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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

44 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

जटाशंकर के घर कुछ काम था। एक बडा गड्ढा खुदवाना था। उसने मजदूर रख लिया और काम सौंप कर अपने काम पर चला गया। उसने सोचा था कि जब मैं शाम घर पर जाउँगा, तब तक काम पूरा हो ही जायेगा। शाम जब घर पर लौटा तो उसने देखा कि मजदूर ने गड्ढा तो बिल्कुल ही नहीं खोदा है।
उसने डाँटते हुए कहा- पूरा दिन बेकार कर दिया... तुमने कोई काम ही नहीं किया! क्या करते रहे दिन भर!
मजदूर ने जवाब दिया- हुजूर! गड्ढा खोदने का काम मैं शुरू करने ही वाला था कि अचानक एक प्रश्न दिमाग में उपस्थित हो गया। आपने गड्ढा खोदने का तो आदेश दे दिया पर जाते जाते यह तो बताया ही नहीं कि गड्ढे में से निकलने वाली मिट्टी कहाँ डालनी है? इसलिये मैं काम शुरू नहीं कर पाया और आपका इन्तजार करता रहा।
जटाशंकर ने कहा- इसमें सोचने की क्या बात थी? अरे इसके पास में एक और गड्ढा खोद कर उसमें मिट्टी डाल देता!
उधर से गुजरने वाले लोग जटाशंकर की इस बात पर मुस्कुरा उठे।
हमारा जीवन भी ऐसा ही है। एक गड्ढे को खोदने के लिये दूसरा गड्ढा खोदते हैं फिर उसकी मिट्टी डालने के लिये तीसरा गड्ढा खोदते हैं। यह काम कभी समाप्त ही नहीं होता।
संसार की हमारी क्रियाऐं ऐसी ही है। हर जीवन नये जीवन का कारण बनता है। साध्ाक तो वह है जो जीवन अर्थात् जन्म मरण की इतिश्री करता है।

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