Posts

Showing posts from 2012

Featured Post

Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

Image
पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

KUMARPAL BHAI V. SHAH

Image
KUMARPAL BHAI V. SHAH

JAHAJ MANDIR NEWS

पूज्य गुरुदेव आचार्यश्री की पुण्यतिथि मनाई गई पूज्य गुरुदेव प्रज्ञापुरूष आचार्य श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म.सा. की 27वीं पुण्यतिथि अत्यन्त आनंद व उल्लास के साथ जहाज मंदिर मांडवला में मिगसर वदि 7 ता. 6 दिसम्बर 2012 को मनाई गई। समारोह को निश्रा प्रदान की पूजनीया ध्वल यशस्वी श्री विमलप्रभाश्रीजी म.सा. की शिष्या पूजनीया साध्वी श्री हेमरत्नाश्रीजी म. आदि ठाणा एवं पूजनीया तपागच्छीय साध्वी श्री विनयरत्नाश्रीजी म.सा. आदि ठाणा ने! पूजनीया साध्वी श्री हेमरत्नाश्रीजी म., जयरत्नाश्रीजी म. नूतनप्रिया श्रीजी म. ने पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवन्त के जीवन की उज्ज्वल गाथाओं का वर्णन करते हुए उनके असीम उपकारों का स्मरण किया... श्रद्धांजली अर्पण की। पूजनीया साध्वी श्री विनयरत्नाश्रीजी म. ने जहाज मंदिर तीर्थ की विशिष्टताओं का वर्णन करते हुए पूज्य आचार्य भगवन्त के प्रति अपनी  श्रद्धांजली  अर्पण की। पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री की प्रतिकृति के आगे दीप प्रज्ज्वलन का लाभ बालोतरा दिल्ली निवासी श्री देवराजजी स्वरूपकुमारजी खिंवसरा ने लिया। धुप पूजा का लाभ श्री प्रकाशजी छाजेड जालोर ने लिया। वासक्षेप पूजा का लाभ श

जहाज मंदिर समाचार

पूज्य गुरुदेव आचार्यश्री की पुण्यतिथि मनाई गई पूज्य गुरुदेव प्रज्ञापुरूष आचार्य श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म.सा. की 27वीं पुण्यतिथि अत्यन्त आनंद व उल्लास के साथ जहाज मंदिर मांडवला में मिगसर वदि 7 ता. 6 दिसम्बर 2012 को मनाई गई। समारोह को निश्रा प्रदान की पूजनीया ध्वल यशस्वी श्री विमलप्रभाश्रीजी म.सा. की शिष्या पूजनीया साध्वी श्री हेमरत्नाश्रीजी म. आदि ठाणा एवं पूजनीया तपागच्छीय साध्वी श्री विनयरत्नाश्रीजी म.सा. आदि ठाणा ने! पूजनीया साध्वी श्री हेमरत्नाश्रीजी म., जयरत्नाश्रीजी म. नूतनप्रिया श्रीजी म. ने पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवन्त के जीवन की उज्ज्वल गाथाओं का वर्णन करते हुए उनके असीम उपकारों का स्मरण किया... श्रद्धांजली अर्पण की। पूजनीया साध्वी श्री विनयरत्नाश्रीजी म. ने जहाज मंदिर तीर्थ की विशिष्टताओं का वर्णन करते हुए पूज्य आचार्य भगवन्त के प्रति अपनी  श्रद्धांजली  अर्पण की। पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री की प्रतिकृति के आगे दीप प्रज्ज्वलन का लाभ बालोतरा दिल्ली निवासी श्री देवराजजी स्वरूपकुमारजी खिंवसरा ने लिया। धुप पूजा का लाभ श्री प्रकाशजी छाजेड जालोर ने लिया। वासक्षेप पूजा का लाभ श

Jahaj Mandir

Jahaj Mandir jahaj mandir, maniprabh, mehulprabh

पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. की पावन निश्रा में श्री जिनकान्तिसागरसूरि स्मारक ट्रस्ट, जहाज मंदिर, मांडवला की ओर से जैन समाज की विशिष्ट विभूतियों का ‘जैन पद्मश्री’ अलंकरण से अभिनंदन किया जायेगा। यह अभिनंदन समारोह ता. 25 नवम्बर 2012 को प्रात: 10 बजे मुंबई के चर्चगेट स्थित के.सी. काँलेज के आँडिटोरियम में आयोजित किया जायेगा। उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश श्री राजन कोचर को इस समारोह का संयोजक बनाया गया है। समाज के श्री प्रशान्त झवेरी ने बताया कि इस समारोह में श्री दीपचंदजी गार्डी, दानवीर सेठ श्री कनकराजजी लोढा, बहुश्रुत विद्वान् डाँ0 जितेन्द्रभाई बी. शाह एवं विधायक श्री मंगलप्रभातजी लोढा का अभिनंदन किया जायेगा। इस अवसर पर केन्द्रीय मंत्री श्री मिलिन्द देवरा, सांसद श्री देवजी भाई पटेल, विधायक श्री भाई जगताप, श्री अमीनभाई पटेल, श्री अरूणभाई गुजराथी आदि विशिष्ट महानुभाव मुख्य अतिथि के रूप में पधारेंगे। समारोह की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध सूफी संत श्री अरविन्द गुरूजी करेंगे। इस समारोह के प्रायोजक के रूप में मै. नियो बिल्डर्स के श्री केसरीचंदजी प्रेमचंदजी मेहता परिवार सांचोर वालों ने लाभ लिया है। श्री नरेश मेहता, श्री पुखराज छाजेड, श्री चंपालाल वाघेला, श्री प्रदीप श्रीश्रीश्रीमाल आदि ने इस अवसर पर अधिक से अधिक लोगों से पधारने की अपील की है।

Image
पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. की पावन निश्रा में श्री जिनकान्तिसागरसूरि स्मारक ट्रस्ट, जहाज मंदिर, मांडवला की ओर से जैन समाज की विशिष्ट विभूतियों का ‘जैन पद्मश्री’ अलंकरण से अभिनंदन किया जायेगा। यह अभिनंदन समारोह ता. 25 नवम्बर 2012 को प्रात: 10 बजे मुंबई के चर्चगेट स्थित के.सी. काँलेज के आँडिटोरियम में आयोजित किया जायेगा। उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश श्री राजन कोचर को इस समारोह का संयोजक बनाया गया है। समाज के श्री प्रशान्त झवेरी ने बताया कि इस समारोह में  श्री दीपचंदजी गार्डी, दानवीर सेठ श्री कनकराजजी लोढा, बहुश्रुत विद्वान् डाँ0 जितेन्द्रभाई बी. शाह एवं विधायक श्री मंगलप्रभातजी लोढा का अभिनंदन किया जायेगा। इस अवसर पर केन्द्रीय मंत्री श्री मिलिन्द देवरा, सांसद श्री देवजी भाई पटेल, विधायक श्री भाई जगताप, श्री अमीनभाई पटेल, श्री अरूणभाई गुजराथी आदि विशिष्ट महानुभाव मुख्य अतिथि के रूप में पधारेंगे। समारोह की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध सूफी संत श्री अरविन्द गुरूजी करेंगे। इस समारोह के प्रायोजक के रूप में मै. नियो बिल्डर्स के श्री केसरीचंदजी प्रेमचंदजी मेहता परिवार

जैन पद्मश्री अलंकरण

Image
jahajmandir पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. की पावन निश्रा में श्री जिनकान्तिसागरसूरि स्मारक ट्रस्ट, जहाज मंदिर, मांडवला की ओर से जैन समाज की विशिष्ट विभूतियों का ‘जैन पद्मश्री’ अलंकरण से अभिनंदन किया जायेगा। यह अभिनंदन समारोह ता. 25 नवम्बर 2012 को प्रात: 10 बजे मुंबई के चर्चगेट स्थित के.सी. कोलेज के ओडिटोरियम में आयोजित किया जायेगा। इस समारोह में स्वनाम धन्य श्री दीपचंदजी गार्डी, दानवीर सेठ श्री कनकराजजी लोढा, बहुश्रुत विद्वान् डॉ. जितेन्द्रभाई बी. शाह एवं विधायक श्री मंगलप्रभातजी लोढा का अभिनंदन किया जायेगा। इस अवसर पर कई केन्द्रीय मंत्री व विधायक आदि महानुभावों की उपस्थिति रहेगी। इस समारोह का संपूर्ण लाभ नियो बिल्डर के श्री केसरीचंदजी प्रेमचंदजी मेहता परिवार सांचोर वालों ने लिया है .   jahaj mandir, maniprabh, mehulprabh

नंदुरबार से बलसाणा पैदल संघ

Image
पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. की निश्रा में नंदुरबार से बलसाणा तीर्थ का चार दिवसीय छहरी पालित पैदल संघ ता. 12.12.12 को प्रस्थान करेगा, जो 15 दिसम्बर को बलसाणा तीर्थ पर पहुँचेगा। नंदुरबार निवासी श्री हरकचंदजी चंदनमलजी तातेड परिवार संघ का शुभ मुहूर्त प्राप्त करने के लिये 28 अक्टूबर को मुंबई में पूज्य गुरुदेवश्री की निश्रा में उपस्थित हुआ और निश्रा प्रदान करने व मुहूर्त प्रदान करने हेतु विनंती की। पूज्यश्री ने स्वीकृति प्रदान करते हुए मिगसर वदि 14 ता. 12 दिसम्बर का शुभ मुहूर्त प्रदान किया। jahaj mandir, maniprabh, mehulprabh

श्री जिनहरि विहार समिति के चुनाव संपन्न

पूज्य गुरूदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. की निश्रा में एवं समिति अध्यक्ष संघवी श्री विजयराजजी डोशी की अध्यक्षता में श्री जिनहरिविहार समिति, पालीताणा की बैठक हुई जिसमें लगभग 15 से अधिक ट्रस्टियों की उपस्थिति रही। श्री जिनहरि विहार धर्मशाला के कार्य पर परम संतोष व्यक्त किया गया। दिनों दिन हरि विहार की जाहोजलाली बढ रही है। यात्रिायों का आवागमन, उन्हें मिल रहा पूरा संतोष... यह समिति की पूंजी है। साथ ही यहाँ बिराज रहे खरतरगच्छ संघ के समस्त साधु साध्वियों की वैयावच्च अत्यन्त मनोयोग से हो रही है, यह प्रसन्नता का विषय है। निर्णय किया गया कि पीछे जो ज्ञान मंदिर बना है, उसका पूरा जीर्णोद्धार करवाया जाये। जिसमें विशाल भोजनशाला व कमरों का निर्माण करवाया जावें। ट्रस्ट मंडल का कार्यकाल पूर्ण होने के कारण निवेदन किया गया कि आगामी तीन वर्षों के लिये नये ट्रस्ट मंडल का गठन किया जावे। पूज्यश्री ने ट्रस्टियों से विचार विमर्श कर इस प्रकार ट्रस्ट मंडल की घोषणा की- संघवी श्री विजयराजजी डोसी बैंगलोर- अध्यक्ष श्री वीरेन्द्रकुमारजी मेहता चेन्नई- उपाध्यक्ष संघवी श्री अशोककुमारजी भंसाली अहमदाबाद- उपाध्यक

KUMARPAL BHAI V. SHAHKUMARPAL BHAI V. SHAHKUMARPAL BHAI V. SHAHKUMARPAL BHAI V. SHAH

Image
KUMARPAL BHAI V. SHAH

चौथे दादा गुरूदेव की 399वीं पुण्यतिथि मनाई गई

Image
चतुर्थ दादा गुरूदेव अकबर प्रतिबोधक श्री जिनचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की 399वीं पुण्यतिथि मुंबई महानगर में आसोज वदि 2 ता. 2 अक्टूबर 2012 को हर्षोल्लास के साथ मनाई गई। इस उपलक्ष्य में प्रात: 9 बजे कान्ति मणि नगर कपोलवाडी में गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया। पूज्य गुरूदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म. भारत जैन महामंडल के विश्व मैत्री दिवस के सामूहिक कार्यक्रम में पधरना हुआ था। पूज्य मुनिराज श्री मनितप्रभसागरजी म.सा. ने दादा गुरूदेव के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा- दादा गुरूदेव ने शिथिलाचार का विरोध करते हुए श्रमण संघ के आचार को सुविशुद्ध किया था। पू. साध्वी श्री श्रद्धान्जनाश्रीजी म.सा. ने गुरूदेव के विशिष्ट व्यक्तित्व का वर्णन करते हुए श्रद्धा पुष्प समर्पित किये। मुमुक्षु कुमारी नीलिमा भंसाली ने गीतिका प्रस्तुत की। प्रात: 10 बजे पूज्य मुनिराज श्री कुशलमुनिजी म.सा. की निश्रा में भायखला दादावाडी में दादा गुरूदेव की पूजा का भव्य आयोजन किया गया। पूजा के बाद स्वामिवात्सल्य का आयोजन किया गया। jahaj mandir, maniprabh, mehulprabh

दुर्ग में तपस्या का ठाट

Image
पूज्य गुरुदेव प्रज्ञापुरूष आचार्य भगवन्त श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के शिष्य पूज्य ब्रह्मसर तीर्थोद्धारक मुनि श्री मनोज्ञसागरजी म.सा. पूज्य स्वाध्यायी मुनि श्री कल्पज्ञसागरजी म. पू. बाल मुनि श्री नयज्ञसागरजी म. ठाणा 3 का  दुर्ग नगर में ऐतिहासिक चातुर्मास चल रहा है। पूज्यश्री के प्रवचन श्रवण करने के लिये बडी संख्या में श्रद्धालु उमडते हैं। विविध प्रकार की तपश्चर्याऐं हो रही है। तपस्या का तो कीर्तिमान स्थापित हुआ है। पहले चरण में 19 आराध्कों ने सिद्धि तप की महान् तपस्या की। दूसरे चरण में 20 आराध्कों ने सिद्धि तप की आराध्ना की। साथ ही मासक्षमण, अट्ठाई, तेले, अक्षय  तप, समवशरण तप, कषाय विजय तप, मोक्ष दण्ड तप, स्वस्तिक तप, पंच परमेष्ठी नवकार तप, चौदह पूर्व तप आदि विविध तपस्या हुई है। साथ ही नेमिनाथ परमात्मा का जन्म कल्याणक अत्यन्त उल्लास के साथ मनाया गया। उपवास, आयंबिल एवं एकासणा की आराध्ना सामूहिक रूप से हुई। नौ दिवसीय नवग्रह पूजन विधान संपन्न हुआ। यह विधान इस क्षेत्र में पहली बार आयोजित किया गया। साथ ही पद्मावती पूजा महाविधन आदि का भी आयोजन किया गया। प्रत्य

माध्वबाग में श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ परमात्मा के मंदिर में बिराजमान दादा गुरूदेव की चरणपादुकाओं के समक्ष ता. 15 सितम्बर को मणिधारी जिनचन्द्रसूरि की पुण्यतिथि के अवसर पर आरती का विधान किया गया। चतुर्विध संघ के साथ इकतीसे के पाठ के साथ साथ गुरूदेव की भक्ति की गई।

माध्वबाग में श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ परमात्मा के मंदिर में बिराजमान दादा गुरूदेव की चरणपादुकाओं के समक्ष ता. 15 सितम्बर को मणिधारी जिनचन्द्रसूरि की पुण्यतिथि के अवसर पर आरती का विधान किया गया। चतुर्विध संघ के साथ इकतीसे के पाठ के साथ साथ गुरूदेव की भक्ति की गई।jahaj mandir, maniprabh, mehulprabh

KUMARPAL BHAI V. SHAH

Image
KUMARPAL BHAI V. SHAH

भगवती सूत्र का वरघोडा

Image
पर्व पर्युषण महापर्व की आराधना के पश्चात् पूज्य गुरूदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. द्वारा 45 आगमों की वांचना फरमाई जा रही है। इस आगम वांचना के अन्तर्गत भगवती सूत्र का वरघोडा निकाला गया। इसका लाभ सांचोर निवासी श्री जीवराजजी उकचंदजी श्रीश्रीश्रीमाल परिवार ने लिया। सकल संघ के साथ आगम की पधरामणी उनके निवास स्थान पर हुई। वहाँ आगम की स्तुति करने के उपरान्त आगम पूजा की गई। दूसरे दिन पूज्यश्री द्वारा भगवती सूत्र की वांचना व्याख्या के साथ की गई। jahaj mandir, maniprabh, mehulprabh

KUMARPAL BHAI V. SHAH

Image
KUMARPAL BHAI V. SHAH kumarpal bhai kumarpal bhai

आसोज वदि 13 गर्भापहार कल्याणक

Image
   ता. 13 अक्टूबर 2012 को परमात्मा महावीर का गर्भापहार कल्याणक है। परमात्मा महावीर का च्यवन कल्याणक देवानंदा की कुक्षि में हुआ था। 83 दिनों के बाद हरिणैगमेषी देव द्वारा परमात्मा महावीर के गर्भ को त्रिशला महारानी की कुक्षि में संस्थापित किया गया। वह दिन गर्भापहार कल्याणक दिन कहलाता है। कई लोग इस घटना को कल्याणक नहीं मानकर निंद्य अच्छेरा कहते हैं। अच्छेरा तो है पर वह निंद्य कैसे हो सकता है। क्योंकि उस रात्रि में त्रिशला महारानी ने चौदह महास्वप्न देखे थे। फिर कल्पसूत्र आदि आगमों में इस गर्भापहार कल्याणक का स्पष्ट उल्लेख है।     इस दिन परमात्मा महावीर की विशेष रूप से पूजा, आराधना आदि करें। jahaj mandir, maniprabh, mehulprabh

मणिधारी गुरूदेव की पुण्यतिथि मनाई गई

Image
द्वितीय दादा गुरूदेव मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की पुण्यतिथि पूज्य गुरूदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. आदि साधु साध्वी मंडल की पावन निश्रा में अत्यन्त हर्षोल्लास के साथ मनाई गई। गुणानुवाद सभा, पूजा व महाआरती का आयोजन किया गया। पूज्य गुरूदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने फरमाया- आज द्वितीय भाद्रपद वदि 14 का महान् पर्व है। इसी दिन दादा गुरूदेव का मात्र 26 वर्ष की उम्र में स्वर्गवास हुआ था। जिस वर्ष स्वर्गवास हुआ था, उस वर्ष दो भाद्रपद थे व उनका स्वर्गवास दूसरे भाद्रपद वदि 14 को हुआ था। वर्षों बाद यह अनूठा संयोग उपस्थित हुआ है। पूज्यश्री ने फरमाया- जैन शासन के इतिहास-फलक पर मणिधारी दादा का नाम स्वर्णाक्षरों द्वारा अंकित है। मात्र 6 वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण कर 8 वर्ष की उम्र में आचार्य पद को प्राप्त करना, इतिहास की एक दुर्लभ घटना है। उस समय दादा गुरूदेव जिनदत्तसूरि के सैंकडों शिष्य थे। वे सभी चारित्रवान् व ज्ञानवान् थे। दीक्षा पर्याय में कई ज्येष्ठ मुनियों के होते हुए भी मात्र दो वर्ष के संयम-पर्याय वाले लघुवयी मुनि को आचार्य पद प्रदान कर अप

MAYANKPRABH, MEHULPRABH, JAHAJMANDIR,

Image
MAYANKPRABH MAYANKPRABH MAYANKPRABH MAYANKPRABH MAYANKPRABH MAYANKPRABH MAYANKPRABH MAYANKPRABH MAYANKPRABH MAYANKPRABH MAYANKPRABH MAYANKPRABH MAYANKPRABH MAYANKPRABH MAYANKPRABH MAYANKPRABH MAYANKPRABH MAYANKPRABH MAYANKPRABH MAYANKPRABH MAYANKPRABH, MEHULPRABH, JAHAJMANDIR MAYANKPRABH MEHULPRABH MAYANKPRABH

www.JainEbook.com

Image
Get free books online...    get free books online...                   www.JainEbook.com

48. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा

जटाशंकर स्कूल में पढता था। जाति का वह रबारी था। भेड बकरियों को चराता था। छोटे-से गाँव में वह रहता था। अध्यापक ने गणित समझाते हुए क्लाँस में बच्चों से प्रश्न किया- बच्चों! मैं तुम्हें गणित का एक सवाल करता हूँ। एक बाडा है। बाडे में पचास भेडें हैं। उनमें से एक भेड ने बाड कूदकर छलांग लगाली, तो बताओ बच्चों! उस बाडे में पीछे कितनी भेडें बची। जटाशंकर ने हाथ उँचा किया। अध्यापक ने प्रेम से कहा- बताओ! कितनी भेडें बची। जटाशंकर ने कहा- सर! एक भी नहीं! अध्यापक ने लाल पीले होते हुए कहा- इतनी सी भी गणित नहीं आती। पचास में से एक भेड कम हुई तो पीछे उनपचास बचेगी न! जटाशंकर ने कहा- यह आपकी गणित है। पर मैं गडरिया हूँ! भेडों को चराता हूँ! और भेडों की गणित मैं जानता हूँ! एक भेड ने छलांग लगायेगी और सारी भेडें उसके पीछे कूद पडेगी। वह न आगे देखेगी न पीछे! सर! उन्हें आपकी गणित से कोई लेना देना नहीं। भेडों की अपनी गणित होती है। इसी कारण बिना सोचे अनुकरण की प्रवृत्ति को भेड चाल कहा जाता है। वहाँ अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं होता। अपनी सोच के आधार पर गुण दोष विचार कर जो निर्णय करता है, वही व्यक्ति अप

47. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा

जटाशंकर दौडता दौडता अपने घर पहुँचा। घर वाले बडी देर से चिन्ता कर रहे थे। रोजाना शाम ठीक छह बजे घर आ जाने वाला जटाशंकर आज सात बजे तक भी नहीं पहुँचा था। वे बार बार बाहर आकर गली की ओर नजर टिकाये थे। जब जटाशंकर को घर में हाँफते हुए प्रवेश करते देखा तो सभी ने एक साथ सवाल करने शुरू कर दिये। उसकी पत्नी तो बहुत नाराज हो रही थी। उसने पूछा- कहाँ लगाई इतनी देर! जटाशंकर ने कहा- भाग्यवती! थोडी धीरज धार! थोडी सांस लेने दे! फिर बताता हूँ कि क्या हुआ! तुम सुनोगी तो आनंद से उछल पडोगी! मुझ पर धन्यवाद की बारिश करोगी! कुछ देर में पूर्ण स्वस्थता का अनुभव करने के बाद जटाशंकर ने कहा- आज तो मैंने पूरे पाँच रूपये बचाये है! रूपये बचाने की बात सुनी तो जटाशंकर की कंजूस पत्नी के चेहरे पर आनंद तैरने लगा। उसने कहा- जल्दी बताओ! कैसे बचाये! जटाशंकर ने कहा- आज मैं आँफिस से जब निकला तो तय कर लिया कि आज रूपये बचाने हैं। इसलिये बस में नहीं बैठा! बस के पीछे दौडता हुआ आया हूँ। यदि बस में बैठता तो पाँच रूपये का टिकट लगता! टिकट लेने के बजाय मैं उसके पीछे दौडता रहा, हाँफता रहा और इस प्रकार पाँच रूपये बचा लिय

46. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा

जटाशंकर चाय पीने के लिये घटाशंकर की होटल पर पहुँचा था। थोडा आदत से लाचार था। हर काम में कमी निकालने का उसका स्वभाव था। उसके इस स्वभाव से सभी परेशान थे। जहाँ खाना खाने जाता, वहाँ कम नमक या कम मिर्च की शिकायत करके पैसे कम देने का प्रयास करता! घटाशंकर ने उसे चाय का कप प्रस्तुत किया। धीरे धीरे वह चाय पीता जा रहा था। और मानस में कोई नया बहाना खोजता जा रहा था। पूरी चाय पीने के बाद वह क्रोध में फुंफकारते हुए

मुंबई में तपश्चर्या का कीर्तिमान

परम पूज्य गुरूदेव प्रज्ञापुरूष आचार्य देव श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य पूज्य गुरूदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. , पूज्य मुनि श्री मुक्तिप्रभसागरजी म. पूज्य मुनि श्री मनीषप्रभसागरजी म. पू. मुनि श्री मयंकप्रभसागरजी म. पू. मुनि श्री मनितप्रभसागरजी म. पू. मुनि श्री मेहुलप्रभसागरजी म. पू. मुनि श्री मैत्रीप्रभसागरजी म. ठाणा 7 एवं पूजनीया प्रखर व्याख्यात्री साध्वी श्री हेमप्रभाश्रीजी म.सा. की शिष्या पू. साध्वी श्री श्रद्धांजनाश्रीजी म. पू. साध्वी श्री दीपमालाश्रीजी म. पू. साध्वी श्री कल्याणमालाश्रीजी म. ठाणा 3 की पावन निश्रा में मुंबई महानगर में तपस्या का बहुत ही अनूठा वातावरण निर्मित हुआ है। पूज्य महातपस्वी मुनि श्री मैत्रीप्रभसागरजी म. ने 35 उपवास का महान् तप किया। पूजनीया साध्वी श्री कल्याणमालाश्रीजी म. ने सिद्धि तप की तपस्या की। 

KUMARPAL BHAI V. SHAH

Image
KUMARPAL BHAI V. SHAH

50. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा

45. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा

जटाशंकर सिगरेट बहुत पीता था। उसकी पत्नी उसे बहुत समझाती थी। सिगरेट पीने से केंसर जैसी बीमारी हो जाती है! फेफडे गल जाते हैं! घर में थोडा धूआँ फैल जाय तो दीवार कितनी काली हो जाती है! फिर सिगरेट का धुआँ अपने पेट में डालने पर हमारा आन्तरिक शरीर कितना काला हो जाता होगा! धूऐं की वह जमी हुई परत मौत का कारण हो सकती है। इसलिये आपको सिगरेट बिल्कुल नहीं पीनी चाहिये। एक दिन जटाशंकर की पत्नी अखबार पढ रही थी। उसमें सिगरेट से होने वाले नुकसानों की विस्तार से व्याख्या की गई थी। वह दौडी दौडी अपने पति के पास गई और हर्षित होती हुई कहने लगी- देखो! अखबार में क्या लिखा है? सिगरेट पीने से कितना नुकसान होता है? जटाशंकर ने अखबार हाथ में लेते हुए कहा- कहाँ लिखा है! जरा देखूं तो सही! उसने अखबार पढा! पत्नी सामने खडी उसके चेहरे के उतार चढाव देखती रही! कुछ ही पलों के बाद जटाशंकर जोर से चिल्लाया- आज से बिल्कुल बंद! कल से बिल्कुल नहीं! पत्नी अत्यन्त हर्षित होती हुई बोली- क्या कहा! कल से सिगरेट पीना बिल्कुल बंद! अरे वाह! मजा आ गया। जटाशंकर चिल्लाते हुए बोला- अरी बेवकूफ! सिगरेट बंद का किसने कहा! मैं अख

39. नवप्रभात -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

आवेश में आना बहुत आसान है। आवेश में निर्णय करना भी बहुत आसान है। और आवेश में किये गये निर्णय को क्रियान्वित करने के लिये और ज्यादा आवेश में आना भी बहुत आसान है। किन्तु यह स्थिति आदमी को बहुत नुकसान पहुँचाती है। क्योंकि आवेश का अर्थ होता है- किसी एक तरफ दिमाग का जड हो जाना! वह वही देखता है.. उसे उन क्षणों में और कुछ नजर नहीं आता। उसका दिमाग... उसके विचार.. बस! एक ही दिशा में दौडते हैं। दांये बांये, आगे पीछे की दृष्टि को जैसे ताला लग गया हो! वह एकांगी हो जाता है। और इस कारण उसका निर्णय सर्वांगीण नहीं हो पाता। उसका निर्णय मात्र उस समय की घटना या परिस्थिति पर ही आधारित होता है। वह उसके परिणाम के बारे में विचार नहीं करता। उसका निर्णय परिणामलक्षी नहीं होता। मुश्किल यह है कि निर्णय तो तत्काल के आधार पर लेता है, पर उसका निर्णय उसके पूरे जीवन को प्रभावित करता है। एक बार निर्णय होने के बाद उससे पीछा छुडाना आसान नहीं होता। इसलिये शान्ति और आनंद का पहला सूत्र है- आवेश में मत आओ! लेकिन बहुत मुश्किल है इस सूत्र के आधार पर चलना। क्योंकि जीवन विभिन्न राहों से गुजरता है। बहुत मोड हैं इसमें! त

Jahaj Mandir: Get free books online...

Jahaj Mandir: Get free books online... :  get free books online... www.JainEbook.com www.Jahajmandir.com

Get free books online...www.JainEbook.com

Image
www.JainEbook.com get free books online... h www.JainEbook.com www.Jahajmandir.com mehulprabh, jahajmandir, maniprabh, kantisagar, mayankprabh, manishprabh, kushalvatika, neelanjana, vidyutprabha, gajmandir, 

Thought

Thought रात के अंधेरे से वही घबरातें हैं जिनके दिन पाप के साथ कट जाते हैं जो जीते हैं अपने विश्वासों के साथ उनके चेहरे अंधेरे में भी चमकते नजर आते हैं।

जिंदगी को मुश्किल बनाने वाले 7 अचेतन विचार

हम लोगों में से बहुत से जन अपने मन में चल रहे फ़ालतू के या अतार्किक विचारों से परेशान रहते हैं जिसका हमारे दैनिक जीवन और कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये विचार सफल व्यक्ति को असफल व्यक्ति से अलग करते हैं। ये प्रेम को नफरत से और खुद को शांति से पृथक करते हैं। ये विचार सभी क्लेशों और दुखों की जड़ हैं क्योंकि अचेतन एवं अतार्किक विचारधारा ही सभी दुखों को जन्म देती है। मैं ऐसे 7 अतार्किक व अचेतन विचारों पर कुछ दृष्टि डालूँगा और आशा करता हूँ कि आपको इस विवेचन से लाभ होगा। 1. यदि कोई मेरी आलोचना कर रहा है तो मुझमें अवश्य कोई दोष होगा।     लोग एक-दूसरे की अनेक कारणों से आलोचना करते हैं। यदि कोई आपकी आलोचना कर रहा है तो इसका मतलब यह नहीं कि आपमें वाकई कोई दोष या कमी है। आलोचना का एक पक्ष यह भी हो सकता है कि आपके आलोचक आपसे कुछ भिन्न विचार रखते हों। यदि ऐसा है तो यह भी संभव है कि उनके विचार वाकई बेहतर और शानदार हों। यह तो आपको मानना ही पड़ेगा कि बिना किसी मत-वैभिन्य के यह दुनिया बड़ी अजीब जगह बन जायेगी। 2. मुझे अपनी खुशी के लिए अपने शुभचिंतकों की सुझाई राह पर चलना चाहिए।     बह

44 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

जटाशंकर के घर कुछ काम था। एक बडा गड्ढा खुदवाना था। उसने मजदूर रख लिया और काम सौंप कर अपने काम पर चला गया। उसने सोचा था कि जब मैं शाम घर पर जाउँगा, तब तक काम पूरा हो ही जायेगा। शाम जब घर पर लौटा तो उसने देखा कि मजदूर ने गड्ढा तो बिल्कुल ही नहीं खोदा है। उसने डाँटते हुए कहा- पूरा दिन बेकार कर दिया... तुमने कोई काम ही नहीं किया! क्या करते रहे दिन भर! मजदूर ने जवाब दिया- हुजूर! गड्ढा खोदने का काम मैं शुरू करने ही वाला था कि अचानक एक प्रश्न दिमाग में उपस्थित हो गया। आपने गड्ढा खोदने का तो आदेश दे दिया पर जाते जाते यह तो बताया ही नहीं कि गड्ढे में से निकलने वाली मिट्टी कहाँ डालनी है? इसलिये मैं काम शुरू नहीं कर पाया और आपका इन्तजार करता रहा। जटाशंकर ने कहा- इसमें सोचने की क्या बात थी? अरे इसके पास में एक और गड्ढा खोद कर उसमें मिट्टी डाल देता! उधर से गुजरने वाले लोग जटाशंकर की इस बात पर मुस्कुरा उठे। हमारा जीवन भी ऐसा ही है। एक गड्ढे को खोदने के लिये दूसरा गड्ढा खोदते हैं फिर उसकी मिट्टी डालने के लिये तीसरा गड्ढा खोदते हैं। यह काम कभी समाप्त ही नहीं होता। संसार की हमारी क्रियाऐं

38. नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

काला, घना काजल से भी गहरा अंधेरा है! दांये हाथ को बांये हाथ का पता नहीं चल पा रहा है, इतना अंधेरा है। और मुश्किल यह है कि यह द्रव्य अंधेरा नहीं है। द्रव्य के अंधेरे को मिटाने के लिये एक दीया काफी है। एक दीपक की रोशनी हमारे कक्ष में उजाला भर सकती है। यह अंतर का अंधेरा है। आँखों में रोशनी होने पर भी अंधेरा है। सूरज के प्रकाश में भी अंधेरा है। किधर चलें, कहाँ चलें, किधर जायें, क्या करें..... आदि आदि प्रश्न तो बहुतेरे हैं, पर समाधान नहीं है। अंतर के अंधेरे से जूझना भी कोई आसान काम नहीं है। जितना जितना उस बारे में सोचता हूँ, उतना ही ज्यादा मैं उसमें उलझता जाता हूँ। बैठा रहता हूँ माथे पर चिंता की लकीरें लिये! पडा रहता हूँ शून्य चेहरे के साथ! उदास होकर बैठ जाता हूँ हाथ पर हाथ धर कर! रोता रहता हूँ अपने को, अपनी तकदीर को! लेकिन मेरे भैया! यों हाथ पर हाथ धरके बैठने से क्या होगा? रोने से रोशनी तो नहीं मिलेगी न! इसलिये उठो! जागो! पुरूषार्थ करो! रोओ मत! थोडा हँसो! अपने भाग्य पर हँसो! और अपनी हँसी से यह दिखाओ कि मैं तुमसे हार मानने वाला नहीं है। अपनी हँसी से पुरूषार्थ का भी स्वागत करो।

37. नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

अपने घर की खोज हम लम्बे समय से कर रहे हैं। पर मिला नहीं है। इसलिये नहीं कि दूरी बहुत है। दूरी तो जरा भी नहीं है। दूरी तो मात्र इतनी है कि देखा कि पाया! एक कदम आगे बढाया कि मंज़िल मिली! हाथ लंबा किया कि द्वार पाया! दूरी अधिक नहीं है, फिर भी अभी तक अपना घर मिला नहीं है। इसलिये भी नहीं कि हम चले नहीं है। हम बहुत चले हैं। और इतना चले हैं कि थक कर चूर हो गये हैं। गोल गोल चक्कर न मालूम कितने काटे हैं। यहाँ से वहाँ और वहाँ से यहाँ भागने, दौडने में जिन्दगियाँ पूरी हो गई है। जिसे खोजने चले हैं, उसे पाने के लिये तो एक जिंदगी ही पर्याप्त है। यह विडम्बना ही है कि जिसे एक ही जिंदगी में, एक ही जिंदगी से पाया जा सकता है, उसे बहुत सारी जिन्दगियाँ खोने पर भी नहीं पा सके हैं। चले बहुत हैं, फिर भी नहीं पाया है तो इसका अर्थ है कि कहीं कोई समस्या है! कहीं कोई गलती हो रही है। दिशा भी सही है। चले भी हम सही दिशा में है। किन्तु बीच में अटक गये हैं। थोडा भटक गये हैं। क्योंकि बीच में बहकाने वाले बहुत दृश्य है। सुन्दर बगीचे हैं। कलकल बहते झरणे हैं। आँखों को सुकून दें, ऐसे दृश्य हैं। कानों में रस घ

43. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

जटाशंकर नौकरी की तलाश में घूम रहा था। वह समझ रहा था कि यदि मुझे शीघ्र ही नौकरी नहीं मिली तो घर का चूल्हा जलना बंद हो जायेगा। चलते चलते वह एक सर्कस वाले के पास पहुँचा। सर्कस के मैनेजर ने कहा- मैं तुम्हें एक काम दे सकता हूँ। रूपये तुम्हें पूरे मिलेंगे। जटाशंकर ने कहा- हुजूर! आप जो भी काम सौंपेंगे, मैं करने के लिये तैयार हूँ। बताइये मुझे क्या काम करना होगा? मैनेजर ने कहा- एक शेर की हमारे पास कमी हो गई है। तुम्हें शेर की खाल पहन कर शेर का अभिनय करना है। बस! थोड़ी देर का काम है। थोडा चीखना है! दहाड लगानी है! आधे घंटे का काम है। पिंजरे में घूमना है। दर्शकों का मनोरंजन हो जायेगा। और तुम्हें पैसे मिल जायेंगे। महीने भर तो यह काम करो, फिर बाद में देखेंगे। जटाशंकर थोड़ा हैरान हुआ कि शेर का काम मुझे करना पडेगा! पर सोचा कि पैसे तो मिल ही रहे हैं न! फिर क्या चिंता! दूसरे दिन से समय पर उसने पिंजरे में बैठकर शेर की खाल पहन ली। दर्शकों का जोरदार मनोरंजन किया। नकली शेर तो ज्यादा ही दहाडता है। उसने जो दहाड लगाई, जो उछला, कूदा, लोग आनंदित हो गये। मैनेजर ने प्रसन्न होकर उसे पुरस्कृत भी किया।

36. नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

अपने अतीत का जो व्यक्ति अनुभव कर लेता है, वह वर्तमान में जीना सीख लेता है। वर्तमान कुछ अलग नहीं है। वर्तमान की हर प्रक्रिया मेरे अतीत का हिस्सा बन चुकी है। और एक बार नहीं, बार बार मैं उसे जी चुका हूँ। मुश्किल यह है कि मुझे उसका स्मरण नहीं है। मैं उस अतीत की यथार्थ कल्पना तो कर सकता हूँ। पर उसे पूर्ण रूप से स्मरण नहीं कर पाता। इस कारण मैं अपने आपको बहुत छोटा बनाता हूँ। मैंने अपने जीवन को कुऐं की भांति संकुचित कर लिया है। वही अपना प्रतीत होता है। उस कुऐं से बाहर के हिस्से को मैं अपना नहीं मानता। क्योंकि यह मुझे ख्याल ही नहीं है कि वह बाहर का हिस्सा भी कभी मेरा रह चुका है। अतीत में छलांग लगाना अध्यात्म की पहली शुरूआत है। अतीत को जाने बिना मैं वर्तमान को समग्रता से समझ नहीं पाता। और वर्तमान को जाने बिना कोई भविष्य नहीं है। सच तो यह है कि भविष्य कुछ अलग है भी नहीं, वर्तमान ही मेरा भविष्य है। अपने अतीत को जानने का अर्थ है- अतीत में मैं कहाँ था, मैं क्या था, इसे जान लेना। वह अतीत किसी और का नहीं है, मेरा अपना है। और अतीत होने से वह पराया नहीं हो जाता। उसका अपनत्व मिटा नहीं है। मात्र अ

42. जटाशंकर

जटाशंकर परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गया था। अपना कार्ड लेकर मुँह लटका कर रोता हुआ जब घर पहुँचा तो पिताजी ने रोने का कारण पूछा- हाथ में रखा प्रगति पत्र आगे करते हुए कहा- मैं फेल हो गया हूँ। इसलिये रो रहा हूँ। पिताजी को भी क्रोध तो बहुत आया। साल भर गँवा दिया। यदि मेहनत करता तो निश्चित ही पास हो जाता। इधर उधर घूमता रहा। पढाई की नहीं, तो फेल तो होओगे। पर सोचा- मेरा लडका वैसे ही उदास है। रो रहा है। यदि मैंने भी क्रोध में इसे डाँटना प्रारंभ कर दिया तो पता नहीं यह क्या कर बैठेगा? कहीं उल्टी सीधी हरकत कर दी तो मैं अपने बेटे से हाथ खो बैठूंगा। इसलिये सांत्वना देते हुए पिताजी ने कहा- बेटा जटाशंकर! रो मत! तुम्हारे भाग्य में फेल होना ही लिखा था। इसलिये धीरज धर। सुनते ही जटाशंकर ने अपना रोना बंद कर दिया और मुस्कुराते हुए कहा- पिताजी! मैं इस बात पर बहुत प्रसन्न हूँ कि मेरे भाग्य में फेल होना ही लिखा था। अच्छा हुआ जो मैंने मेहनत पूर्वक पढाई नहीं की। यदि करता तो भी फेल हो जाता और इस प्रकार मेरी सारी मेहनत बेकार हो जाती, मिट्टी में मिल जाती। मेहनत न करने का दोष भाग्य पर नहीं ढाला जा सकता। भाग

35. नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

जीवन सीधी लकीर नहीं है। इसकी पटरी में न जाने कितने ही उल्टे सीधे, दांये बांये मोड बिछे है। मोड मिलने के बाद ही हमें उसका पता चलता है! पहले खबर हो जाय, ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। बहुत बार तो ऐसा होता है कि मोड गुजर जाने के बाद ही हमें पता चलता है कि हम किसी मोड से गुजरे हैं। और बहुत बार ऐसा भी होता है कि मोड गुजर जाने के बाद भी हमें पता नहीं चलता कि हम किसी मोड से गुजरे हैं। भले हमें विभिन्न मोडों से गुजरना पडे पर सर्चलाइट तो एक ही पर्याप्त होती है। ऐसा तो होता नहीं कि दांये जाने के लिये टोर्च  अलग चाहिये और बांये जाना हो तो टाँर्च अलग किस्म की चाहिये। क्योंकि अंतर मात्र दिशा का है। न मुझमें अंतर हुआ है, न राह पर रोशनी डालने वाले में! इस कारण जीवन एक निर्णय से नहीं चलता। विभिन्न परिस्थितियों में परस्पर विरोधी निर्णय भी लेने होते हैं। कभी प्यार से पुचकारना होता है तो कभी लाल आँखें करते हुए डांटना भी होता है। कभी लेने में आनंद होता है तो कभी देने में भी आनंद का अनुभव होता है। दिखने में भले निर्णय अलग अलग प्रतीत होते हों, पर अन्तर में उनका यथार्थ, निहितार्थ, फलितार्थ एक ही होता ह

41. जटाशंकर

जटाशंकर परमात्मा के मंदिर में पहुँचा था। चावल के स्वस्तिक की रचना करने के बाद उसने अपनी जेब में से एक अठन्नी निकाली और अच्छी तरह निरख कर भंडार में डाल दी। एक लडका उसे देख रहा था। उसने जटाशंकर से कहा- सेठजी! यह तो खोटी अठन्नी है। भगवान के पास भी ऐसा छल कपट करते हो! मंदिर में खोटी अठन्नी चढाते हो! जटाशंकर ने कहा- अरे! तुम्हें पता नहीं है। चिलातीपुत्र, इलायचीकुमार, दृढ़प्रहारी जैसे खोटे लोग भी परमात्मा की शरण को प्राप्त कर सच्चे हो गये थे... तिर गये थे.... तो क्या मेरी खोटी अठन्नी परमात्मा की शरण को पाकर सच्ची नहीं बन जायेगी! वह लडका तो देखता ही रह गया। अपने तर्क के आधार पर परमात्मा के मंदिर को भी अपने छल कपट का हिस्सा बनाते हैं। और अपनी बुद्धि पर इतराते हैं। यह स्वस्थ मानसिकता नहीं है।

34. नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

34.   नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा. जीवन को हमने दु:खमय बना दिया है। दु:खमय है नहीं, पर सुख की अजीब व्याख्याओं के कारण वैसा हो गया है। हम अपनी ही व्याख्याओं के जाल में फँस गये हैं। जिस जाल में फँसे हैं, उस जाल को हमने ही अपने विचारों और व्याख्याओं से बुना है। इस कारण किसी और को दोष दिया भी नहीं जा सकता। और इस कारण हम अपने ही अन्तर में कुलबुलाते हैं। हमने अपने जीवन के बारे में एक मानचित्र अपने मानस में स्थिर कर लिया है। और उस मानचित्र में उन्हें बिठा दिया है हमने उन पदार्थों को, परिस्थितियों को, जिनका मेरे साथ कोई वास्ता नहीं है। जिंदगी भर उस मानचित्र को देखते रहें, उस पर लकीरें खींचते रहें, बनाते रहें, बिगाडते रहें, बदलते रहें, परिवर्तन कुछ नहीं होना। परिवर्तन की आशा और आकांक्षा में जिंदगी पूरी हो जाती है, मानचित्र वैसा ही मुस्कुराता रहता है। फिर वही मानचित्र अगली पीढी के हाथ आ जाता है, वह भी उस धोखे में उलझ कर अपनी जिंदगी गँवा देता है। हमने अपने मानचित्र में लकीर खींच दी है कि धन आयेगा तो सुख होगा! कुछ समय बाद लकीर बदलते हैं कि इतना धन आयेगा तो सुख होगा। बदलते स

33. नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

एक लघु कथा पढी थी। एक आदमी सुबह ही सुबह एक लोटे में छास भर कर अपने घर की ओर आ रहा था। रास्ते में उसका दोस्त मिला। उसके पास एक बडे पात्र में दूध था। उसने कहा- मेरे पास दूध ज्यादा है, थोडा तुम ले लो! उसने कहा- मुझे भी दूध चाहिये। लाओ, मेरे इस लोटे में डाल दो। वह दूध उसके लोटे में डाल ही रहा था कि उसकी निगाहें लोटे के भीतर पडी। देखा तो कहा- भैया! इसमें तो छास दिखाई दे रही है। पहले लोटे को खाली करके धो डालो, बाद में दूध डालूंगा। उसने कहा- नहीं! मुझे छास बहुत प्रिय है। मैं इसका त्याग नहीं कर सकता। मुझे छास भी चाहिये और दूध भी चाहिये। तुम इसी में डाल दो। लोटा आधा खाली है। इतना दूध डाल दो। उसने कहा- यह मूर्खता की बात है। यदि छास में दूध डाल दिया गया तो दूध भी बेकार हो जायेगा। उसने कहा- जो होना हो, पर दूध तो इसी में डालना पडेगा। मैं खाली नहीं करूँगा। वह अपना दूध लेकर रवाना हो गया। यह कहानी व्यावहारिक जगत में घटी या नहीं, पता नहीं। परन्तु आध्यात्मिक जगत के लिये पूर्णत: सार्थक है। पीना है दूध तो छास का त्याग करना ही पडेगा! हमें दूध पसंद है। उसे पाना भी चाहते हैं। पाने के