Featured Post

Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

Image
पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

मणिधारी गुरूदेव की पुण्यतिथि मनाई गई

द्वितीय दादा गुरूदेव मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की पुण्यतिथि पूज्य गुरूदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. आदि साधु साध्वी मंडल की पावन निश्रा में अत्यन्त हर्षोल्लास के साथ मनाई गई।
गुणानुवाद सभा, पूजा व महाआरती का आयोजन किया गया।
पूज्य गुरूदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने फरमाया- आज द्वितीय भाद्रपद वदि 14 का महान् पर्व है। इसी दिन दादा गुरूदेव का मात्र 26 वर्ष की उम्र में स्वर्गवास हुआ था। जिस वर्ष स्वर्गवास हुआ था, उस वर्ष दो भाद्रपद थे व उनका स्वर्गवास दूसरे भाद्रपद वदि 14 को हुआ था। वर्षों बाद यह अनूठा संयोग उपस्थित हुआ है।
पूज्यश्री ने फरमाया- जैन शासन के इतिहास-फलक पर मणिधारी दादा का नाम स्वर्णाक्षरों द्वारा अंकित है। मात्र 6 वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण कर 8 वर्ष की उम्र में आचार्य पद को प्राप्त करना, इतिहास की एक दुर्लभ घटना है। उस समय दादा गुरूदेव जिनदत्तसूरि के सैंकडों शिष्य थे। वे सभी चारित्रवान् व ज्ञानवान् थे। दीक्षा पर्याय में कई ज्येष्ठ मुनियों के होते हुए भी मात्र दो वर्ष के संयम-पर्याय वाले लघुवयी मुनि को आचार्य पद प्रदान कर अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करते हुए गच्छाधीपति घोषित करना, उनकी योग्यता, उनके ज्ञान और निष्ठा का सूचक है।
शास्त्रों में उल्लेख है कि आचार्य पद किसी सामान्य योग्यता वाले मुनि को नहीं दिया जा सकता या मात्र दीक्षा पर्याय में ज्येष्ठ होने के कारण भी नहीं दिया जा सकता। गुरू भगवंत ही अपने शिष्य की विशिष्ट योग्यता के आधार पर निर्णय करते हैं।
उन्होंने कहा- निर्णय का अधिकार गुरू भगवंत को ही है। उस समय का श्रमण संघ व श्रावक संघ कितना विनयी और आज्ञाकारी होगा कि गुरू महाराज के इस निर्णय को अहोभाव से स्वीकार कर लिया।
उन्होंने कहा- जैन शासन के इतिहास में केवल दो महापुरूष ही ऐसे हुए हैं जिनके मस्तिष्क में मणि थी। एक तो मणिधारी दादा गुरूदेव और दूसरे अध्यात्म योगी श्रीमद् देवचन्द्रजी महाराज!
पूज्यश्री ने गुरूदेव के जीवन चरित्र का वर्णन करते हुए श्रद्धांजली अर्पित की और प्रार्थना की कि उनकी कृपा दृष्टि संघ पर, गच्छ पर सदा सदा बरसती रहे।
इस अवसर पर साध्वी श्री श्रद्धांजनाश्रीजी म. ने भी गुणानुवाद किया। प्रवचन के तुरन्त बाद सकल संघ के साथ लालबाग माधवबाग स्थित श्री चिंतामणि पाश्र्वनाथ मंदिर पधारे जहाँ बिराजमान दादा गुरूदेव की भक्ति भावना के साथ आरती उतारी गई। पूजा पढाई गई।
शाम को मदनपाल महाराजा का वरघोडा निकाला गया। इस वरघोडे का प्रारंभ विल्सन स्ट्रीट स्थित सांचोर खरतरगच्छ भवन से हुआ जो खेतवाडी, सी.पी.टेंक होता हुआ कान्ति मणि नगर पहुँचा, जहाँ मदनपाल महाराजा द्वारा दादा गुरूदेव की भव्य आरती उतारी गई। भक्ति भावना का आयोजन हुआ। मदनपाल महाराजा बनने का लाभ श्री गोरधनमलजी प्रतापजी सेठिया धोरीमन्ना वालों ने एक लाख छत्तीस हजार इकतीसे के पाठ की बोली बोलकर लिया। कुमारी ज्वेल झवेरी ने वातावरण को भक्तिमय बना दिया। इस महाआरती का आयोजन श्री मणिधारी युवा परिषद् मुंबई द्वारा किया गया।

jahaj mandir, maniprabh, mehulprabh

Comments

Popular posts from this blog

AYRIYA LUNAVAT GOTRA HISTORY आयरिया/लूणावत गोत्र का इतिहास

RANKA VANKA SETH SETHIYA रांका/वांका/सेठ/सेठिया/काला/गोरा/दक गोत्र का इतिहास

RAKHECHA PUGLIYA GOTRA HISTORY राखेचा/पुगलिया गोत्र का इतिहास