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Showing posts from October, 2012

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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

दुर्ग में तपस्या का ठाट

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पूज्य गुरुदेव प्रज्ञापुरूष आचार्य भगवन्त श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के शिष्य पूज्य ब्रह्मसर तीर्थोद्धारक मुनि श्री मनोज्ञसागरजी म.सा. पूज्य स्वाध्यायी मुनि श्री कल्पज्ञसागरजी म. पू. बाल मुनि श्री नयज्ञसागरजी म. ठाणा 3 का  दुर्ग नगर में ऐतिहासिक चातुर्मास चल रहा है। पूज्यश्री के प्रवचन श्रवण करने के लिये बडी संख्या में श्रद्धालु उमडते हैं। विविध प्रकार की तपश्चर्याऐं हो रही है। तपस्या का तो कीर्तिमान स्थापित हुआ है। पहले चरण में 19 आराध्कों ने सिद्धि तप की महान् तपस्या की। दूसरे चरण में 20 आराध्कों ने सिद्धि तप की आराध्ना की। साथ ही मासक्षमण, अट्ठाई, तेले, अक्षय  तप, समवशरण तप, कषाय विजय तप, मोक्ष दण्ड तप, स्वस्तिक तप, पंच परमेष्ठी नवकार तप, चौदह पूर्व तप आदि विविध तपस्या हुई है। साथ ही नेमिनाथ परमात्मा का जन्म कल्याणक अत्यन्त उल्लास के साथ मनाया गया। उपवास, आयंबिल एवं एकासणा की आराध्ना सामूहिक रूप से हुई। नौ दिवसीय नवग्रह पूजन विधान संपन्न हुआ। यह विधान इस क्षेत्र में पहली बार आयोजित किया गया। साथ ही पद्मावती पूजा महाविधन आदि का भी आयोजन किया गया। प्रत्य

माध्वबाग में श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ परमात्मा के मंदिर में बिराजमान दादा गुरूदेव की चरणपादुकाओं के समक्ष ता. 15 सितम्बर को मणिधारी जिनचन्द्रसूरि की पुण्यतिथि के अवसर पर आरती का विधान किया गया। चतुर्विध संघ के साथ इकतीसे के पाठ के साथ साथ गुरूदेव की भक्ति की गई।

माध्वबाग में श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ परमात्मा के मंदिर में बिराजमान दादा गुरूदेव की चरणपादुकाओं के समक्ष ता. 15 सितम्बर को मणिधारी जिनचन्द्रसूरि की पुण्यतिथि के अवसर पर आरती का विधान किया गया। चतुर्विध संघ के साथ इकतीसे के पाठ के साथ साथ गुरूदेव की भक्ति की गई।jahaj mandir, maniprabh, mehulprabh

KUMARPAL BHAI V. SHAH

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KUMARPAL BHAI V. SHAH

भगवती सूत्र का वरघोडा

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पर्व पर्युषण महापर्व की आराधना के पश्चात् पूज्य गुरूदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. द्वारा 45 आगमों की वांचना फरमाई जा रही है। इस आगम वांचना के अन्तर्गत भगवती सूत्र का वरघोडा निकाला गया। इसका लाभ सांचोर निवासी श्री जीवराजजी उकचंदजी श्रीश्रीश्रीमाल परिवार ने लिया। सकल संघ के साथ आगम की पधरामणी उनके निवास स्थान पर हुई। वहाँ आगम की स्तुति करने के उपरान्त आगम पूजा की गई। दूसरे दिन पूज्यश्री द्वारा भगवती सूत्र की वांचना व्याख्या के साथ की गई। jahaj mandir, maniprabh, mehulprabh

KUMARPAL BHAI V. SHAH

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KUMARPAL BHAI V. SHAH kumarpal bhai kumarpal bhai

आसोज वदि 13 गर्भापहार कल्याणक

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   ता. 13 अक्टूबर 2012 को परमात्मा महावीर का गर्भापहार कल्याणक है। परमात्मा महावीर का च्यवन कल्याणक देवानंदा की कुक्षि में हुआ था। 83 दिनों के बाद हरिणैगमेषी देव द्वारा परमात्मा महावीर के गर्भ को त्रिशला महारानी की कुक्षि में संस्थापित किया गया। वह दिन गर्भापहार कल्याणक दिन कहलाता है। कई लोग इस घटना को कल्याणक नहीं मानकर निंद्य अच्छेरा कहते हैं। अच्छेरा तो है पर वह निंद्य कैसे हो सकता है। क्योंकि उस रात्रि में त्रिशला महारानी ने चौदह महास्वप्न देखे थे। फिर कल्पसूत्र आदि आगमों में इस गर्भापहार कल्याणक का स्पष्ट उल्लेख है।     इस दिन परमात्मा महावीर की विशेष रूप से पूजा, आराधना आदि करें। jahaj mandir, maniprabh, mehulprabh

मणिधारी गुरूदेव की पुण्यतिथि मनाई गई

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द्वितीय दादा गुरूदेव मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की पुण्यतिथि पूज्य गुरूदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. आदि साधु साध्वी मंडल की पावन निश्रा में अत्यन्त हर्षोल्लास के साथ मनाई गई। गुणानुवाद सभा, पूजा व महाआरती का आयोजन किया गया। पूज्य गुरूदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने फरमाया- आज द्वितीय भाद्रपद वदि 14 का महान् पर्व है। इसी दिन दादा गुरूदेव का मात्र 26 वर्ष की उम्र में स्वर्गवास हुआ था। जिस वर्ष स्वर्गवास हुआ था, उस वर्ष दो भाद्रपद थे व उनका स्वर्गवास दूसरे भाद्रपद वदि 14 को हुआ था। वर्षों बाद यह अनूठा संयोग उपस्थित हुआ है। पूज्यश्री ने फरमाया- जैन शासन के इतिहास-फलक पर मणिधारी दादा का नाम स्वर्णाक्षरों द्वारा अंकित है। मात्र 6 वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण कर 8 वर्ष की उम्र में आचार्य पद को प्राप्त करना, इतिहास की एक दुर्लभ घटना है। उस समय दादा गुरूदेव जिनदत्तसूरि के सैंकडों शिष्य थे। वे सभी चारित्रवान् व ज्ञानवान् थे। दीक्षा पर्याय में कई ज्येष्ठ मुनियों के होते हुए भी मात्र दो वर्ष के संयम-पर्याय वाले लघुवयी मुनि को आचार्य पद प्रदान कर अप