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Showing posts from August, 2013

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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

PALITANA NEWS

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Welcome- http://jahajmandir.com/ http://jahajmandir.blogspot.in/ पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन ता. 25 अगस्त 2013, पालीताना जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्ाकों की विशाल ध्ार्मसभा को संबोध्ाित करते हुए कहा- जीवन इच्छाओं के आधार पर नहीं अपितु समझौते के आधार पर चलता है। जीवन में यदि शांति और आनंद चाहिये तो दूसरों की इच्छाओं पर अपनी इच्छाओं का बलिदान करना सीखो। जो व्यक्ति दूसरों को सुख देने के लिये अपना सुख त्याग करता है, निश्चित रूप से वही व्यक्ति पूरे परिवार के हृदय में बिराजमान होकर राज करता है। आज पारिवारिक शांति के सूत्र प्रस्तुत करते हुए पूज्यश्री ने कहा- जीवन में यदि आनंद पाना है तो टिट फोर टेट का सिद्धान्त अपने मन से निकालना होगा। जैसे को तैसा नहीं अपितु जैसे को वैसा सिद्धान्त बनाना होगा। जैसे को तैसा का अर्थ हुआ कि जैसा वो कर रहा है, वैसा करना। जबकि जैसे को वैसा का अर्थ होता है, वह जो कर रहा है,

PALITANA CHATURMAS

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पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन

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पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन ता. 22 अगस्त 2013, पालीताना जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत रक्षा बंधन दिवस पर श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्ाकों की विशाल ध्ार्मसभा को संबोिध्ात करते हुए कहा- सुख दु:ख दोनों पराधीन है। सुख प्राप्ति के लिये कोई व्यक्ति या कोई पदार्थ चाहिये, कोई सम्मान अथवा प्राप्ति की घटना चाहिये अथवा पूर्व घटित घटना की कल्पना हो, तभी व्यक्ति को सुख उपलब्ध होता है। और दु:ख प्राप्ति के लिये भी कोई व्यक्ति या घटना या घटना की स्मृति की कारण होती है।  पालीताणा में उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी के सानिध्य में संघपति परिवार उन्होंने कहा- जो पराधीन हो, ऐसा सुख या दु:ख भ्रम है। जो स्वाधीन हो, ऐसा सुख आनन्द है। यह अपने आप में स्वतंत्र अनुभूति है। वे प्रवचन में श्रीमद् देवचन्द्र रचित चौवीशी के तहत परमात्मा के दिव्य स्वरूप की व्याख्या कर रहे थे। उन्होंने कहा- परमात्म पद का आनन्द अखण्ड है। इस जगत में कोई भी द्रव्य, कोई भी कि्

Palitana VARGHODA

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Palitana VARGHODA पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन ता. 20 अगस्त 2013, पालीताना जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत तप अभिनंदन समारोह में श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्ाकों की विशाल ध्ार्मसभा को संबोध्ाित करते हुए कहा- तपस्या करना कोई हंसी खेल नहीं है। अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण करना होता है। एक दिन का उपवास करना भी बहुत मुश्किल हो जाता है, वहाॅं साध्वी श्री विभांजनाश्रीजी म. सा. ने एवं श्रीमती मंजूदेवी किरणराजजी ललवानी ने मासक्षमण की तपस्या करके एक अनूठा आदर्श उपस्थित किया है। उन्होंने कहा- परमात्मा महावीर ने ज्ञान व चारित्र की अपेक्षा तप को ज्यादा महत्व दिया। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा- जब श्रेणिक महाराजा ने परमात्मा महावीर से निवेदन किया कि सोलह हजार साधुओं में सर्वश्रेष्ठ साधु कौन है, जिसे वंदन करने से समस्त को वंदना करने जैसा लाभ प्राप्त हो जाता है। परमात्मा महावीर ने कहा- धन्ना अणगार! जो भले दो ही ज्ञान का स्वामी है, पर

पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन

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पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन ता. 19 अगस्त 2013, पालीताना जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्ाकों की विशाल ध्ार्मसभा को संबोिध्ात करते हुए कहा- जब तक व्यक्ति परमात्म पद को प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक हर व्यक्ति अपूर्ण है। आंतरिक दृष्टि से पूर्ण होेने पर भ्ज्ञी क्रोध, मान आदि पडदे के कारण उसे अपनी पूर्णता का परिचय नहीं है। वह पूर्ण है, पर कर्मों से ढंका है। आसक्ति आदि के कारण वह अपूर्ण है। पर अपनी अपूर्णता को ही पूर्ण मानकर अहंकार करता है। अहंकार ही व्यक्ति को कभी पूर्ण नहीं होने देता। उन्होंने कहा- जो बीमार है, वह यदि चिकित्सक के सामने अपनी स्वस्थता की व्याख्या करेगा तो वह कैसे अपना इलाज करवा पायेगा। वह कभी भी स्वस्थ नहीं हो पायेगा।  उसे यदि स्वस्थ होना है तो अपनी बीमारी का वर्णन करना पडेगा। उन्होंने कहा- मैं अपूर्ण हूँ, ऐसा बोध उसे यथार्थता देता है और ऐसा बोध होते ही पूर्ण होने की प्रकि्रया

पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन

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  पूज्य उपाध्यायश्री     का  प्रवचन ता. 18 अगस्त 2013, पालीताना जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्ाकों की विशाल ध्ार्मसभा को संबोध्ाित करते हुए कहा- जीवन में शान्ति और आनन्द पाने के लिये सहिष्णुता गुण का उपयोग जीवन में अत्यन्त जरूरी है। जिस घर के बडे बुजुर्ग सहनशील होते हैं, निश्चित ही वह घर स्वर्ग जैसा हो जाता है। उन्होंने कहा- जीवन इच्छाओं के आधार पर नहीं जीया जाता। क्योंकि इच्छाओं की कोई सीमा नहीं होती। उसकी कोई एक दिशा भी नहीं होती। घर में जहाॅं 7-8 सदस्य रहते हों, वहाॅं यदि सभी अपनी अपनी इच्छाओं के अनुसार जीवन जीना शुरू कर दे, तो दो मिनट में ही महाभारत शुरू हो जायेगी। क्योंकि हर व्यक्ति की अपनी स्वतंत्र इच्छा व आकांक्षा रहती है। इस कारण इच्छाओं में टकराव होता है। और वही टकराव अशान्ति का कारण हो जाता है। वे परिवार में शान्ति कैसे हो, विषय पर प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने कहा- बुजुर्ग वही है, जो दूसर

Palitana nice Chaturmas

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पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन ता. 17 अगस्त 2013, पालीताना जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत प्रश्नोत्तरी प्रवचन फरमाते हुए श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्ाकों की विशाल ध्ार्मसभा को संबोिध्ात करते हुए कहा- जैन किसी जाति का नाम नहीं है, अपितु जैन एक धर्म है, एक जीवन शैली है। जाति से सभी हिन्दु है। हिन्दु और जैन कोई अलग नहीं। हिन्दु किसी धर्म का नाम नहीं है और जैन किसी जाति का नाम नहीं है। जैन शब्द का अर्थ बताते हुए उन्होंने कहा- जो भी व्यक्ति वीतराग परमात्मा का अनुयायी है, उनके सिद्धान्तों को अपने जीवन में उतारता है, जो भी व्यक्ति अहिंसा आदि व्रतों का स्वीकार करता है, वह जैन है, भले ही वह जाति से क्षत्रिय, हो या ब्राह्मण, वैश्य हो या शूद्र! परमात्मा महावीर स्वयं क्षत्रिय थे। जबकि उनके ग्यारह गणधर ब्राह्मण थे। धन्ना और शालिभद्र जैसे मुनि वैश्य जाति से आये थे तो हरिकेशी, चित्तसंभूत मुनि शूद्र जाति से आये थे। परमात्मा महावीर ज

पालीताणा

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पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. आदि ठाणा 8 आदि विशाल साधु साध्वी मंडल के परम सानिध्य में पूजनीया बहिन म. डा. श्री विद्युत्प्रभाश्रीजी म.सा. की पावन प्रेरणा से पालीताणा में 1200 आराधकों का विशाल चातुर्मास आयोजित हो रहा है। इसका लाभ अहमदाबाद धोरीमन्ना निवासी श्री भूरचंदजी लक्ष्मणदासजी लूणिया परिवार एवं अहमदाबाद कोठाला निवासी श्री जसराजजी प्रेमराजजी दायमा परिवार ने लिया है। चातुर्मास में तपस्या का अनूठा ठाट लगा है। पूजनीया बहिन म. डा. विद्युत्प्रभाश्रीजी म.सा. की शिष्या पूजनीया साध्वी श्री विभांजनाश्रीजी म.सा. के मासक्षमण की महान् तपस्या चल रही है। उनके मासक्षमण की तपस्या का पारणा 21 अगस्त 2013 को संपन्न होगा। इस तपस्या के निमित्त ता. 16 से 20 अगस्त तक पंचाह्निका महोत्सव का आयोजन किया गया है। ता. 16 से 18 तक तीन दिवसीय श्री अर्हद् महापूजन का भव्यातिभव्य आयोजन किया जायेगा। ता. 19 को सिद्धचक्र महापूजन एवं ता. 20 को दादा गुरुदेव की पूजा पढाई जायेगी। ता. 20 अगस्त को वरघोडे के भव्य आयोजन के साथ तपस्वी साध्वीजी महाराज का अभिनंदन किया जायेगा। इसके साथ ही कई मासक्षमण, स

-पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन

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-पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन पालीताना जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने परमात्मा नेमिनाथ प्रभु के जन्म कल्याणक के पावन अवसर पर आज श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला के अन्तर्गत चल रहे चातुर्मास के विशाल आराध्ाकों की ध्ार्मसभा को संबोध्ाित करते हुए कहा- चैबीस तीर्थंकरों का आन्तरिक जीवन एक जैसा है। बाह्य जीवन भले अलग अलग हों। उनके माता पिता के नाम, जन्मभूमि, जन्म तिथि यह सब अलग होंगे। परन्तु उनके अन्तर में बहता हुआ ज्ञान का झरणा एक है। उसमें कोई भेद नहीं है। सभी तीर्थंकर तीन ज्ञान के साथ ही जन्म लेते हैं। सभी तीर्थंकर दीक्षा लेते ही है। सभी तीर्थंकरों को दीक्षा लेते ही चैथा ज्ञान हो जाता है। सभी तीर्थंकरों को घाती कर्म के बाद केवल ज्ञान प्राप्त होता है। सभी तीर्थंकर मोक्ष पधारते हैं। उन्होंने कहा- चैबीस तीर्थंकरों का जीवन अपने आप में आदरणीय और अनुकरणीय है। पुरूषार्थ का परिणाम देखना हो तो हमें परमात्मा महावीर स्वामी का जीवन पढना चाहिये। कितने कर्मों का बंधन किया किन्तु उन्हें तोडने के लिये कितनी अनूठी साधना की। द्वेष की परम्परा

पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन

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पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन ता. 10 जुलाई 2013, पालीताना जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने आज श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला के अन्तर्गत चल रहे चातुर्मास के विशाल आराध्ाकों की ध्ार्मसभा को संबोध्ाित करते हुए कहा- मैं कौन हूॅं, इस प्रश्न से ही धर्म का प्रारंभ होता है। जब तक व्यक्ति अपने आपको नहीं जानता, उसका शेष जानना व्यर्थ है। उन्होंने कहा- आचारांग सूत्र का प्रारंभ इसी प्रश्न से होता है। परमात्मा महावीर ने जो देशना दी थी, उसे सुधर्मा स्वामी ने आगमों के माध्यम से जंबू स्वामी से कहा। परमात्मा फरमाते हैं कि इस दुनिया में अनंत जीव ऐसे हैं जो यह नहीं जानते कि मैं कौन हूॅं? कहाॅं से आया हूॅ? किस दिशा से आया हूॅ? और कहाॅं जाना है? उन्होंने कहा- आज आदमी सारी दुनिया को जानता है, अपने पराये को जानता है, रिश्तेदारों और मित्रों को पहचानता है परन्तु यह उसकी सबसे बडी गरीबी है कि वह जानने वाले को नहीं जानता। यह शरीर मेरा स्वरूप नहीं है, क्योंकि शरीर आज है, कल नहीं था, कल नहीं रहेगा! जबकि मैं कल भी था, आज भी हूॅं और कल भी रहूॅंगा! तो वह कौ

पूज्य उपाध्याय गुरुदेवजी श्री का प्रवचन

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  पूज्य उ   पाध्याय श्री का प्रवचन     जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय   प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने आज श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला के अन्तर्गत चल रहे चातुर्मास के विशाल आराध्ाकों की ध्र्मसभा को संबोधित करते हुए कहा- परमात्मा के पास हमें याचक बन कर नहीं, अपितु प्रेमी बन कर जाना होता है। जो याचक बन कर जाता है, वह कुछ प्राप्त करता है और जो प्रेमी बन कर जाता है, वह सब कुछ प्राप्त कर लेता है। बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास आयोजन के अन्तर्गत उन्होंने कहा- हम सभी बीमार है। हमारी बीमारी कोई एक दिन की नहीं है, अपितु जन्मों जन्मों की है। जन्मों जन्मों से हमारी यात्रा का प्रवाह जारी है। यही सबसे बडी बीमारी है। इस जगत में चार प्रकार के व्यक्ति है। एक वे जो बीमार तो हैं, पर अपनी बीमारी का बोध्ा नहीं है। दूसरे वे जिन्हें अपनी बीमारी के बारे सिर्फ पता है। उसके आगे कुछ नहीं। तीसरे वे जिनके मन में अपनी बीमारी को दूर करने का भाव है। चैथे वे जो अपनी बीमारी को दूर करने के लिये पुरूषार्थ कर रहे हैं। हमें अपने बारे म

Palitana Tirth Darshan

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http://jahajmandir.blogspot.in/ Palitana  is the greatest and biggest  pilgrimage center  and sacred place of Jains. The  Shwetambar Jain  community believes that the hill of Palitana  (Siddhachal)  is eternal.  Rshabhadev (Adinath) , the first  Jain Tirthankara , came here several times and preached. Billions of monks and nuns have attained Nirvana (Salvation) from this hill from times immemorial. It is also believed that hundred millions monks leaded by  Dravida  and Varikhilla  attained here  Nirvana  on the auspicious day of  Kartika Purnima (Full moon day in the month of Kartika according to Indian lunar calendar) and fifty millions leaded by  Nami  and  Vinami  on  Chaitri Purnima  (Full moon day in the month of Chaitra according to Indian lunar calendar). Palitana  is a city in Bhavnagar district, Gujarat, India. It is located 50 km southwest of Bhavnagar city . The Palitana temples are considered the most sacred pilgrimage place ( tirtha ) by