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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

35. नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

जीवन सीधी लकीर नहीं है। इसकी पटरी में न जाने कितने ही उल्टे सीधे, दांये बांये मोड बिछे है। मोड मिलने के बाद ही हमें उसका पता चलता है! पहले खबर हो जाय, ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। बहुत बार तो ऐसा होता है कि मोड गुजर जाने के बाद ही हमें पता चलता है कि हम किसी मोड से गुजरे हैं। और बहुत बार ऐसा भी होता है कि मोड गुजर जाने के बाद भी हमें पता नहीं चलता कि हम किसी मोड से गुजरे हैं। भले हमें विभिन्न मोडों से गुजरना पडे पर सर्चलाइट तो एक ही पर्याप्त होती है। ऐसा तो होता नहीं कि दांये जाने के लिये टोर्च  अलग चाहिये और बांये जाना हो तो टाँर्च अलग किस्म की चाहिये। क्योंकि अंतर मात्र दिशा का है। न मुझमें अंतर हुआ है, न राह पर रोशनी डालने वाले में! इस कारण जीवन एक निर्णय से नहीं चलता। विभिन्न परिस्थितियों में परस्पर विरोधी निर्णय भी लेने होते हैं। कभी प्यार से पुचकारना होता है तो कभी लाल आँखें करते हुए डांटना भी होता है। कभी लेने में आनंद होता है तो कभी देने में भी आनंद का अनुभव होता है। दिखने में भले निर्णय अलग अलग प्रतीत होते हों, पर अन्तर में उनका यथार्थ, निहितार्थ, फलितार्थ एक ही होता ह

41. जटाशंकर

जटाशंकर परमात्मा के मंदिर में पहुँचा था। चावल के स्वस्तिक की रचना करने के बाद उसने अपनी जेब में से एक अठन्नी निकाली और अच्छी तरह निरख कर भंडार में डाल दी। एक लडका उसे देख रहा था। उसने जटाशंकर से कहा- सेठजी! यह तो खोटी अठन्नी है। भगवान के पास भी ऐसा छल कपट करते हो! मंदिर में खोटी अठन्नी चढाते हो! जटाशंकर ने कहा- अरे! तुम्हें पता नहीं है। चिलातीपुत्र, इलायचीकुमार, दृढ़प्रहारी जैसे खोटे लोग भी परमात्मा की शरण को प्राप्त कर सच्चे हो गये थे... तिर गये थे.... तो क्या मेरी खोटी अठन्नी परमात्मा की शरण को पाकर सच्ची नहीं बन जायेगी! वह लडका तो देखता ही रह गया। अपने तर्क के आधार पर परमात्मा के मंदिर को भी अपने छल कपट का हिस्सा बनाते हैं। और अपनी बुद्धि पर इतराते हैं। यह स्वस्थ मानसिकता नहीं है।

34. नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

34.   नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा. जीवन को हमने दु:खमय बना दिया है। दु:खमय है नहीं, पर सुख की अजीब व्याख्याओं के कारण वैसा हो गया है। हम अपनी ही व्याख्याओं के जाल में फँस गये हैं। जिस जाल में फँसे हैं, उस जाल को हमने ही अपने विचारों और व्याख्याओं से बुना है। इस कारण किसी और को दोष दिया भी नहीं जा सकता। और इस कारण हम अपने ही अन्तर में कुलबुलाते हैं। हमने अपने जीवन के बारे में एक मानचित्र अपने मानस में स्थिर कर लिया है। और उस मानचित्र में उन्हें बिठा दिया है हमने उन पदार्थों को, परिस्थितियों को, जिनका मेरे साथ कोई वास्ता नहीं है। जिंदगी भर उस मानचित्र को देखते रहें, उस पर लकीरें खींचते रहें, बनाते रहें, बिगाडते रहें, बदलते रहें, परिवर्तन कुछ नहीं होना। परिवर्तन की आशा और आकांक्षा में जिंदगी पूरी हो जाती है, मानचित्र वैसा ही मुस्कुराता रहता है। फिर वही मानचित्र अगली पीढी के हाथ आ जाता है, वह भी उस धोखे में उलझ कर अपनी जिंदगी गँवा देता है। हमने अपने मानचित्र में लकीर खींच दी है कि धन आयेगा तो सुख होगा! कुछ समय बाद लकीर बदलते हैं कि इतना धन आयेगा तो सुख होगा। बदलते स

33. नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

एक लघु कथा पढी थी। एक आदमी सुबह ही सुबह एक लोटे में छास भर कर अपने घर की ओर आ रहा था। रास्ते में उसका दोस्त मिला। उसके पास एक बडे पात्र में दूध था। उसने कहा- मेरे पास दूध ज्यादा है, थोडा तुम ले लो! उसने कहा- मुझे भी दूध चाहिये। लाओ, मेरे इस लोटे में डाल दो। वह दूध उसके लोटे में डाल ही रहा था कि उसकी निगाहें लोटे के भीतर पडी। देखा तो कहा- भैया! इसमें तो छास दिखाई दे रही है। पहले लोटे को खाली करके धो डालो, बाद में दूध डालूंगा। उसने कहा- नहीं! मुझे छास बहुत प्रिय है। मैं इसका त्याग नहीं कर सकता। मुझे छास भी चाहिये और दूध भी चाहिये। तुम इसी में डाल दो। लोटा आधा खाली है। इतना दूध डाल दो। उसने कहा- यह मूर्खता की बात है। यदि छास में दूध डाल दिया गया तो दूध भी बेकार हो जायेगा। उसने कहा- जो होना हो, पर दूध तो इसी में डालना पडेगा। मैं खाली नहीं करूँगा। वह अपना दूध लेकर रवाना हो गया। यह कहानी व्यावहारिक जगत में घटी या नहीं, पता नहीं। परन्तु आध्यात्मिक जगत के लिये पूर्णत: सार्थक है। पीना है दूध तो छास का त्याग करना ही पडेगा! हमें दूध पसंद है। उसे पाना भी चाहते हैं। पाने के

40. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

जटाशंकर को बैंक में पहरेदारी की नौकरी मिली थी। होशियार था तो कम, पर अपने आप को समझता ज्यादा था। शाम के समय में बैंक मैनेजर ने अपने सामने ताला लगवाया। उस पर सील लगवाई और चौकीदार जटाशंकर से कहा- ध्यान रखना! सील कोई तोड न दें। पूरी रात चौकीदारी करना। जटाशंकर ने अपनी मूंछों पर अकडाई के साथ हाथ फेरते हुए कहा- आप जरा भी चिंता न करें। इस सील का बाल भी बांका नहीं होने दूंगा। दूसरे दिन सुबह बैंक मैनेजर ने आकर देखा तो पता लगा कि रात लुटेरों ने बैंक को लूंट लिया है। क्रोध में उसने जटाशंकर को बुलाया और कहा- क्या करते रहे तुम रात भर! यहाँ पूरी बैंक ही लुट गई। जटाशंकर ने कहा- हजूर! आपने मुझे सील की सुरक्षा का कार्य सौंपा था। मैंने उसे पूरी तरह सुरक्षित रखा है। आप देख लें। पर चोर तो दीवार में सेंध मार कर भीतर घुसे हैं। - हुजूर! यह तो मैं देख रहा था। दीवार को तोडते भी देखा, अंदर जाते भी देखा, सामान लूटते भी देखा, सामान ले जाते भी देखा। - तो फिर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे, उन्हें रोकना नहीं था! - हुजूर! आपने मुझे सील की सुरक्षा की जिम्मेवारी सौंपी थी। मैं इधर उधर कैसे जा सकता था! मै

32. नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

हमें मन के अनुसार जीवन का निर्माण नहीं करना है। बल्कि जीवन के लक्ष्य के अनुसार अपने मन का निर्माण करना है। यह तो तय है कि मन की दिशा के अनुसार ही हमारा आचरण होता है। मन मुख्य है। मन यदि सम्यक् है तो जीवन सम्यक् है! मन यदि विकृत है तो जीवन विकृत है। मन के अधीन जो जीता है, वह हार जाता है। जो मन को अपने अधीन बनाता है, वह जीत जाता है। मन को अपना मालिक मत बनने दो! वह तो मालिक होने के लिये कमर कस कर तैयार है। वह छिद्र खोजता है। छोटा-सा भी छिद्र मिला नहीं कि उसने प्रवेश किया नहीं! प्रवेश होने के बाद वह राजा भोज बन जाता है। फिर हमें नचाता है! उलटे सीधे सब काम करवाता है। क्योंकि उसे किसकी परवाह है। वह किसी के प्रति जवाबदेह भी नहीं है। उसे परिणाम भोगने की चिंता भी नहीं है। वह तो थप्पड मार कर अलग हो जाता है। दूर खडा परिणाम को और परिणाम भोगते तन या चेतन को देखता रहता है। उसे किसी से लगाव भी तो नहीं है। तन का क्या होगा, उसे चिंता नहीं है। चेतना का क्या होगा, उसे कोई परवाह नहीं है। उसे तो केवल अपना मजा लेना है। और सच यह भी है कि हाथ उसके भी कुछ नहीं आता! न पाता है, न खोता है, न रोता है,

39. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

39. जटाशंकर     - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . जटाशंकर परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गया था। अपना कार्ड लेकर मुँह लटका कर रोता हुआ जब घर पहुँचा तो पिताजी ने रोने का कारण पूछा- हाथ में रखा प्रगति पत्र आगे करते हुए कहा- मैं फेल हो गया हूँ। इसलिये रो रहा हूँ। पिताजी को भी क्रोध तो बहुत आया। साल भर गँवा दिया। यदि मेहनत करता तो निश्चित ही पास हो जाता। इधर उधर घूमता रहा। पढाई की नहीं, तो फेल तो होओगे। पर सोचा- मेरा लडका वैसे ही उदास है। रो रहा है। यदि मैंने भी क्रोध में इसे डाँटना प्रारंभ कर दिया तो पता नहीं यह क्या कर बैठेगा? कहीं उल्टी सीधी हरकत कर दी तो मैं अपने बेटे से हाथ खो बैठूंगा। इसलिये सांत्वना देते हुए पिताजी ने कहा- बेटा जटाशंकर! रो मत! तुम्हारे भाग्य में फेल होना ही लिखा था। इसलिये धीरज धर। सुनते ही जटाशंकर ने अपना रोना बंद कर दिया और मुस्कुराते हुए कहा- पिताजी! मैं इस बात पर बहुत प्रसन्न हूँ कि मेरे भाग्य में फेल होना ही लिखा था। अच्छा हुआ जो मैंने मेहनत पूर्वक पढाई नहीं की। यदि करता तो भी फेल हो जाता और इस प्रकार मेरी सारी मेहनत बेकार हो जाती, मिट्टी में मिल जा

जिज्ञासाओं का समाधान

जिज्ञासाओं का समाधान आज कान्ति मणि नगर, कपोलवाडी में खचाखच भरे विशाल हाँल में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए पूज्य उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने जिज्ञासाओं का समाधान किया। उन्होंने प्रश्नों के उत्तर देते हुए कहा- इस वर्ष जैन संघ में छह बार संवत्सरी मनाई जायेगी। खरतरगच्छ, अंचलगच्छ, स्थानकवासी संघ {ज्ञानगच्छ को छोडकर}, तेरापंथ संघ व दिगम्बर समाज का अधिकांश भाग अगस्त महिने में संवत्सरी महापर्व की आराधना करेगा। जबकि तपागच्छ, तीन थुई, ज्ञानगच्छ अगले महिने सितम्बर में संवत्सरी मनायेगा। इस विषय पर अपनी वेदना व्यक्त करते हुए उपाध्यायश्री ने कहा- जैन संघ के तीर्थंकर एक, नवकार एक, आराधना का लक्ष्य एक होने पर भी संवत्सरी का यह भेद समाज को छिन्न भिन्न कर रहा है। हर वर्ष पर्युषण महापर्व के दिनों में कत्लखाने बंद रहते हैं, पर इस वर्ष अलग अलग होने के कारण सरकार ने ऐसा आदेश निकालने से मना कर दिया है। अर्थात् किसी भी पर्युषण में कत्लखाने बंद नहीं रहेंगे। यह हमारे लिये कितने दर्द की बात है। उन्होंने कहा- यदि संपूर्ण जैन समाज संवत्सरी एक मनाने के लिये तत्पर है तो खरतरगच्छ समुदाय अपनी परम्

38. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

जटाशंकर बस में यात्रा कर रहा था। वह तेजी से कभी बस में आगे की ओर जाता, कभी पीछे की ओर! बस आधी खाली होने पर भी वह बैठ नहीं रहा था। कुछ यात्रियों ने कहा भी कि भैया! बैठ जाओ! सीट खाली पडी है। जहाँ मरजी, बैठ जाओ! पर वह सुना अनसुना कर गया। आखिर कुछ लोगों से रहा नहीं गया। उन्होंने उसे पकड कर पूछना शुरू किया- तुम चल क्यों रहे हो? आखिर एक स्थान पर बैठ क्यों नहीं जाते? उसने जवाब दिया! मुझे बहुत जल्दी है। मुझे जल्दी से जल्दी अपनी ससुराल पहुँचना है। वहाँ मेरी सासुजी बीमार है। मेरे पास समय नहीं है। इसलिये तेजी से चल रहा हूँ। भैया मेरे! बस जब पहुँचेगी तब पहुँचेगी। बस में तुम्हारे चलने का क्या अर्थ है? बस में तुम चल तो कितना ही सकते हो...चलने के कारण थक भी सकते हो... पर पहुँच कहीं नहीं सकते। जब भी देखोगे, अपने आप को बस में ही पाओगे... वहीं के वहीं पाओगे। वह चलना व्यर्थ है, जो कहीं पहुँचने का कारण नहीं बनता। हमारी यात्रा भी ऐसी होनी चाहिये जिसका कोई परिणाम होता है। वही यात्रा सफल है।

37. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

मिस्टर घटाशंकर के गधे को बुखार आ गया था। बुखार बहुत तेज था। गधा जैसे जल रहा था। न कोई काम कर पा रहा था जटाशंकर को अपने गधे से स्वाभाविक रूप से बहुत प्रेम था। वह परेशान हो उठा। उसने डोक्टर से इलाज करवाने का सोचा। मुश्किल यह थी कि उस गाँव में पशुओं का कोई डोक्टर न था। अत: सामान्य डोक्टर को ही बुलवाया गया। डोक्टर जटाशंकर ने आते ही गधे का मुआयना किया। उसने देखा- बुखार बहुत तेज है। उसे पशुओं के इलाज का कोई अनुभव नहीं था। उसने अपना अनुमान लगाते हुए सोचा- सामान्यत: किसी व्यक्ति को बुखार आता है तो उसे एक मेटासिन या क्रोसिन दी जाती है। चूंकि यह गधा है। इसके शरीर का प्रमाण आदि का विचार करते हुए उसने 10 गोलियाँ मेटासिन की इसे देने का तय किया। घटाशंकर भागा भागा मेटासिन की 10 गोलियाँ ले आया। अब समस्या यह थी कि इसे गधे को खिलाये कैसे? घटाशंकर ने घास में गोलियाँ डाल कर गधे को खिलानी चाही। पर गधा बहुत होशियार था। उसने अपने मालिक को जब घास में कुछ सफेद सफेद गोलियाँ डालते देखा वह सशंकित हो गया। उसने सोचा- कुछ गडबड है। मैं इस घास को हरगिज नहीं खाउँगा, पता नहीं मेरे मालिक ने इसमें क्या
36. जटाशंकर         - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . घटाशंकर की विद्वत्ता दूर दूर तक प्रसिद्ध थी। पर लोगों के मन में इस बात का रंज था कि पंडितजी घोर अहंकारी है। किसी की भी बात को काटने में ही वे अपनी विद्वत्ता को सार्थक मानते थे। एक बार जटाशंकर ने उन्हें भोजन करने का निमंत्रण दिया। पंडित प्रवर ज्योंहि भोजन करने के लिये बैठे, जटाशंकर ने उन्हें याद दिलाते हुए कहा- आप हाथ धोना भूल गये हैं, चलिये पहले हाथ धो लीजिये। पंडितजी को भी अपनी भूल तो समझ में आ गई कि भोजन की थाली पर आने से पूर्व ही हाथ धो लेने चाहिये थे। पर अब क्या करें? कोई और मुझे मेरी गलती बताये, यह मुझे मंजूर नहीं है। उन्होंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- अरे यजमान! क्या तुम पानी से हाथ धोने की बात करते हो। हमारे अन्दर तो ज्ञानगंगा लगातार बह रही है। इसलिये उस जल से हम सदा स्वच्छ ही रहते हैं। क्या इस बाहर के पानी से हाथ धोना! जटाशंकर इस उत्तर से अन्दर ही अन्दर बहुत कुपित हुआ। उसने इस उत्तर का प्रत्युत्तर देने का तय कर लिया। भोजन में भरपूर दाल बाटी खा लेने के बाद पंडित प्रवर घटाशंकरजी को गहरी निद्रा आने लगी। वे ख
35 जटाशंकर      - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . जटाशंकर की माता सामायिक कर रही थी। दरवाजे के ठीक सामने ही उसने अपना आसन लगाया था। सामायिक लेकर वह माला हाथ में लेकर बैठ गयी थी। उसकी बहू पानी लेने के लिये कुएं पर जाने की तैयारी कर रही थी। तब नल घरों में लगे नहीं थे। बहूजी ने घडा हाथ में लिया... इंडाणी भी ले ली..। पर बहुत खोजने पर भी उसे पानी छानने के लिये गरणा नहीं मिला। उसने इधर से उधर पूरा कमरा छान मारा... पर गरणा नहीं मिला। सासुजी सामायिक में माला फेरते फेरते भी बहू को देख रही थी। वह समझ गयी थी कि बहू को गरणा नहीं मिला है। सासुजी को सामने ही गरणा नजर आ रहा था। पर बहू को नहीं दीख रहा था। सासुजी ने माला फेरते फेरते हूं हूं करते हुए कई बार इशारा किया। पर बहूजी समझ नहीं पाई। इशारा करते सासुजी को बहूजी ने देखा तो आखिर परेशान होकर कह ही दिया कि मांजी! अब आप बताही दो कि गरणा कहाँ रखा है? मुझे देर हो जायेगी पानी लाने में... फिर दिन भर के हर काम में देर होती ही रहेगी। सासुजी साधु संतों के प्रवचनों में जाने वाली थी। वह जानती थी कि सामायिक में सांसारिक वार्तालाप किया नहीं जाता। धार

31. नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

घर पुराना था। मालिक उसे सजाने के विचारों में खोया रहता था। पोल में एक पुरानी खटिया पडी थी। कुछ पैसे जुटे थे। वह एक अच्छा कारीगरी वाला लकडी का पलंग ले आया था। पुरानी खटिया को पिछवाडे में डालकर उसे कबाड का रूप दे दिया गया था। कमरे की शोभा उस पलंग से बढ गई थी। उस पर नई चादर बिछाई गई थी। रोजाना दो बार उसकी साफ सफाई होने लगी थी। बच्चों को उस पलंग के पास आने की भी सख्त मनाई थी। वह मालिक और परिवार उस पलंग को देखता था और सीना तान लेता था। घर आते ही पहले पलंग को देखता था। घर से जाते समय वह पीछे मुड मुड कर पलंग को देखा करता था। बच्चे उनके जाने की प्रतीक्षा करते थे। उनके जाने के बाद वह पलंग बच्चों की कूदाकूद का साक्षी बन जाता था। एकाध बार उन्हें पता चला तो बच्चों को मेथीपाक अर्पण किया गया था। पलंग को सजाने के लिये नये तकिये खरीदे गये थे। आस पास के लोग, पडौसी भी इस कलात्मक नये सजे संवरे पलंग को देखे, इस लिये उन्हें एक बाद चाय पर बुलाया गया था। पलंग के संदर्भ में उनके द्वारा की गई प्रशंसा को सुनकर चाय पानी में हुआ खर्च न केवल दिमाग से निकल गया था बल्कि वह खर्च उसे सार्थक लगा था। अपने सं

कत्लखाने भारत देश का कलंक है

कत्लखाने भारत देश का कलंक है पूज्य उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी महाराज ने ता . 21 जुलाई 2012 श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ मुंबई द्वारा आयोजित प्रेस कान्फरेन्स में कहा - यह अत्यन्त पीडा और दु : ख की बात है कि भारत जैसे धर्म प्राण एवं सांस्कृतिक देश में और अधिक  आधुनिक बूचडखाने खोलने का आदेश सरकार द्वारा दिया जा रहा है। भारत देश ऋषि मुनियों का देश है। कोई भी धर्म हमें हिंसा नहीं सिखाता। क्या पशुओं को जीने का अधिकार नहीं है ! भारत देश जहाँ दूध घी की नदियाँ बहती थी। देश का पशुधन समाप्त हो रहा है। अन्य देश अपने देश के कत्लखाने बंद कर रहे हैं। और भारत देश केवल कुछ विदेशी मुद्रा में प्रलोभन में अपने यहाँ कत्लखानों को अनुमति दे रहा है। इससे भारत का पर्यावरण खतरनाक रूप से दूषित हो रहा है। पशुओं को भी जीने का उतना ही अिध्ाकार है , जितना मनुष्यों को ! जिस देश में भगवान महावीर ने अहिंसा का पाठ पढाया ! जिस देश में भगवान् बुद्ध ने करूणा

मंत्रीजी ने आशीर्वाद लिया

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मंत्रीजी ने आशीर्वाद लिया मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री श्री पारस जैन , उज्जैन पूज्य गुरूदेव उपाध्याय   श्री मणिप्रभसागरजी म . सा . के दर्शनार्थ मुंबई पधारे। श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ मुंबई द्वारा उनका हार्दिक अभिनंदन किया गया।

शिखरजी में चातुर्मास

शिखरजी में चातुर्मास पूजनीया पार्श्व मणि तीर्थ प्रेरिका साध्वी श्री सुलोचनाश्रीजी म . सा . वर्धमान तपाराधिका श्री सुलक्षणाश्रीजी म . सा . आदि ठाणा की पावन निश्रा में श्री सम्मेतशिखरजी महातीर्थ पर चातुर्मास की आराधना त्याग तप जप व कई कार्यक्रमों के साथ भव्यता के साथ चल रही है। देश के कोने कोने से पधारे 200 से अधिक आराधक वहाँ आराधना कर रहे हैं।

श्री मनोहरजी कानूगो सम्मानित

श्री मनोहरजी कानूगो सम्मानित कई अग्रणी संस्थाओं से जुडे सांचोर निवासी श्री मनोहरजी कानूगो को भारत के राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल द्वारा सम्मानित करते हुए उन्हें समाज रत्न पद प्रदान किया। यह सम्मान समाज के विभिन्न क्षेत्रों में दिये गये उनके द्वारा सहयोग के लिये अर्पित किया गया। श्री कानूगो जीतो , श्री जिनदत्त कुशल खरतरगच्छ पेढी आदि कई संस्थाओं के सक्रिय ट्रस्टी रह कर अपनी सेवाऐं संघ व शासन को अर्पित कर रहे हैं। श्री कानूगो श्री जैन श्वे . खरतरगच्छ संघ सांचोर के अध्यक्ष , श्री कुशल वाटिका बाडमेर के उपाध्यक्ष , श्री गज मंदिर केशरियाजी के उपाध्यक्ष पद का उत्तरदायित्व निभा रहे हैं। सम्मानित करने पर देश की विभिन्न संस्थाओं व अग्रणी श्रावकों ने उन्हें भावभीनी बधाई दी है। मूल सांचोर व वर्तमान में मुंबई में व्यवसाय रत श्री कानूगो सौम्य और सहयोगी स्वभाव के धनी है। उन्होंने अपनी लक्ष्मी का उपयोग जन हित व शासन हित में उदारता के साथ किया व कर

दुर्ग में ठाट लगा

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दुर्ग में ठाट लगा पूज्य ब्रह्मसर तीर्थोद्धारक मुनिश्री मनोज्ञसागरजी म . सा . पू . मुनि श्री कल्पज्ञसागरजी म . पू . मुनि श्री नयज्ञसागरजी म . की पावन निश्रा में छत्तीसगढ प्रान्त के दुर्ग नगर में चातुर्मास की आराधना अत्यन्त आनन्द व उल्लास के साथ चल रही है। प्रवचन में भारी भीड उपस्थित रहती है। प्रतिदिन दोपहर में स्वाध्याय की कक्षा में अध्यात्म - रसिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं। सिद्धि तप आदि बडी तपश्चर्याऐं बडी संख्या में दुर्ग नगर के इतिहास में पहली बार हो रही है।

सिवाना- अहमदाबाद से चलेगी ललवानी एक्सप्रेस

मूल सिवाना निवासी श्रीमती बक्सु देवी विरधीचंदजी ललवानी परिवार के श्री माणकचंदजी शांतिलालजी दिलीपकुमारजी ललवानी परिवार की ओर से श्री सम्मेतशिखरजी आदि पूर्व भारत के तीर्थों की यात्रा हेतु स्पेश्यल ट्रेन हेतु संघ का आयोजन किया जा रहा है। जिसका शुभ मुहूर्त्त प्राप्त करने के लिये ललवानी परिवार अपने रिश्तेदारों , मित्रों के साथ गाजते बाजते पूज्यश्री की सेवा में ता . 22 जुलाई 2012 को पहुँचा। पूज्यश्री ने 21 दिसम्बर 2012 का सिवाना से तथा 23 दिसम्बर 12 का अहमदाबाद से प्रयाण का शुभ मुहूर्त्त प्रदान किया। जिसे श्रवण कर ललवानी परिवार हर्ष से नृत्य करने लगा। इस अवसर पर पूज्यश्री ने फरमाया - शास्त्रों में तो छहरी पालित संघ का विधान है। आपको यह शुभ मुहूर्त्त इस संकल्प के साथ प्रदान किया जा रहा है कि पाँच वर्षों के भीतर आपको छहरी पालित संघ का लाभ लेना है। आप तीर्थों की यात्रा करने जा रहे हैं। वह यात्रा निर्दोष हो , रात्रि भोजन का सर्वथा त्याग हो , सामायिक

सिवाना में चातुर्मास का ठाट

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सिवाना में चातुर्मास का ठाट सिवाना उम्मेदपुरा में पूज्य धवलयशस्वी साध्वी श्री विमलप्रभाश्रीजी म . सा . की शिष्या पूजनीया साध्वी श्री हेमरत्नाश्रीजी म . जयरत्नाश्रीजी म . नूतनप्रियाश्रीजी म . ठाणा 3 का चातुर्मास आराध्ाना आदि के साथ चल रहा है। प्रवचनों में श्रावक श्राविकाओं की अनुमोदनीय उपस्थिति रहती है। पिछले दिनों श्री नेमिनाथ प्रभु के जन्म व दीक्षा कल्याणक के अवसर पर नाटिका का आयोजन किया गया। जिसे खूब सराहा गया।