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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

PALITANA CHATURMAS NEWS



पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन

ता. 30 जुलाई 2013, पालीताना
जीवन को उँचाईयों की ओर ले जाना है, तो हमें अनुशासन अपनाना होगा। अनुशासन की परिभाषा है- मर्यादा! हर व्यक्ति को अपनी मर्यादा में जीना होता है। मर्यादा का जो भी उल्लंघन करता है, वह घोर अशांति का कारण बन जाता है।
ये उद्गार जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ श्री संघ के उपाध्याय प्रवर श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने आज पालीताणा श्री जिन हरि विहार धर्मशाला के सुखसागर प्रवचन मंडप में उत्तराध्ययन सूत्र पर प्रवचन देते हुए कहे।
विशाल जन समूह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा- दूसरों की जिन्दगी में झांकने की हमारी आदत है। अपनी जिन्दगी को देखने की हमें फुरसद नहीें है, जबकि दूसरों के जीवन की बारीकियों के प्रति हम बहुत उत्सुक होते हैं।
उन्होंने कहा- सामान्य-सी लगने वाली बात पर भी हम अपना ज्ञान भरा चिंतन प्रारंभ कर देते हैं। ... इसने स्कूटर इस कंपनी का क्यों लिया! उस कंपनी का लेता तो अच्छा होता! ... हमेशा 9 बजे की बस पकड कर आँफिस की ओर प्रस्थान करने वाला 'यह' आज दस बजे क्यों जा रहा है? घर पर कुछ झघडा तो नहीं हुआ! यह पीले रंग का शर्ट इसे कुछ जंच नहीं रहा! लाल रंग का पहनता तो मजा आ जाता।
उन्होंने कहा- दूसरों के ढोल पर अपनी डांडी पीटने की यह आदत धीरे धीरे स्वभाव बन जाती है.... और यह स्वभाव हमारे वर्तमान और भविष्य को बरबाद कर देता है। हमें अपने जीवन से अधिक दूसरों की जिन्दगी में रस है। ऐसे व्यक्ति 'ध्यान करने वाले' नहीं अपितु 'ध्यान रखने वाले' होते हैं।
उन्होंने कहा- ऐसे लोग कचरा निकालने का काम करते हैं। पर अपना नहीं, दूसरों का! हर घर के बाहर हाथ में झाडू लिये खडे हो जाते हैं। यह विचार नहीं आता कि मैं अपने घर का कचरा कब साफ करूँगा! दूसरों के घर का कचरा निकालने से मुझे क्या मिलना है!
उन्होंने कहा- संसार में प्रतिक्षण परिवर्तन जारी है। मकान बदल गये... पहनावा बदल गया... रहने का ढंग बदल गया... यातायात के साधन बदल गये...! बस! नहीं बदला तो हमारा स्वभाव! पहले भी दूसरों को पीडा देने में आनन्द आता था... आज भी आता है!
उन्होंने जोर देकर उदाहरण के साथ कहा- हमें अपने स्वभाव को बदलना है। थोडी गहराई से... थोडे अपनेपन से... अपनी जिन्दगी को देखना है... सजाना है... संवारना है। उन्होंने साध्वी मृगावती की कहानी सुनाकर श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर दिया। उन्होंने कहा- साध्वी मृगावती ने अपनी गलती नहीं होने पर भी स्वीकार की। पश्चात्ताप किया, परिणाम स्वरूप केवल ज्ञान प्राप्त कर अपनी आत्मा का कल्याण कर लिया। उसने केवल अपना चिंतन किया।
चातुर्मास की प्रेरिका पूजनीया बहिन म. डाँ. विद्युत्प्रभाश्रीजी म. ने दोपहर को प्रवचन फरमाते हुए कहा- हमें अपने संस्कारों की सुरक्षा करनी है। संस्कार ही जीवन है, वही सबसे बडा धन है। एक पिता अपनी संतान को धन भले देकर न जाये, कार भले न दे पाये। किन्तु यदि संस्कार दिये हैं, तो वह पुत्र अपने भविष्य को संवार लेगा। और यदि संस्कार नहीं दिये तो दिया गया धन भी बेकार चला जायेगा।
उन्होंने कहा- सिद्धाचल की पवित्र छत्र छांव में तपस्या और त्याग का अनूठा वातावरण छाया हुआ है। यहाँ आने के बाद हर व्यक्ति जैसे बदल गया है। वह परमात्मा की भक्ति में ही लगातार लगा हुआ है।
हरि विहार के अध्यक्ष संघवी विजयराज डोसी ने बताया कि श्री बाबुलालजी लूणिया एवं रायचंदजी दायमा परिवार द्वारा आयोजित इस चातुर्मास की अनूठी साधना में बडी संख्या में सिद्धि तप, शत्रुंजय तप, विहरमान तप आदि विविध प्रकार की तपस्या चल रही है।

प्रेषक
दिलीप दायमा

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