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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

रोशनी देने वाला उपाध्याय - श्री मणिप्रभसागरजी म.


ता. 13.10.13 - जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूधर मणि श्री मणिप्रभसागरजी .सा. की पावन निश्रा में आज श्री जिन हरि विहार धर्मशाला में श्री नवपदजी की ओली के चौथे दिन प्रवचन फरमाते हुए कहा- आज चौथे दिन हमें स्वाध्याय दिवस मनाना है, क्योंकि चौथे दिन उपाध्याय पद की आराधना की जाती है। उपाध्याय ज्ञान की रोशनी देता है। ज्ञान के बिना यथार्थ सत्य का बोध नहीं होता। इसलिये ज्ञान को सर्वाधिक महत्व दिया गया है।
उन्होंने कहा- शास्त्रों में साधुओं के लिये जिन पदों का वर्णन उपलब्ध होता है, उनमें उपाध्याय का पद अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है। आचार्य का कार्य संघ का संचालन करना है। परन्तु उपाध्याय का कार्य संघ के साधुओं, साध्वियों और सकल संघ में वीतराग परमात्मा का ज्ञान प्रकाशित करना होता है।
            उन्होंने कहा- जिन शासन में पद व्यक्ति की गौरव वृद्धि के लिये नहीं दिये जाते, अपितु जिम्मेदारी का निर्वहन करने के लिये दिये जाते हैं। उन्होंने आचार्य की भांति उपाध्याय के भी चार भेद बताते हुए कहा- शास्त्रों में चार प्रकार के आचार्य होते हैं तो चार प्रकार के ही उपाध्याय होते हैं। जो स्वयं व्यवहार और निश्चय का बोध करता है और दूसरों को कराता है, वह उत्तम आचार्य उपाध्याय माना जाता है। जो आचार्य अपनी आत्मा का भी कल्याण करता है, और परिवार अर्थात् संघ के कल्याण की सावधानी बरतता है, वह उत्तम है।
                जो स्वयं की आत्मा का कल्याण करता है, परन्तु संघ के कल्याण के लिये पुरूषार्थ नहीं करता, वह मध्यम आचार्य अथवा उपाध्याय माना जाता है।
                जो स्वयं की आत्मा का कल्याण नहीं करता, परन्तु संघ के लिये पूरी मेहनत करता है, वह अधम आचार्य उपाध्याय माना जाता है।
                परन्तु जो स्वयं का कल्याण करता है, और संघ का कार्य करता है, वह अधमाधम आचार्य उपाध्याय माना जाता है।
                उन्होंने श्रीपाल मयणासुन्दरी का कथानक सुनाते हुए कहा- श्रीपाल एक आत्मा है। प्रारंभ में वह मिथ्यात्व ग्रस्त है। परन्तु उसे सद्गुरु के रूप में मयणासुन्दरी का योग मिला, और उसका मिथ्यात्व रूपी कोढ दूर हो गया, उसने सम्यक्दर्शन की शुद्धता को प्राप्त कर लिया।
                उपधान आयोजक रायचंद दायमा ने अरिहंत परमात्मा की भक्ति का भजन सुनाया। महत्तरा श्री मनोहरश्रीजी . की पुण्यतिथि के अवसर पर आज साध्वी संघमित्राश्रीजी . ने उनका गुणगान किया।

प्रेषक
दिलीप दायमा


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