20 नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा. जीवन को हम गणित से जोड कर जीते हैं। गणित की फ्रेम में ही हमारी सोच गति करती है। अतीत से प्रेरणा लेनी हो, वर्तमान का निर्धारण करना हो या भविष्य की आशा भरी कल्पनाओं में डुबकी लगानी हो, हमारे सोच की भाषा गणित में ही डूबी होती है। जीवन गणित नहीं है। इसे गणित के आधार पर जीया नहीं जा सकता। आज उसने 1000 रूपये कमाये हैं, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि कल भी वह इतना ही कमायेगा। वह ज्यादा भी कमा सकता है, कम भी! पर सोच ऐसी ही होती है। यह जानने पर भी कि यह संभव नहीं है। उसका अतीत उसकी गणित को प्रमाणित नहीं करता। फिर भी उसकी आशा भरी सोच उसी गणित से चलती है। यही उसके जीवन का सबसे बडा धोखा है। वह एक दिन के आधार पर एक मास की उपलब्धि और उसके आधार पर वर्ष भर की उपलब्धि के मीठे सपनों में खो जाता है। आज मैंने 500 कमाये हैं तो एक माह में 15 हजार और एक वर्ष में एक लाख अस्सी हजार कमा लूंगा। पाँच वर्ष में तो नौ लाख कमा लूंगा। अभी पाँच वर्ष बीते नहीं है। कमाई हुई नहीं है। होगी भी या नहीं, पता नहीं है। पर नौ लाख के उपयोग की मधुर कल्पनाओं में वह खो जाता है।