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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

Jain Religion is very oldest Religion

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KUMARPAL BHAI V. SHAH

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KUMARPAL BHAI V. SHAH

15 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

15   जटाशंकर       - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . जटाशंकर अपने तीन अन्य मित्रों के साथ घूमने चला था। अंधेरी रात में छितरी चांदनी का मनोरम माहौल था। मंद बहारों की मस्ती भरे वातावरण में उन्होंने शाम को शराब पी थी। शराब की मदहोशी के आलम में दिमाग शून्य था। उडा जा रहा था। घूमते घूमते नदी के किनारे पहुँच गये। ठंडी हवा के झोंकों में सफर करने का उनका मानस तत्पर बना। नदी के किनारे नाव पडी थी। उसे देखा तो सोचा कि आज रात नाव में घूमने का आनंद उठा लिया जाय! जटाशंकर के इस प्रस्ताव का सबने समर्थन किया। चारों मित्र नाव पर सवार हो गये। बैठते ही पतवारें थाम ली। रात के ठंडक भरे माहौल में उन्होंने नाव खेना प्रारंभ किया। शराब का नशा था तो पता ही नहीं चला कि समय कितना बीता! रात भर वे नाव चलाते रहे। पतवारें खेते रहे। नशे के कारण हाथों में थकान का जरा भी अनुभव न था। पौ फटने का समय आया। प्रकाश धीरे धीरे छाने लगा। तो एक दोस्त बोला- अरे ! नाव चलाने में अपन इतने मशगूल हो गये कि पता ही नहीं चला, कितनी दूर आ गये ! सवेरा होने का अर्थ है कि रात भर अपन चलते रहे हैं। कम से कम 100 कोस की दूरी तो अ

14 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

14 जटाशंकर       - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . पेट में दर्द होने के कारण जटाशंकर अस्पताल पहुंचा। वैद्यराजजी ने अच्छी तरह निरीक्षण करने के उपरान्त दवाई की नौ पुडियाँ उसके हाथ में देते हुए कहा प्रतिदिन तीन पुडियाँ लेना और तीन दिन बाद वापस आना। तीन दिन पूरे होने के बाद वापस वैद्यराजजी के पास पहुँचा। दर्द के बारे में बताते हुए कहा पेट का दर्द तो बढ ही गया है। साथ ही गले में दर्द का अनुभव हो रहा है। वैद्यराज ने पूछा तुमने दवाई तो बराबर ली। जटाशंकर ने कहाँ श्रीमान् दवा आपके कहे अनुसार ली। पूरी ली। पर पुडिया का कागज बहुत ही चिकना था। गले के नीचे उतरता ही नहीं था। दम निकला जाता था मेरा। पर मैने नौ ही पुडिया उतार ली थी। आश्चर्य चकित होते हुए वैद्यराज जी बोले-कागज खाने को किसने कहा था? हुजूर। आपने ही तो रोज तीन पुडी खाने को कहा था। हाँ, उस पुडिया में धूल, राख, कचरा जैसा कुछ था, उसको फेंक देता था। पर पुडियाँ मैंने बराबर खाई सुनने के बाद वैद्यराज जी यह निर्णय न कर सके कि मुझे इस पर क्रोध करना चाहिये या हँसना चाहिये। मूल तो बात सही समझ की है। यथार्थ समझ के अभाव में बहुत बा

13 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

13 जटाशंकर       - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . हडबड़ाकर जटाशंकर उठ बैठा। काफी देर तक आँखें मसलता रहा। हाथ मुँह धोकर कुर्सी पर बडे आराम से चिन्तन की मुद्रा में बैठ गया। यह सोच रहा था। अपने सपने के बारे में जो उसने अभी अभी देखा था। सपने में उसके घर हजार व्यक्तियों का भोजन का समारोह होने वाला था। पाक-कलाकार पकवान तैयार कर रहे थे। घेवर से कमरा भरा था। लड्डुओं से थाल सजे थे। गरम-गरम कचोरियाँ  और पूरियाँ तली जा रही थी। खाना प्रारंभ हो, उससे पहले ही उसकी आँख खुल गई थी। वह परेशान था कि इतनी मिठाईयों का मैं अकेले क्या करूँगा? थोडी देर बाद अचानक उसे एक विचार सूझा। क्यों न सारे गाँव को, पूरी न्यात को भोजन का आमंत्रण दे दूं? अपने निर्णय पर गौरव युक्त आनंद का अनुभव करता हुआ पूरे गाँव को न्योते गली गली घूमने लगा। लोग उसकी स्थिति जानते थे, अत: अचरज करने लगे लेकिन सोचा हो सकता है, कोई लाटरी लगी हो या गढा धन मिला होगा। भोजन के वक्त वहाँ पहुँचे पंचो और लोगों ने तब बहुत ही आश्चर्य का अनुभव किया जब जटाशंकर के घर भोजन निर्माण व्यवस्था की कोई तैयारी नहीं दिखी। आखिर जटाशंकर की तलाश की गई तो प

12 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

1 2 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म सा. दो चींटियाँ आपसे में बाते करती हुई चली जा रही थी। अन्य चींटियों से थोड़ी बडी भी थी और ताक़तवर भी। किसी ने उनका नाम जटाशंकर और घटाशंकर रखा था। अपनी ताकत का अहंकार भी मानस में था। सामने से एक हाथी चला आ रहा था। हाथी के विशाल आकार को देखा तो चीटिंयां अपने मन में अपनी लघुता के कारण हीन भाव का अनुभव करने लगी। उस हीन भाव से प्रेरित अंहकार भाव में डूबकर एक चींटी हाथी से कहने लगी- खा खा कर बड़े मोटे हुए जा रहे हो। कुछ ताकत भी है या नहीं, या यों ही वादी से भरें हो। हमसे लडोगे? हाथी कुछ बोला नहीं। दूसरी चींटी ने उसे मौन देख पहली चींटी से कहने लगी। छोड़ो बेचारे को! देखो कैसा घबरा रहा है। अरे वो बिचारा अकेला है, अपन दो है। छोड़ो। लडाई बराबर वालो में की जाती है। यह अकेला बिचारा अभी भाग जायेगा। यह अपने मुँह मिट्ठू बनने का उदाहरण हैं। बहुत बार हम अपने थोथे अहं का प्रदर्शन उसके लिये करते हैं जो हकीकत में हमारे पास नहीं होता।

11 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

11 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा. जटाशंकर का बेटा बीमार था। बुखार बहुत तेज था। कमजोरी अत्यधिक थी। बोलने में भी पीड़ा का अनुभव था। छोटा सा गांव था। एक वैद्यराजजी वहां रहते थे। उन्हें बुलवाया गया। वैद्यराजजी ने घटाशंकर का हाथ नाड़ी देखने के लक्ष्य से अपने हाथ में लिया। जल्दबाजी कहें या अनुभवहीनता। कलाई में जहाँ नाड़ी थी, वहाँ न देखकर दूसरे हिस्से में नाड़ी टटोलने लगे। काफी प्रयास करने पर भी उन्हें नाड़ी नहीं मिली। वैद्यराजजी के चेहरे के भावों का उतार-चढ़ाव जारी था। उनके उतरे चेहरे को देखकर जटाशंकर की ध्ाड़कन  तेज हो गई। उसे किसी अनिष्ट की आंशका हो रही थी। काँपती जबान और धडकती छाती से उसने पूछा वैद्यराजजी। क्या बात है? आप कुछ बोल नहीं रहे हैं? सब ठीक तो है न? मेरा बेटा ठीक हो जायेगा न? वैद्यराजजी ने उदास स्वरों में कहा भाई। इसकी नाडी नहीं चल रही है। इसका अर्थ है कि अब यह जीवित नहीं है क्योंकि जीवित होता तो नाड़ी चलती। अपने बेटे की मृत्यु का संवाद सुनकर जटाशंकर जोर जोर से रोने लगा। घटाशंकर ने अपनी सारी शक्ति एकत्र की ओर जोर से बोला पिताजी! मैं जिन्दा हूँ। मरा नहीं। सुन
10 जटाशंकर   -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा. परीक्षा देने के बाद जटाशंकर अपने मन में बडा राजी हो रहा था। पिछले दो वर्षो से लगातार अनुत्तीर्ण होकर उसी कक्षा में चल रहा जटाशंकर आश्वस्त था कि इस वर्ष न केवल उत्तीर्ण बनूंगा बल्कि प्रथम श्रेणी में आकर कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करूंगा। असल में इस बार उसने जोरदार नकल की थी। परीक्षा में उसके आगे बैठे घटाशंकर की काँपी ज्यों की त्यों कॉपी  पर उतार दी थी। वह जानता था कि घटाशंकर हमेशा प्रथम आता है, तो जब मैंने उसकी पूरी काँपी उतारी है, तो मुझे कम अंक मिल ही नहीं सकते। नकल करने में शरीर की लम्बाई, आंखों की तेज दृष्टि अध्यापक  निरीक्षक के आलस्य ने उसका पूरा सहयोग किया था। आंखों में मुस्कान, हृदय में आत्मविश्वास भरी अधीरता लिये वह परीक्षा फल की प्रतीक्षा करने लगा। उस दिन उसने नये वस्त्र धारण किये थे। कालेज में पहुँचकर सब सहपाठियों के बीच मुस्करा रहा था। उसकी रहस्य भरी मुस्कुराहट देख सभी छात्र सोच रहे थे कि इसे तो अनुत्तीर्ण ही होना है। लगातार फेल होने पर भी अपनी कार्यप्रणाली में परिवर्तन नहीं किया है। खेलना, कूदना, बातें, गप्पे,
9 जटाशंकर   -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा. सुबह ही सुबह जटाशंकर के मन में इच्छा जगी कि ज़िंदगी मैं तैरना ज़रूर सीखना चाहिये। कभी विपदा में उपयोगी होगा। वह प्रशिक्षक के पास पहुँचा। वार्तालाप कर सौदा तय कर लिया। प्रशिक्षक उसे स्विमिंग पुल पर ले गया। स्वयं पानी में उतरा और जटाशंकर को भी भीतर पानी में आने का आदेश दिया। जटाशंकर पहली पहली बार पानी में उतर रहा था। डरते डरते वह घुटनों तक पानी में उतर गया। प्रशिक्षक ने कहा ओर आगे आओ। छाती तक पानी में जाते जाते तो वह कांप उठा। साँस ऊ पर नीचे होने लगी। दम घुटने लगा। प्रशिक्षक उसे तैरने का पहला गुर सिखाये , उससे पहले ही जटाशंकर ने त्वरित निर्णय लेते हुए पानी से बाहर छलांग लगा दी। किनारे खडे जटाशंकर से प्रशिक्षक ने कहा अरे, अन्दर आओ। मैं तुम्हें तैरना सिखा रहा हूं और तुम बाहर भाग रहे हो। जटाशंकर ने कहा महाशय! मुझे पानी में बहुत डर लग रहा है। डूबने का खतरा दिल दिमाग पर छाया हैं इसलिये मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि जब तक मैं तैरना नहीं सीख लूंगा, तब तक मैं पानी में कदम नहीं रखमंगा। पानी में उतरे बिना तैरना सीखा नहीं जा सकता। साधन
8 जटाशंकर   -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा. जटाशंकर अपने दोस्त के यहाँ मेहमान था। भोजन का समय होने पर थाली परोसी गई। अन्य सामग्री के साथ एक कटोरी में खीर भी रखी गई। परोस कर मित्र वापस रसोई में गया ही था कि जटाशंकर ने खीर की कटोरी को पास की नाली में उडेल दिया। यह देख दोस्त ने सोचा शायद खीर में कुछ कचरा पड़ गया होगा। दुबारा उस कटोरी को भर दिया। मगर जटाशंकर ने दूसरी बार भी खीर को नाली में फेंक दिया। दोस्त बडा हैरान हुआ। उसे गुस्सा भी आया कि इतनी महंगी, बढिया और स्वादिष्ट खीर को यह यों फेंक रहा है। लेकिन मेहमान होने के नाते उसने कुछ नहीं कहा। वह क्रोध को भीतर ही पी गया और तीसरी बार उसने कटोरी को खीर से भर दिया। पर जब तीसरी बार भी जटाशंकर ने खीर को नाली में बहा दिया तो मेजबान ने गुस्से से पूछा-‘भाई, तुम बार बार खीर को नाली में क्यों फेंक रहे हो?’ जटाशंकर ने कहा-फेंकू नहीं तो क्या करूं? खीर में चींटी है। कैसे पीउं? दोस्त ने पल भर उसे देखा और चीख कर कहा अरे मूर्ख! चींटी खीर में नहीं तुम्हारे चश्में पर चल रही है, जो तुम्हें खीर में नजर आती है। जटाशंकर ने चश्मा उतार कर उस पर चल
7 जटाशंकर   -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा. घर में जटाशंकर जोर जोर से रो रहा था। चीखता भी जा रहा था। हाय मेरी नई की नई छतरी कोई ले गया?   लोक इकट्ठे होने लगे। पड़ोसी पहुँच गये। दोस्तों को खबर मिली की जटाशंकर रो रहा है तो वे भी सांत्वना देने आ पहुँचे। उनके पूछने पर जटाशंकर ने कहा-मैं ट्रेन से आ रहा था। मेरे पास नया छाता था। दो-तीन व्यक्ति रेल में मेरे पास बैठे मुझसे बतिया रहे थे। बातों ही बातों में मुझे पता ही नहीं चला और उन्होंने छाता बदल लिया। अपना पुराना फटा पुराना छाता छोड़ दिया और नया छाता ले गये। हाय मेरा नया छाता?   अपनी छतरी की यादें  ताज़ा  हो उठी। क्या मेरा नया  छाता  था?   एक बार भी तो काम में नहीं लिया था। दोस्तों में सांत्वना देते हुए कहा चिंता मत करो। जो चला गया वो वापस तो नहीं आयेगा। वातावरण कुछ हल्का होने पर एक मित्र ने विचार कर पूछा। एक बताओ,   जटाशंकर। क्या? यह तो बता कि तूने वह छाता कब ख़रीदा था,   कहां से,   किस दुकान से  ख़रीदा  था,   कितने रूपये का था? जटाशंकर ने कहा-यह मत पूछ! यह तो पूछना मत। उसके दृढ़ इंकार ने दोस्तों के मन में रहस्य गहरा हो उ
6 जटाशंकर   -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा. जटाशंकर का हाथ मशीन में आ गया था। अस्पताल में भर्ती करने के बाद डाक्टर ने कहा-तुम्हारा यह बायां हाथ काटना पडेगा। सुनकर जटाशंकर रोने लगा। डाक्टर ने उसे सांत्वना देते हुए कहा भाई जटाशंकर! तुम इतने दु:खी मत बनो। अच्छा हुआ जो बायां हाथ मशीन में आया। यदि दाहिना हाथ आ जाता तो तुम बिल्कुल बेकार हो जाते। भगवान का शुक्र है,जो तुम बच गये। जटा शंकर ने रोते रोते कहा डाक्टर साहब! मशीन में तो मेरा दाहिना हाथ ही आया था। लेकिन मैंने दाहिने हाथ की विशिष्ट उपयोगिता का क्षण भर में विचार कर पल भर में निर्णय लेते हुए दाहिना हाथ वापस खींच लिया और बांये हाथ को अन्दर डाल दिया। सुनकर डाक्टर उसकी मूर्खता पर मुस्कुराने लगा। अरे! दायां हाथ निकल ही गया था तो बायां हाथ डालने की क्या जरूरत थी? मूर्खता पर भी शेखी बघारने की आदती बढ़ती जा रही है। चिंतन नहीं कि मैं क्या कर रहा हूं? क्यों कर रहा हूं?   परिणाम क्या होगा? www.jahajmandir.com -------------------------- www.jainEbook.com
5  जटाशंकर  -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा. जटाशंकर   दौड़  दौड़  कर   पूरे   गांव   में   मिठाई   वितरण   कर   रहा   था।   गांव   वालों   ने   उससे   पूछा   भाई   क्या   बात   है ?    पुत्र   हुआ   है। जटाशंकर   ने   कहा   नहीं ! फिर   किस   बात   के   लिये   मिठाई   बांट   रहे   हो ! अरे !  मत   पूछो   यह   बात !  मैं   आज   कितना   अपने   आपको   प्रफुल्लित   महसूस   कर   रहा   हूं। आखिर   गांव   के  25-30  व्यक्ति   एक   साथ   इकट्ठे   होकर   उससे   पूछने   लगे   भैया ,  कारण   तो   तुम्हें   बताना   ही   होगा। जटाशंकर   ने   कहा - अरे ,  और   कुछ   नहीं   मेरा   गधा   खो   गया   हैं ,  इस   उपलक्ष्य   में   मिठाई   वितरण   कर   रहा   हूँ। लोग   हैरान   होकर   कहने   लगे   भैया ,  यह   बात   खुशी   की   है   या   शोक   की !  तुम   परेशान   होने   की   जगह   राजी   हो   रहे   हो। जटाशंकर   ने   कहा   राजी   क्यों   न   होउँ।   रोज   मैं   गधे  पर   सवार   होकर   निकलता   था।   यदि   मैं   उस   पर     सवार   होता   तो   गधे  के   साथ   साथ   मैं   भी   नहीं   खो
4  जटाशंकर   -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा. जटाशंकर   स्कूल   में   पढता   था।   अध्यापक   ने   एक   दिन   सभी   छात्रों   को   अलग   अलग   चित्र   बनाने   का   आदेश   दिया।   सबको   अलग   अलग   विषय   भी   दिये। सभी   अपनी   अपनी  कॉपी  खोलकर   चित्र   बनाने   में   जुट   गये।   जटाशंकर   को   बैठी   गाय   का   चित्र   बनाना   था।   पर   उसे   चित्र   बनाते   समय   ध्यान   न   रहा।   बैठी   गाय   के   स्थान   पर   खडी   गाय   का   चित्र   बना   डाला। जब   अध्यापक   ने   उसकी   काँपी   देखी   तो   वह   चिल्ला   उठा।   यह   क्या   किया   तूने ?  मैंने   क्या   कहा   था ? जटाशंकर   ने   जबाव   दिया   सर !  जैसा   आपने   कहा   था   वैसा   ही   चित्र   बनाया   है।   अध्यापक   ने   डंडा   हाथ   में   लेकर   उसे   दिखाते   हुए   कहा   मूर्ख !  मैंने   बैठी   गाय   का   चित्र   बनाने   को   कहा   था   और   तूने   खड़ी   गाय   का   चित्र   बना   दिया। जटाशंकर   पल   भर   विचार   में   पड   गया।   उसने   सोचा   गलती   तो   हो   गई।   अब   क्या   करूँ   कि   मार   न   पड़े। वह
 3  जटाशंकर   -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा. जटा शंकर   बाजार   में   कागज़   के   पंखे   बेच   रहा   था।   जोर   जोर   से   बोल   रहा   था  ‘ एक   रूपये   का   एक   पंखा !    जिन्दगी   भर   चलेगा !  इस   बात   की   गारन्टी।   नहीं   चले   तो   पैसा   वापस !’ सुनकर   लोग   अचरज   से   भर   उठे।   इतना   सस्ता  झे लने   वाला   पंखा !  और   जिंदगी   भर   चलने   वाला !    यदि   नहीं   चला   तो   नुकसान   भी   नहीं !  पैसे   वापस   मिल   जायेंगे।   देखते   देखते   लोगों   की   भीड़   लग   गई।     लोग  पं खा   खरीदने   के   लिये   उतावले   बावरे   हो   उठे।     कहीं   ऐसा   न   हो   कि   पंखे   खत्म   हो   जाय   और   हमारा   नंबर   ही   नहीं   लगे।   सौ   के   करीब   पंखे   हाथो   हाथ   बिक   गये। महिलाएं   उनका   उपयोग   करने   के   लिये   अधीर   हो   उठी।   कागज़   का   बना   पंखा।   दो   चार   बार   हिला   कि   फट   गया !    उसे ध राशाही होते   देख   लोग   क्रुद्ध   हो   उठे।   दूसरे   दिन   वही   पंखे   बेचने   वाला   जब   पुकार   लगाता   हुआ   गली   से   गुजरा  

1 जटाशंकर

1  जटाशंकर लेखक  -आचार्य जिनमणिप्रभसूरिजी म. सा. जटाशंकर   स्कूल   में   पढता   था।   अध्यापक   के   बताये   काम   करने   में   उसे   कोई   रूचि   नहीं   थी।   बहाने   बनाने   में   होशियार   था।   अपने   तर्कों   के   प्रति   उसे   अहंकार   था।     वह   सोचता   रहता ,  मैं   अपने   तर्क   से   हर   एक   को   निरूत्तर   कर   सकता   हूँ। एक   बार   वह   कक्षा   में   पढ़   रहा   था।     अध्यापक   ने   सभी   बच्चों   को   आदेश   दिया   कि   घास   खाती   हुई   गाय   का   चित्र   बनाओ। कक्षा   के   सभी   छात्र   चित्र   बनाने   लगे।   जटाशंकर   अपनी  कॉपी  इधर  से   उधर   कर   रहा   था।     कभी   अध्यापक   को   देखता ,  तो   कभी   चित्र   बनाने   में   जुटे   अन्य   छात्रों   को ,    पर   स्वयं   उसे   चित्र   बनाने   में   कोई   रूचि   नही   थी। आधे   घंटे   बाद   जब   सभी   छात्रों   ने   अपनी   काँपियाँ   जमा   करा   दी।     अध्यापक   समझ   गया   था   कि   जटाशंकर    ने   चित्र   ही   नहीं   बनाया   होगा     क्योंकि   वह   पूरा   समय  इधर  उधर   देख   रहा   था। अध्या
एक   मिनिट  !  जटाशंकर   -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा. जटाशंकर कोई व्यक्ति नहीं है। यह वह पात्र है जो हर व्यक्ति के भीतर छिपा बैठा है। यह हमारे अपने अन्तर का ही प्रतिबिम्ब है। जीवन में व्यक्ति विविध घटनाओं से गुजरता है ! अच्छी भी , बुरी भी ! उन क्षणों में मानसिकता भी उसी प्रकार की हो जाती है। तब एक सच्चे सलाहकार की आवश्यकता होती है , जिससे जान सकें कि उन क्षणों में उचित उपाय क्या है ? ऐसे समय में जटाशंकर सच्चा मित्र बनता है। वह अपने आपको उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करके समझाने का प्रयास करता है कि उन अवसरों पर क्या और कैसे कार्य करना चाहिये ? यह गहरी से गहरी बात हँसी द्वारा हमें समझा देता है। यही इसकी विशिष्टता है। सीधे सीधे किसी का नाम लेने पर द्वन्द्व खडा हो सकता है। तब जटाशंकर हमारे सामने काल्पनिक पात्र के रूप में प्रकट होता है। उसके नाम से कडवी बात भी आनन्द के साथ कही @ सुनी जा सकती है। हास्य कथाओं के रूप में जीवन के

नवप्रभात

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नवप्रभात 0  मणिप्रभसागर Gurudev Shree Maniprabh मैं खाली बैठा था। देर तक पढते रहने से मस्तिष्क थोडी थकावट का अहसास करने लगा था। मैंने किताब बंद कर दी थी। आँखें मूंद ली थी। विचारों का प्रवाह आ ... जा रहा था। बिना किसी प्रयास के मैं उसे देख रहा था। मेरा मन उन क्षणों में मेरे ही निर्णयों , विचारों और आचारों की समीक्षा करने लगा था। किसी एक निर्णय पर विचार कर रहा था। उस निर्णय की पूर्व भूमिका , निर्णय के क्षणों का प्रवाह और उस निर्णय का परिणाम मेरी आँखों के समक्ष तैर रहा था। मुझे अपने उस निर्णय से संतुष्टि न थी। क्योंकि जैसा परिणाम निर्णय लेने से पहले या निर्णय करते समय सोचा या चाहा था। वैसा हुआ नहीं था। वैसा हो भी नहीं सकता था। क्योंकि चाह तो हमेशा लम्बी और बडी ही होती है। मैं विचार करने लगा - यदि मैंने ऐसा निर्णय न किया होता तो कितना अच्छा होता ! यह सोच कर मैं दुखी हो गया। दु : ख से भरे उसी मन से विचार करने लगा - ज