहत्थ के पुत्र भैंसाशाह के पांचवें पुत्र का नाम सेनहत्थ था। पर उसका भरा भरा शरीर होने के कारण परिवारजन उसे प्रेम से गद्दाशाह कहकर बुलाते थे। आगे चलकर उनके वंशज गधैया कहलाये। अपभ्रंश होकर यही गोत्र गादिया के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
भटनेरा चौधरी- राजा खरहत्थ के दूसरे पुत्र का नाम निम्बदेव था। वह न्याय करने के लिये प्रसिद्ध था। गांव में किसी भी प्रकार का विवाद होने पर लोग उनके पास आकर न्याय कराते थे। वह निष्पक्ष दृष्टि से न्याय करता था। न्याय करने के कारण वह चौधरी कहलाया। भटनेर नगर का वासी होने के कारण उसके वंशज भटनेरा चौधरी कहलाये।
रामपुरिया- चोरडिया गोत्र के आलमचंदजी से रामपुरिया गोत्र की प्रसिद्धि हुई। रामपुरा के चंद्रावतों की कन्या का विवाह बीकानेर के महाराजा के साथ हुआ तक उस समय रामपुरा के राजा ने अपनी पुत्री के साथ चोरडिया आलमचंदजी को कामदार बनाकर भेजा। चूंकि आलमचंदजी रामपुरा से आये थे, अतः उनके वंशज रामपुरिया कहलाये। मूल गोत्र चोरडिया है।
गूगलिया- सावनसुखा कहलाये कुंवरजी के वंशजों ने बाद में जैसलमेर में गूगल का व्यापार करना प्रारंभ किया। गूगल का व्यापार करने के कारण वे गूगलिया कहलाये।
सावनसुखा, गोलेच्छा, पारख, भटनेरा चौधरी, गद्दहिया, गूगलिया, सोनी, पिपलीया, फलोदिया, नाणी, धन्नाणी, तेजाणी, जसाणी, पोपाणी, कक्कड, मक्कड, सीपाणी, मोलानी, देवसयाणी, चगलानी, सद्दाणी, लूटकण, कोबेरा, मट्टारकिया, बूचा, फाकरिया, फाफरिया, घंटेलिया, कोकडा, साहिला, संचोपा, कुरकच्चिया, ओस्तवाल, गुलगुलिया, रामपुरिया, सिंघड, कुमटिया आदि 50 शाखाऐं राजा खरहत्थ के वंशजों की हुई। दादा जिनदत्तसूरि से प्रतिबोध प्राप्त कर ये जैन बने। इनका आपस में भाईपा है।

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