पगारिया/मेडतवाल/खेतसी/गोलिया
गोत्र का इतिहास
आलेखकः- गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी महाराज
खरतरबिरुद धारक
आचार्य जिनेश्वरसूरि की पट्ट परम्परा में नवांगी वृत्तिकार आचार्य श्री अभयदेवसूरि
म- अपने शिष्य मंडल के साथ विहार कर रहे थे। विहार करते करते वे वि. सं. 1111 में
भीनमाल पधारे।
भीनमाल में आपके
उपदेशों का अनूठा वातावरण बना। सभी जाति के श्रद्धालु लोगों की उपस्थिति आपश्री के
प्रवचनों में रहती थी।
उपदेशों का अनूठा
असर हुआ। ब्राह्मण जाति का एक सनाढ्य परिवार प्रतिदिन उपस्थित होता था। शंकरदास
नामक यह व्यक्ति पूज्यश्री के तत्त्वोपदेश से प्रभावित होकर गुरु महाराज का परम
भक्त बन गया।
नवतत्त्वों का
परिचय प्राप्त करने के पश्चात् उसने गुरुदेव से प्रार्थना की कि मैं परमात्मा
महावीर का श्रावक बनना चाहता हूँ। मुझे आप श्रावकत्व की दीक्षा प्रदान करें।
गुरु महाराज ने
उसे सम्यक्त्व प्रदान करते हुए श्रावकत्व की दीक्षा प्रदान की। चूंकि वह पगार चुकाने
का कार्य करता था। अतः उसे पगारिया गोत्र प्रदान करते हुए ओसवाल कुल में सम्मिलित
कर दिया।
उसी का एक परिवार
मेडता में बस जाने से वे मेडतवाल कहलाये। खेतसी नामक पूर्वज के नाम से खेतसी
गोत्रीय भी कहलाये।
गोलिया इसी गोत्र
की शाखा है। पुराने समय में अपने अपने समाज की बैठकें क्षेत्र के एक विशेष परिसर
में होती थी, उस क्षेत्र को गोल कहते थे। वहाँ के
मुखिया होने के कारण इनके वंशज गोलिया कहलाये।
इस गोत्र के
प्रतिबोधक खरतरगच्छ के नवांगी वृत्तिकार आचार्य अभयदेवसूरि है।
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