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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

Shivir in Palitana पालीताना में शानदार रहा कन्या शिविर

अंतराष्ट्रीय जैन तीर्थ पालीताणा में आनंद, आरोग्य, उत्साह, आत्मविश्वास एवं प्राण ऊर्जा के जागरण के लिए 11 मई से 18 मई 2016 तक आठदिवसीय ‘जीवन जीने की कला’ शिविर का आयोजन हुआ। साध्वी डाँ. प्रियश्रद्धांजनाश्रीजी म. की प्रेरणा से अखिल भारतीय सदा कुशल सेवा समिति द्वारा इस शिविर का आयोजन किया गया।



पूज्य गुरुदेव खरतरगच्छाधिपति आचार्य देव श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी महाराज के आशीर्वाद से मुनिराज श्री मुक्तिप्रभसागरजी म. की निश्रा में एवं गच्छगणिनी साध्वी श्री सुलोचनाश्रीजी म. की शिष्या साध्वी प्रियरंजनाश्रीजी म. व साध्वी डाँ. प्रियश्रद्धांजनाश्रीजी म. के मार्गदर्शन एवं निर्देशन में यह कन्या शिविर संपन्न हुआ।
इस शिविर में 14 से 28 वर्षीया बालिकाओं ने भाग लिया। जिसमें अहमदाबाद, सुरत, बडौदा, मुंबई, पुना, हैद्राबाद, बाडमेर, जोधपुर, बेंगलोर, मैसुर, सिंधनूर, रायचूर, होस्पेट, बल्लारी, गदग, हुबली, तिरुपात्तुर, चैन्नई, बालोतरा, रायपुर, भिलाई, राजनांदगांव आदि विविध स्थानों से तीन सौ से अधिक बालिकाएं शामिल हुई। शिविर में बालिकाओं को जीवन जीने की कला, माता पिता के उपकार, मानवता के कार्य, परिवार में सौहार्द्रता का विकास, जीवन में धर्म की उपादेयता, गंहुली रचना सहित बुद्धिवर्धक विविध खेलों का अभ्यास करवाया गया।
पूज्या महत्तरा दिव्यप्रभाश्रीजी म., गणिनी सूर्यप्रभाश्रीजी म., साध्वी प्रियदर्शनाश्रीजी म., साध्वी हेमरत्नाश्रीजी म., साध्वी श्रद्धांजनाश्रीजी म., साध्वी अभ्युदयाश्रीजी म. आदि का शिविर में सतत सानिध्य प्राप्त हुआ।
प्रथम दिन प्रात: छ: बजे सामूहिक तलेटी दर्शन यात्रा मुनि मनीषप्रभसागरजी महाराज आदि ठाणा के सानिध्य में हुयी। जिसमें सभी कार्यकर्ता एवं साध्वीजी भगवंत सहित कन्याओं ने भाग लेकर आराधना की। शिविर के प्रथम सत्र में मुनि मेहुलप्रभसागरजी ने शिविरार्थियों को संबोधित करते हुये कहा कि संस्कार जीवन की रीढ है। उसके अभाव में जीवन में संतुलन और सहजता का आनंद प्राप्त नहीं किया जा सकता। संस्कार वपन की उम्र बचपन है। बचपन के संस्कार ही जीवन भर साथ देते है। जिसका बचपन बिगड गया समझो उसका पूरा जीवन स्वाहा हो गया। संस्कारी बचपन ठोस जीवन का निर्माण करता है। 
द्वितीय सत्र में साध्वी प्रियश्रद्धांजनाश्रीजी म. ने उद्बोधन देते हुये कहा कि समाज को बालक-बालिकाओं की ओर ध्यान देने की जरूरत है ! क्योंकि आज का बचपन ही कल का युवा है, और एक दिन इन्हीं के कंध्ाों पर भारत का भार आना है। इसलिये समाज को चाहिये कि बचपन को संस्कारित करने की दिशा में प्रभावी कदम उठायें ताकि इनका भविष्य संवारा जा सके।
शिविरार्थी प्रतिदिन प्रात: छ: बजे साध्वीजी भगवंत के सानिध्य में तलेटी दर्शन, नौ बजे से साडे ग्यारह बजे तक प्रथम सत्र, दोपहर डेढ बजे से साडे चार बजे तक द्वितीय सत्र, सूर्यास्त के समय सामूहिक प्रतिक्रमण एवं रात्रि में विविध प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता।
पूज्य पंन्यास श्री पुंडरीकरत्नविजयजी म. ने भी बालिकाओं को परमात्म तत्व की अचिंत्य शक्ति विषय पर उदाहरण सहित समझाकर उपासना करने की सीख दी।
अंतिम दिन हुयी सभा में शिविरार्थियों ने अपने अनुभवों को साझा करते हुये शिविर को दिशा-परिवर्तनकारी बताया। तो किसी ने जीवन के सही मूल्यों को समझने से अपने चेहरे पर प्रसन्नता दिखाई। सभी को शिविर  में विविध ज्ञानार्जन के बाद लगा जैसे हमारे लिए अमृत का द्वार खुल गया है, प्राणों में मुक्ति और आनंद का कमल खिल उठा है और हमारे कदम अरिहंत और सिद्धत्व की ओर बढ़ गए हैं। अधिकतर बालिकाओं ने स्वेच्छा से साध्वीजी भगवंत से विविध नियम लेकर अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
साध्वी डाँ. प्रियश्रद्धांजनाश्रीजी ने प्रतिदिन अलग-अलग विषय पर वाचना के द्वारा बालिकाओं की विचारधारा को सही दिशा में मोडने का कार्य किया। देव-गुरू की महत्ता, धर्म की आवश्यकता, उचित वेशभूषा, अहंकार से हानि, भारतीय संस्कृति का महत्व, पाश्चात्य संस्कृति की विकृति, मोबाइल प्रयोग में विवेक, आहार से आरोग्य की प्राप्ति सहित अनेक विषयों पर सूक्ष्म प्रज्ञा से वात्सल्य के साथ हितशिक्षा प्रदान की। साथ ही विविध साध्वीजी भगवंतों ने शिविरार्थियों को अपने अनुभवों का वर्णन कर बताया कि यह शिविर, जीवन जीने की कला सीखने का सरल मार्ग है। यह शिविर एक ओर हमें सच्चे ज्ञान और जीवन का आनंद व व्यवहार को उच्च दशा की ओर ले जाने वाला है। वहीं दूसरी ओर आंतरिक शक्तियों को जागृत करते हुए हमारे तन-मन-आत्मा को दिव्यता प्रदान करने वाला है। 
शिविरार्थियों को पारितोषिक देने का लाभ श्री रिखबचंदजी झाडचूर मुंबई वालों ने लिया।
अंतिम दिन शिविर का समापन समारोह हुआ। जिसमें समिति सदस्यों द्वारा पूजनीय गुरु भगवंतों का कामली ओढाकर उपकार स्मरण किया। बालिकाओं ने प्रेस काँन्फ्रेस कर सभी दर्शकों को शिविर की आवश्यकता और उपयोगिता पर प्रकाश डाला। काँन्फ्रेस के आक्रामक सवालों के सटीक जवाब से पूरे सभागार में हर्षनाद के साथ तालियों की गुंज निरंतर चलती रही।
शिविरार्थियों को प्रोत्साहन देने हेतु रिखबचंदजी झाडचूर मुंबई, धवलजी कानुंगो, खेमराजजी बोथरा मुंबई, शांतिलालजी जीरावला बेंगलोर, महेशजी अग्रवाल बेंगलोर, प्रकाशचंदजी चोरडिया रायचूर, रतनलालजी बोहरा अहमदाबाद, निहालचंदजी चोपडा दिल्ली, महेन्द्रभाई शाह भावनगर सहित अनेक गणमान्य सज्जनों का आगमन हुआ।
शिविर का संचालन पारस भाई शाह कांदिवली, अमिता बेन शाह अहमदाबाद वालों ने किया। श्री भेरु भाई लुणिया-अहमदाबाद, अमित बाफना-गदग, विजय संचेती-पुणे और कु. मोक्षिता बरलोटा-हैद्राबाद ने प्रशंसनीय योगदान दिया।
इस अवसर पर अखिल भारतीय सदा कुशल सेवा समिति के सदस्य प्रवीण तातेड, कैलाश छाजेड, वीरेंद्र चोरडिया, लक्ष्मण कवाड, सुरेश कोठारी, कपिल बाफना, रितेश चतुरमुथा, आनंद नाहर, अंकित लोढा, संतोष वेदमुथा, कैलाश चोरडिया, राजेश सेठिया, अरुण गुलेच्छा, उमेश पारख, सोहनलाल सेठिया, गौतमचंद संकलेचा, बाबुलाल श्रीश्रीमाल, चंपालाल श्रीश्रीमाल, हेमंत कांकरिया, सुरज जैन, मोहित जैन, हितेश नागडा, हितेश जैन, मेघराज जैन, जैनम, विक्रम राठोड, पवन मुथा, रौनक नाहर, मोक्ष बरलोटा ने शिविर को सफल एवं यादगार बनाने हेतु अनुमोदनीय सेवाएं दी। साथ ही तिरुपात्तुर के बालकों ने व्यवस्थाओं के संचालन में योगदान दिया।
यह जानकारी विवेक झाबक ने दी।

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