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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

कहानी... सारे तथ्यों और सबूतों कि जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है!

एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए उजड़े, वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये! हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ?? यहाँ न... तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं! यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा! भटकते भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज कि रात बिता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे! रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे उस पर एक उल्लू बैठा था।

जीवन में कई बार हम गिरते हैं, हारते हैं, हमारे लिए हुए निर्णय हमें मिटटी में मिला देते हैं. हमें ऐसा लगने लगता है कि हमारी कोई कीमत नहीं है. लेकिन आपके साथ चाहे जो हुआ हो या भविष्य में जो हो जाए , आपका मूल्य कम नहीं होता. आप स्पेशल हैं, इस बात को कभी मत भूलिए.

सबसे कीमती चीज एक जाने-माने स्पीकर ने हाथ में पांच सौ का नोट लहराते हुए अपनी सेमीनार शुरू की. हाल में बैठे सैकड़ों लोगों से उसने पूछा ,” ये पांच सौ का नोट कौन लेना चाहता है?” हाथ उठना शुरू हो गए. फिर उसने कहा ,” मैं इस नोट को आपमें से किसी एक को दूंगा पर  उससे पहले मुझे ये कर लेने दीजिये .” और उसने नोट को अपनी मुट्ठी में चिमोड़ना शुरू कर दिया. और  फिर उसने पूछा,” कौन है जो अब भी यह नोट लेना चाहता है?” अभी भी लोगों के हाथ उठने शुरू हो गए.

अवसर की पहचान... आपने कई बार दूसरो को ये कहते हुए सुना होगा या खुद भी कहा होगा कि ‘हमे अवसर ही नही मिला’ लेकिन ये अपनी जिम्मेदारी से भागने और अपनी गलती को छुपाने का बस एक बहाना है ।

Don’t miss an opportunity. एक बार एक ग्राहक चित्रो की दुकान पर गया । उसने वहाँ पर अजीब से चित्र देखे । पहले चित्र मे चेहरा पूरी तरह बालो से ढँका हुआ था और पैरोँ मे पंख थे ।एक दूसरे चित्र मे सिर पीछे से गंजा था। ग्राहक ने पूछा – यह चित्र किसका है? दुकानदार ने कहा – अवसर का । ग्राहक ने पूछा – इसका चेहरा बालो से ढका क्यो है? दुकानदार ने कहा -क्योंकि अक्सर जब अवसर आता है तो मनुष्य उसे पहचानता नही है । ग्राहक ने पूछा – और इसके पैरो मे पंख क्यो है? दुकानदार ने कहा – वह इसलिये कि यह तुरंत वापस भाग जाता है, यदि इसका उपयोग न हो तो यह तुरंत उड़ जाता है । ग्राहक ने पूछा – और यह दूसरे चित्र मे पीछे से गंजा सिर किसका है? दुकानदार ने कहा – यह भी अवसर का है । यदि अवसर को सामने से ही बालो से पकड़ लेँगे तो वह आपका है ।अगर आपने उसे थोड़ी देरी से पकड़ने की कोशिश की तो पीछे का गंजा सिर हाथ आयेगा और वो फिसलकर निकल जायेगा । वह ग्राहक इन चित्रो का रहस्य जानकर हैरान था पर अब वह बात समझ चुका था । आपने कई बार दूसरो को ये कहते हुए सुना होगा या खुद भी कहा होगा कि ‘हमे अवसर ही नही मिला’ लेकिन ये अपनी जिम

दादा जिनचन्द्रसूरि जिनशासन के उज्ज्वल नक्षत्र हैं -उपाध्याय मणिप्रभसागर

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इचलकरंजी ता. 10 सितम्बर 2014 श्री मणिधारी जिनचन्द्रसूरि जैन श्वेताम्बर संघ के तत्वावधान में पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागर ने श्री सुखसागर प्रवचन मंडप में चतुर्थ दादा गुरुदेव श्री जिनचन्द्रसूरि की 401वीं पुण्य तिथि के अवसर पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा- जिन शासन के इतिहास में केवल चार दादा गुरुदेव हुए हैं। जिन्होंने अपने संयम, त्याग, तप और आराधना साधना के बल पर जिन शासन की महती प्रभावना की। उनमें प्रथम दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरि इतिहास के उज्ज्वल नक्षत्र हैं, जिन्होंने हजारों गोत्रों की स्थापना करके जिन शासन को पूर्ण रूप से समृद्ध बनाया। उनके महाचमत्कारी चरण अहमदाबाद में दादा साहेब ना पगला में बिराजमान है। उनके चरणों से ही वह पूरा क्षेत्र दादा साहेब ना पगला के नाम से सुप्रसिद्ध हैं। जहाँ हर सोमवार को हजारों श्रद्धालु दर्शन करके अपने जीवन को धन्य बनाते हैं। उनकी पावन परम्परा में चौथे दादा गुरुदेव हुए। उनका समय सोलहवीं व सतरहवीं शताब्दी का संधिकाल था। मात्र नौ वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण करके मात्र सतरह वर्ष की उम्र में आचार्य बन कर संपूर्ण खरतरगच्छ के अधिपति बने

क्रियोद्धारक श्री जिनचन्द्रसूरि गुरुदेव का मिताक्षरी परिचय... प्रस्तुति- आर्य मेहुलप्रभसागरजी म.

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जन्म नाम- सुलतान कुमार गौत्रा- रीहड़ गौत्र माता- सौ. श्रिया देवी पिता- श्रेष्ठि श्रीवन्तजी शाह ओसवाल जन्म स्थान- खेतसर जोधपुर के पास, राज. जन्म तिथि- वि.सं. 1595, चैत्रा वदि 12 दीक्षा- वि.सं. 1604, भोपालगढ़-बडलु, राज., दादावाडी स्थल पर दीक्षित नाम- सुमतिधीर मुनि गुरू नाम- खरतरगच्छ नायक श्री जिनमाणिक्यसूरिजी म. आचार्य पद- वि.सं. 1612, भादवा सुदि 9 बीकानेर चातुर्मास- रांगडी चौक स्थित बडे उपाश्रय में सूरिमन्त्र प्रदाता- आचार्य श्री जिनगुणप्रभसूरिजी म. क्रियाद्धार- वि.सं. 1614, चैत्र वदि 7, बीकानेर छम्मासी तपाराधना- वि.सं. 1615, महेवा नगर में पौषधविधि प्रकरण टीका रचना- पाटण में वि.सं. 1616 पाटण में जयपताका- वि.स. 1617 कार्तिक सुदि 7 को अनेक आचार्य की उपस्थिति में खंभात प्रतिष्ठा- वि.स. 1618 बीकानेर प्रतिष्ठा- वि.सं. 1622, वैशाख सुदि 3 पट्टधर शिष्य दीक्षा- वि.सं. 1623, मिगसर वदि 5 पट्टधर शिष्य- मानसिंह, दीक्षित नाम- मुनि महिमराज, आचार्य नाम- श्री जिनसिंह सूरि

पूज्य आचार्य प्रवर चतुर्थ दादा गुरूदेव महान कि्रयोद्धारक श्री जिनचन्द्रसूरीश्वरजी म. को पावन पुण्यतिथि पर वंदनावली... आपकी कृपा हम पर बरसती रहे...

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bilada, dada gurudev

पूज्य आचार्य प्रवर चतुर्थ दादा गुरूदेव महान कि्रयोद्धारक श्री जिनचन्द्रसूरीश्वरजी म. को पावन पुण्यतिथि पर वंदनावली... आपकी कृपा हम पर बरसती रहे...

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bilada, dada gurudev, 

स्वयं विचार कीजिये :- क्या है सबसे बेहतर !!!

इतना कुछ होते हुए भी शब्दकोश में असंख्य शब्द होते हुए भी... मौन होना सब से बेहतर है। दुनिया में हजारों रंग होते हुए भी... सफेद रंग सब से बेहतर है। खाने के लिए दुनिया भर की चीजें होते हुए भी... उपवास शरीर के लिए सबसे बेहतर है। पर्यटन के लिए रमणीक स्थल होते हुए भी.. पेड़ के नीचे ध्यान लगाना सबसे बेहतर है। देखने के लिए इतना कुछ होते हुए भी... बंद आँखों से भीतर देखना सबसे बेहतर है। सलाह देने वाले लोगों के होते हुए भी... अपनी आत्मा की आवाज सुनना सबसे बेहतर है। जीवन में हजारों प्रलोभन होते हुए भी... सिद्धांतों पर जीना सबसे बेहतरहै। इंसान के अंदर जो समा जायें वो              " स्वाभिमान "                     और जो इंसान के बहार छलक जायें वो              " अभिमान "

मुंबई में महाचमत्कारी दादा गुरुदेव महापूजन का आयोजन

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DADA GURUDEV धर्म नगरी मुंबई में श्री जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ मुंबई के तत्वावधान में श्री मणिधारी युवा परिषद्, मुंबई द्वारा पू. साध्वी सुलोचना श्री जी म.सा की शिष्या पू. साध्वी डाँ. श्री प्रियश्रद्धांजनाश्रीजी म. आदि ठाणा की पावन निश्रा में महाचमत्कारी दादा गुरुदेव महापूजन का भव्य आयोजन 17अगस्त 2014 को मोरारबाग वाडी में किया गया।  इस अवसर पर पूज्य उपाध्याय प्रवर श्री मणिप्रभसागर जी म. के शिष्या पूज्य मुनि श्री मेहुलप्रभसागरजी म. द्वारा संकलित "दादा गुरुदेव की पूजा" पुस्तिका का विमोचन सुश्री मंजूजी लोढा, श्री जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के संस्थापक अध्यक्ष श्री प्रकाशजी कानुगो एवं अध्यक्ष श्री मांगीलालजी शाह द्वारा किया गया।

श्री मणिधारी जिनचन्द्रसूरि जैन श्वेताम्बर संघ में पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी ms

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इचलकरंजी श्री मणिधारी जिनचन्द्रसूरि जैन श्वेताम्बर संघ में पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी ने श्री सुखसागर प्रवचन मंडप में पर्युषण महापर्व के छठे दिन विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा- परमात्मा महावीर के जीवन की सबसे बडी विशिष्टता है कि उनका आचार पक्ष व विचार पक्ष एक समान था। मात्र उपदेश देने वाले तो हजारों हैं, पर उनका अपना जीवन अपने ही उपदेशों के विपरीत होता है। ऐसे व्यक्ति पूज्य नहीं हुआ करते। पूज्य तो वे ही होते हैं, जिनकी कथनी करणी एक समान हो।

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ऐसे समय में परमात्मा महावीर के अजर अमर और समय निरपेक्ष सिद्धान्त ही हमारी रक्षा कर सकते हैं। आज अहिंसा, अनेकांत और अपरिग्रह इन तीन सिद्धान्तों को अपनाने की अपेक्षा है। ये तीन सिद्धान्तों के आधार पर पूरे विश्व में शांति और आनन्द का वातावरण छा सकता है। उन्होंने परमात्मा महावीर के साढे बारह वर्षों में साधना काल की विवेचना करते हुए कहा- परमात्मा महावीर ने क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष इन भावों को तिलांजलि देकर मौन साधना का प्रारंभ किया। क्रोध की स्थितियों में भी वे पूर्ण करूणा के भावों से भर जाते थे। उनके जीवन की व्याख्या सुनते हुए जब उन्हें मिले कष्टों का विशद विवेचन सुनते हैं तो हमारी आंखों में अश्रु धारा बहने लगती है। संगम देव और कटपूतना के द्वारा दिये गये उपसर्गों को जब सुनते हैं तो हमारे रोंगटे खडे हो जाते हैं। परन्तु परमात्मा महावीर तो करूणा की साक्षात् मूर्ति थे। चण्डकौशिक को उपदेश देने के लिये स्वयं चल कर उसकी बाबी तक पहुँचे थे।

श्री जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ मुंबई में धर्म आराधना का ठाठ लगा

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    धर्म नगरी मुंबई में श्री जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ मुंबई के तत्वावधान में आयोजित पू. साध्वी श्री सुलोचनाश्रीजी म. की शिष्या पू साध्वी डाँ.  श्री प्रियश्रद्धांजनाश्रीजी म., प्रियश्रेष्ठांजनाश्रीजी म. की पावन निश्रा में धर्म आराधना का ठाठ लगा हैै।  ता. 3 अगस्त 2014 को नेम राजुल के जीवन चरित्र पर आधारित नाटिका का मंचन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत में विठ ल वाडी प्रांगण से बाजते गाजते नेम कुंवर की बारात निकाली गयी।  बारात गोडवाल भवन पहुच कर धर्मसभा में परिवर्तित हुयी। प्रवचन के पश्चात बालक बालिकाओं द्वारा नेमकुमार के जीवन से जुडी विभिन्न घटनाओं का सटीक मंचन किया। जिसमें प्रियंवदा दासी द्वारा जन्म की बधाई,  कृ ष्ण महाराजा एवं सत्यभामा व रुक्मणी रानी द्वारा नेम कुंवर को विवाह हेतु मनाना, नेम कुंवर का बारात लेकर आना, पशुओं का आक्रंद सुन अपनी बारात मोडना, नेम कुमार और राजुल के बीच का संवाद, राजुल का बोध एवं संयम लेने का निर्णय तथा राजुल और नेम कुमार का गिरनार की ओर प्रस्थान जैसे विभिन्न द्रश्यों को देख कर उपस्थित जन समुदाय  भाव विभोर हो गया।

गलती करना आसान होता है पर उसे accept करना और उसके लिए क्षमा माँगना इतना आसान नहीं होता! हमारा Ego आड़े आ जाता है, और यही बात क्षमा करने पर भी लागू होती है। लेकिन जब इसी काम के लिए कोई खास दिन रख दिया जाता है तो उस दिन पूरा वातावरण “क्षमा मांगने” और “क्षमा करने” के अनुकूल बन जाता है और हम ऐसा आसानी से कर पाते हैं।

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पर्यूषण पर्व (Paryushan Parv) क्या है ?                 जैन धर्म में पर्यूषण पर्व के आखिरी दिन एक - दूसरे से “ मिच्छामि दुक्कड़ं ” कहने की परंपरा है।                 पर्यूषण पर्व , जैन धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक है। श्वेताम्बर जैन इसे 8 दिन तक मनाते हैं। इस दौरान लोग पूजा , अर्चना , आरती , समागम , त्याग , तपस्या , उपवास आदि में अधिक से अधिक समय व्यतीत करते हैं।                 इस पर्व का आखिरी दिन संवत्सरी के रूप में मनाया जाता है जिसमें हर किसी से “ मिच्छामि दुक्कड़ं ” कह कर क्षमा मांगते हैं।                 “ मिच्छामि दुक्कड़ं ” का शाब्दिक अर्थ है , “ जो भी बुरा किया गया है वो फल रहित हो Þ may all the evil that has been done be fruitless **                 ‘ मिच्छामि ’ का अर्थ क्षमा करने से   और ‘ दुक्कड़ं ’ का बुरे कर्मों से है। अर्थात् मेरे बुरे कर्मों के लिए मुझे क्षमा कीजिये।

चातुर्मास कालिन दिव्य देशना में सैकड़ो श्रद्धालु हो रहे लाभान्वित

अपनत्व   से   खुशहाली,   आनंद   बरसता   है -मणिप्रभसागर इचलकरंजी   जैन   मंदिर   व   मणिधारी   दादावाडी   में   बिराजमान   पूज्य   उपाध्याय   श्री   मणिप्रभसागरजी   महाराज   ने   अपनी   प्रवचन   श्रंखला   को   गति   प्रदान   करते   हुए   आज   16   अगस्त   को   विशाल   धर्म   सभा   को   ‘अपनत्व’   के   महत्व   पर   प्रकाश   डालते   हुए   कहा   कि   अपनत्व   की   आँक्सीजन   से   चारों   तरफ   खुशहाली   एवं   आनंद   बरसता   है।   उमंग   और   उत्साह   मिलकर   जीवन   को   महोत्सव   बना   देता   है।   हम   सभी   से   मिलें   तथा   मिल   कर   अपनत्व   की   मिठाई   अवश्य   बाँटे।   जिस   तरह   कस्तूरी   की   गंध   को   हिरण   सूंघ   कर   जंगल   में   दौड़   लगाता   है,   पेड़   पौधों,   पत्थरों   पर   अपना   मुख   लगाके   सूंघता   है   कि   यह   सुगंध   कहां   से   आ   रही   है।   जबकि   कस्तूरी   उसी   की   नाभि   में   है   पर   अनजान   होने   के   कारण   बाहर   ही   खोजता   है   और   शिकारी   उसे   अपना   शिकार   बना   के   कस्तूरी   को   निकाल   लेता   है।   यही   दशा   भौतिक   चकाचौंध  

VIDEO Photos नेमीचंदजी राणामलजी छाजेड परिवार की ओर से दादा गुरुदेव महापूजन का विराट् आयोजन किया गया। इसमं 108 जोडों ने पूजा की। इस महाविधान का संचालन करते हुए मुनि मेहुलप्रभसागर ने दादा गुरुदेव की महिमा बताते हुए पूजन का रहस्य समझाया।

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इचलकरंजी श्री मणिधारी दादावाड़ी संघ के तत्वावधान में पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी ने विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा- तपस्या करना कोई हंसी खेल नहीं है। अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण करना होता है। बाडमेर निवासी नेमीचंदजी राणामलजी छाजेड परिवार की ओर से दादा गुरुदेव महापूजन का विराट् आयोजन किया गया। इसमं 108 जोडों ने पूजा की। इस महाविधान का संचालन करते हुए मुनि मेहुलप्रभसागर ने दादा गुरुदेव की महिमा बताते हुए पूजन का रहस्य समझाया। अट्ठाई तप के तपस्वियों का पच्चक्खावणी जुलूस का आयोजन किया गया। विधि विधान संजय जैन ने कराया जबकि इन्दौर से आये प्रख्यात संगीतकार लवेश बुरड ने भजनों से वातावरण को भक्तिमय बना दिया। रात्रि देर तक भक्ति भावना का अनूठा आयोजन हुआ।

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Photos 1 नेमीचंदजी राणामलजी छाजेड परिवार की ओर से दादा गुरुदेव महापूजन का विराट् आयोजन किया गया। इसमं 108 जोडों ने पूजा की। इस महाविधान का संचालन करते हुए मुनि मेहुलप्रभसागर ने दादा गुरुदेव की महिमा बताते हुए पूजन का रहस्य समझाया।

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Ichalkaranji chhajed

SANGHVI SHREE PUKHRAJJI CHHAJED

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SANGHVI SHREE PUKHRAJJI CHHAJED

जहाज मंदिर द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका अंक अगस्त 2014

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