मिन्नी/खजांची/भुगडी
गोत्र का इतिहास
ये तीनों गोत्र
एक ही परिवार की शाखाऐं हैं। इस गोत्र की उत्पत्ति चौहान राजपूतों से हुई है।
संवत् 1216 में दूसरे दादा गुरुदेव मणिधारी जिनचन्द्रसूरीश्वरजी म- सा- के करकमलों
द्वारा इस गोत्र की स्थापना हुई थी।
इतिहास कहता है
कि एक बार मोहनसिंह चौहान उधार वसूली करके काफी धनराशि के साथ अपने शहर की ओर लौट
रहे थे। बीच में डाकुओं का सामना हो गया। शस्त्रधारी डाकुओं के सामने सारा धन, सोना चांदी मोहरें आभूषण डाकुओं के हवाले कर दिये। पर
बातों ही बातों में डाकुओं को उलझा कर एक रूक्के पर डाकुओं के सरदार के हस्ताक्षर
करवा लिये। उस रूक्के में लूंटे गये धन का पूरा विवरण लिखा था, जिसे डाकु समझ नहीं पाये। साथ ही वहीं पर राह चलती एक
वृद्ध महिला की साक्षी भी उसमें अंकित कर दी।
कुछ समय बाद
संयोगवश डाकू उसी नगर में सेठ मोहनसिंह चौहान से लूंटा हुआ माल बेचने के लिये आये।
इसे भी संयोग ही कहना चाहिये कि माल बेचने सेठ मोहनसिंह की दुकान के पगथिये चढने
लगे। माल देखते ही मोहनसिंह ने डाकुओं को पहचान लिया।
डाकुओं को बातों
में उलझाकर अपने सेवक द्वारा वहाँ के राजा के पास पूरा संदेश भेज कर सैनिकों को
बुलवा लिया। सैनिकों ने डाकुओं को गिरफ्तार कर लिया।
राज्य के
नियमानुसार डाकुओं पर केस चलाया गया। डाकुओं ने लूट से बिल्कुल इन्कार कर दिया।
क्योंकि वे जानते थे कि सच बोलने से जेल जाना होगा।
यहाँ हमें एक ही
स्वर में इन्कार करना है। फिर यह न्यायाधीश कैसे सिद्ध कर पायेगा कि लूट हमने की
है।
न्यायाधीश ने
गवाह के संदर्भ में सवाल किया। मोहनसिंह ने चतुराई से विचार कर कहा- हुजूर उस जंगल
में और तो कोई साक्षी नहीं था,
एक मिन्नी जरूर थी।
मिन्नी मारवाडी में बिल्ली को कहते हैं।
यह सुनते ही डाकु
चिल्ला उठे- कहाँ थी मिन्नी! उस समय तो वहाँ डोकरी थी। और तुम डोकरी को मिन्नी
कहते हो!
मोहनसिंह चौहान
उसकी बात को सुनकर मुस्कुरा उठा। न्यायाधीश ने मोहनसिंह की चतुराई को भांप लिया।
वे समझ गये कि लूट की घटना सही है। तभी तो वहाँ यह डोकरी की बात कर रहा है।
न्यायाधीश ने लूट
का सारा धन मोहनसिंह को वापस दिलवा दिया। मिन्नी वाली बात इतनी प्रसिद्ध हुई कि वे
मिन्नी कहलाने लगे।
इन्हीं मोहनसिंह
चौहान ने द्वितीय दादा मणिधारी जिनचन्द्रसूरि से वि. सं. 1216 में जैन धर्म
स्वीकार किया। गुरुदेव ने मिन्नी गोत्र की स्थापना की।
परिवार में बोहर
गत का व्यवसाय करने लगे। इस कारण इनके वंशज कांधल बोहरा कहलाये। इस परिवार के
जांजणजी जैसलमेर की राजकुमारी गंगा के साथ विवाह कर बीकानेर आकर बसे। बीकानेर के
महाराजा ने जांजणजी के पुत्र रामसिंह को अपने राज्य के खजाने का काम सौंपा। कई
वर्षों तक खजाने का कार्य करने से इनका परिवार खजांची कहलाया।
इसी परिवार के एक
वंशज सिंध देश में वहाँ के प्रसिद्ध भुगडी बेरों का व्यापार करते थे। इस कारण
भुगडी शाखा की प्रसिद्धि हुई।
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