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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

Dada gurudev ke darshan गुरुदेव के दरबार में दुनिया बदल जाती है...

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गुरुदेव के दरबार में दुनिया बदल जाती है... रहमत से हाथ की लकीर बदल जाती है... लेता जो भी दिल से गुरुदेव का नाम... एक पल में उसकी तक़दीर बदल जाती है... जय गुरूदेव

अपनों की चोट...

एक सुनार था। उसकी दुकान से मिली हुई एक लुहार की दुकान थी। सुनार जब काम करता, उसकी दुकान से बहुत ही धीमी आवाज होती, पर जब लुहार काम करतातो उसकी दुकान से कानो के पर्दे फाड़ देने वाली आवाज सुनाई पड़ती। एक दिन सोने का एक कण छिटककर लुहार की दुकान में आ गिरा। वहां उसकी भेंट लोहे के एक कण के साथ हुई। सोने के कण ने लोहे के कण से कहा, "भाई, हम दोनों का दु:ख समान है। हम दोनों को एक ही तरह आग में तपाया जाता है और समान रुप से हथौड़े की चोटें सहनी पड़ती हैं। मैं यह सब यातना चुपचाप सहन करता हूं, पर तुम...?" "तुम्हारा कहना सही है, लेकिन तुम पर चोट करने वाला लोहे का हथौड़ा तुम्हारा सगा भाई नहीं है, पर वह मेरा सगा भाई है।" लोहे के कण ने दु:ख भरे स्वर में उत्तर दिया। फिर कुछ रुककर बोला, "पराये की अपेक्षा अपनों द्वारा दी गई चोट की पीड़ा अधिक असह्म होती है।

क्यों बनू मैं सीता ???

नारी कहे क्यों बनू मैं सीता तुम राम बनो या न बनो मैं अग्नि परीक्षा में झोकी जाऊँगी तुम तो फ़िर रहोगे महलो में और मैं वनवास को जाऊँगी 000 नारी कहे क्यों बनू मैं द्रोपदी तुम धर्म-राज बनो या न बनो मैं तो जुए में फ़िर हार दी जाऊँगी तुम करोगे महाभारत सत्ता को इसकी दोषी मैं रख दी जाऊँगी 000 नारी कहे क्यों बनू मैं तारा तुम हरिश्चंद बनो या न बनो मैं तो नीच कहलादी जाऊँगी मेरे बच्चे को मारोगे तुम उसे जीवित कराने को मैं बुलाई जाऊँगी 000 नारी कहे क्यों बनू मैं मीरा तुम कान्हा बनो या न बनो मेरी भक्ति तो फ़िर लज्जित की जायेगी तुम को तो कुछ न होगा और मैं विषपान को विवश की जाऊँगी 000 नारी कहे क्यों बनू मैं अहिल्या मैं तो फ़िर किसी इन्द्र के द्वारा छली जाऊँगी और जीवन पत्थर बन राम की प्रतिक्षा में बिताओंगी 000 नारी कहे , कोई बताय क्यों बनू मैं आदर्श नारी क्या कोई आदर्श पुरूष मैं पाऊँगी ......... Vikas jain

भोजन करने सम्बन्धी कुछ जरुरी नियम

1.पांच अंगों ( दो हाथ , २ पैर , मुख ) को अच्छी तरह से धो कर ही भोजन करें ! 2. गीले पैरों खाने से आयु में वृद्धि होती है ! 3. प्रातः और सायं ही भोजन का विधान है ! क्योंकि पाचन क्रिया की जठराग्नि सूर्योदय से 2 घंटे बाद तक एवं सूर्यास्त से 2 : 3 0 घंटे पहले तक प्रबल रहती है। 4. पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुंह करके ही खाना चाहिए ! 5. दक्षिण दिशा की ओर किया हुआ भोजन प्रेत को प्राप्त होता है ! 6 . पश्चिम दिशा की ओर किया हुआ भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती है ! 7. शैय्या पर , हाथ पर रख कर , टूटे फूटे बर्तनों में भोजन नहीं करना चाहिए ! 8. मल मूत्र का वेग होने पर,कलह के माहौल में, अधिक शोर में, पीपल, वट वृक्ष के नीचे, भोजन नहीं करना चाहिए ! 9 परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए ! 10. खाने से पूर्व सभी भूखों को भोजन प्राप्त हो ऐसी प्राथना करके भोजन करना चाहिए ! 11. भोजन बनाने वाला शुद्ध मन से रसोई में भोजन बनाये । 12. इर्षा , भय , क्रोध, लोभ ,रोग , दीन भाव, द्वेष भाव,के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है ! 13. भोजन के समय मौन रहे ! 14. भोजन को बहुत चबा चबा कर खाए ! 15. रात्र

फोटो चितलवाना से शंखेश्वरजी पैदल संघ

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फोटो 3 चितलवाना से शंखेश्वरजी पैदल संघ

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फोटो 2 चितलवाना से शंखेश्वरजी पैदल संघ

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फोटो 1 चितलवाना से शंखेश्वरजी पैदल संघ

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फोटो चितलवाना से शंखेश्वरजी पैदल संघ

फोटो चितलवाना से शंखेश्वरजी पैदल संघ

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"प" की महीमा

‘प’ शब्द हमको बहुत प्रिय है। हम जिंदगी भर ‘प’ के पीछे भागते रहते है। जो मिलता है वह भी ‘प’ और जो नहीं मिलता वह भी ‘प’। पति- पत्नी- पुत्र -पुत्री -परिवार- पैसा -पद-प्रतिष्ठा -प्रशंसा। ये सब ‘प’ के पीछे पड़ते-पड़ते हम पाप करते है यह भी ‘प’ है। फिर हमारा ‘प’ से पतन होता है और अंत मे बचता है सिर्फ ‘प’ से पछतावा। पाप के ‘प’ के पीछे पड़ने से अच्छा है 'प' से पुण्य करके "प" के परमात्मा की ‘प’ से प्राप्ति करले..।''

श्री शंखेश्वर महातीर्थ का पैदल संघ

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संघपति   मोहनलाल   मरडिया   ने   बताया   कि   उपाध्याय   प्रवर   श्री   मणिप्रभसागरजी   म . सा .   की   पावन   निश्रा   में   ता .21  जनवरी   को   प्रात :  शुभ   मुहूत्र्त   में   विधि   विधान   के   साथ   चतुर्विध   संघ   का   प्रयाण   हुआ। संघपति   शांतिलाल   मरडिया   ने   बताया   कि   चितलवाना   से   हाडेचा ,  कारोला ,  सांचोर   होते   हुए   ता . 27  जनवरी   को   भोरोल   तीर्थ   पहुँचा।   ता .28  को   वाव   पहुचा।   वाव   में   श्री   अजितनाथ   व   श्री   गौडी   पाश्र्वनाथ   भगवान   के   दर्शन   कर   सभी   आराधक   हर्षित   हुये। परम पूज्य गुरुदेव प्रज्ञापुरूष आचार्य देव श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म . सा . के शिष्य पूज्य गुरुदेव उपाध्याय प्रवर श्री मणिप्रभसागरजी म . सा ., पूज्य मुनिराज श्री मुक्तिप्रभसागरजी म ., पूज्य मुनि श्री मनीषप्रभसागरजी म ., पूज्य मुनि श्री मेहुलप्रभसागरजी म . आदि की पावन निश्रा एवं पूजनीया माताजी म . श्री रतनमालाश्रीजी म . सा ., पू . साध्वी श्री नीतिप्रज्ञाश्रीजी म ., पू . साध्वी श्री विभांजनाश्रीजी म . एवं

हमारा धर्म " जैन "  तो  " जाती " कौनसी ?

हमारे बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिये.... जागो..... जैनों..... जागो            हमारा धर्म " जैन "  तो  " जाती " कौनसी ? सभी जैन धर्मी भाईयों, बहनों तथा युवा साथियों सादर जय जिनेन्द्र.... जैन यह एक " स्वतंत्र धर्म " है,                  हिन्दु यह भी एक स्वतंत्र धर्म है । जैन यह हिन्दु नहीं है .............                     यह हमें "राष्ट्रीय अल्पसंख्यक धर्म " का दर्जा मिलने से साबीत हो चुका है। हमारे द्वारा भूतकाल में हुई गलतियाँ फिर से वर्तमान और भविष्य काल में ना हो। इसलिए...... आगे हमें धर्म की जगह सिर्फ   " जैन " ही लिखना है। सिर्फ " जैन " ही लिखना है। जन्म दाखला (ग्राम पंचायत,नगर पालिका, महानगरपालिका ) स्कुल में दाखला (Admission) करते वक्त या स्कुल छोडते (Leaving ,TC ) वक्त हमारे धर्म, जाती के बारे में हमारे सबुत, दस्तावेज ,सहमती से या पुछ कर ही लिखा जाता है। स्कुल रजिस्टर में धर्म, जाती सही लिखी गई है क्या? खुद जाॅच कर देखे (बहुत से स्कुल वाले हमें पुछे बगैर ही अपनी मजीॅ से स्कुल रजिस्टर में गलत जा

Nice HEART touching STORY

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी - जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , " काँच की बरनी और दो कप चाय " हमें याद आती है । दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ... उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बड़ी बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई? हाँ ... आवाज आई ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये. धीरे - धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ ... कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी न